मुझे आईने से शिकायत कैसे हों भला ..
आईने में भी नजर आये तुम..
कुछ वक्त ए बेरुखी,कुछ बेदिली मेरी ..
इन नयनों में भी समाये तुम ..
सहरा सा चमन है अपना बूंद भी नहीं ..
क्यूँ न बदरा बन के आये तुम ..
देखूं भला क्यूँ दुनिया, गर तुम ही नहीं ..
नखलिस्ताँ बन नजर आये तुम ..
न कर बेरुखी इसकदर ,मौत भी न आये
आईने में भी नजर आये तुम..
कुछ वक्त ए बेरुखी,कुछ बेदिली मेरी ..
इन नयनों में भी समाये तुम ..
सहरा सा चमन है अपना बूंद भी नहीं ..
क्यूँ न बदरा बन के आये तुम ..
देखूं भला क्यूँ दुनिया, गर तुम ही नहीं ..
नखलिस्ताँ बन नजर आये तुम ..
न कर बेरुखी इसकदर ,मौत भी न आये
जीना किसका मर भी न पाए हम ..विजयलक्ष्मी
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