Tuesday 25 April 2017

वर्णसंकर ..?

वर्णसंकर कौन ?
जीवित प्रश्न है आजका 
वर्णसंकर दोगला होगा ,, तय है 
वर्णसंकर दलाली करेगा ,,सत्य है 
स्वार्थ की गद्दी पर बैठता है अक्सर 
क्या करे वर्णसंकर जो ठहरा ,,
वर्णसंकर जातिगत या व्यक्तिगत
????
वर्णसंकर न जातिगत न व्यक्तिगत
अपितु ,,राष्ट्रगत होते हैं
रहते है खाते हैं ,,मगर दुसरे का गाते हैं
खाकर नमक देश का देश को लजाते हैं ,,
लज्जा तो छूकर भी गुजरती
अपितु ..
राष्ट्रिय वर्णसंकर आँखे बहुत दिखाते हैं ,,
ईमान वालों की गलतियाँ बताते हैं
धर्म मर्यादा संस्कार की हंसी उड़ाते हैं
ये इनमे आदतशुमारी होती है ,,
स्वार्थ के लिए बसी होशियारी है
इन्हें दौलत और मक्कारी ईमान से ज्यादा प्यारी है
डरपोक होते हैं सभी ,, झूठ औ नफरत से रखते यारी हैं
देखने में मानव तनधारी होते हैं
दोगले रंग के दुधारी होते हैं
अपनी बारी रोते हैं ,,
पराई रोटी पर मुंह धोते हैं
अपनों को नोचते हैं ,,
अपनी ही सोचते हैं
कुत्ते वफादार थे ,,
हुए लाचार थे
इंसानी देहधारी तो बदकार थे
जमीर बेचने के बिमार थे
और चौराहे के उस पार नुक्कड़ वाली दूकान
उतारी इन्होने देश की छान
बनाया अपना मकान
मगर गद्दारी लहू में बरपा थी
और ईमान खो गया
दोगले की देह से निकल
मौकापरस्त ,,
लार टपकाते ही मिलेंगे यहाँ
मानवाधिकारियों की चुप्पी
क्यूँ न लटका दिया जाये लम्बी गर्दन होने तक ||
----- विजयलक्ष्मी