आज हम पसरे अखबार में
सारा किस्सा पलट गया ...सारा जहाँ जल गया ..
आईने में खड़े थे आंसूं बह गए हमने कुछ किससे अपने लिखे थे..
कुछ उन नजरों का दास्तान ए असर भी लिखा था ..
एक भूल मुझे ही बहा कर चली गयी और मैं सन्नाटे में देखती ही रह गयी ...अवाक्
कुछ न हुआ ...और मिट गयी ..
लौट न सकी क्यूकर भी तुम मुझे पुकार लो एक बार शायद ...
बाहर आ सकूं तुझसे ..जीती हूँ तुझ में बीतता है लम्हा तुझमें ..
मैं अब हूँ ही कहाँ ...मिलकर भी नहीं मिलती खुद से...
कैसे कहूँ मैं अब तुम बन गयी हूँ .. --विजयलक्ष्मी
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