गर्वित हों सके
गगन से विस्तार पर
गौण न हों जाएँ गणनाएं
गणित की
गम्य अगम्य पथ ढूंढ कर
गमन कर सकें
गीत हों
गर्वीले
गुंजित हों
गुलजार नगमों से
गुनगुनाये हर कोई
गम के अन्धेरें छू न सके
गैरतमन्द इंसान गरिमामयी सभ्यता का सिरमौर बने
गेरुए से रंग से रंगी सहर
गौधूलि तक भी न छूटे
गायब तम् हों
गाते हों चिराग लकदक रौशनी से
गीतों के मेले सभ्यता पर
गर्व कर सकें
गुंजायमान हों दिशाएँ
गाथाओं से वतन की मेरे
गम्य अगम्य का विचार
गौण हों जाये
गगन सा विस्तार हों ,मेरा तुम्हारा और सबका .-विजयलक्ष्मी
गगन से विस्तार पर
गौण न हों जाएँ गणनाएं
गणित की
गम्य अगम्य पथ ढूंढ कर
गमन कर सकें
गीत हों
गर्वीले
गुंजित हों
गुलजार नगमों से
गुनगुनाये हर कोई
गम के अन्धेरें छू न सके
गैरतमन्द इंसान गरिमामयी सभ्यता का सिरमौर बने
गेरुए से रंग से रंगी सहर
गौधूलि तक भी न छूटे
गायब तम् हों
गाते हों चिराग लकदक रौशनी से
गीतों के मेले सभ्यता पर
गर्व कर सकें
गुंजायमान हों दिशाएँ
गाथाओं से वतन की मेरे
गम्य अगम्य का विचार
गौण हों जाये
गगन सा विस्तार हों ,मेरा तुम्हारा और सबका .-विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment