अमृत कलश ..
तुम मेरे ही हों
कहाँ तन्हाई है सोचो
कैसी रुसवाई है सोचो ..
क्यूँ अहसास ये जगा
क्यूँ चाहा साथ ..
क्यूँ टूट रहे हों ..
खुद से छूट रहे हों ..
आओ....छूलो मुझको ..
और जी उठो तुम ..
मैं अमृत कलश तुम्हारा
बस और कुछ नहीं ..
भौरों की बात न सुन ..
तुम मेरे ही हों - -विजयलक्ष्मी ..
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