Sunday, 17 June 2012

कवायद शुरू हों जाती है उनकी

संवारते संवारते वो बिखेर देते है मुझे,कमाल ये है ,
फिर से संवारने की कवायद शुरू हों जाती है उनकी..

तराशते है अक्सर बिन कहे हथौड़े की मार से ,
तोड़ने संवारने की कवायद शुरू हों जाती है उनकी ..

दूर बहुत जाने की कोशिशें बार बार मुझे ठुकराना ,
नजरों में आंसूं की कवायद शुरू हों जाती है उनकी ..

शफक सिन्दूर लहू से बना कर भेजा है मुझे,क्यूँ 
श्वेत रंग बनाने की कवायद शुरू हों जाती है उनकी ..

मुहब्बत खुद से नहीं ,मुझसे है जितनी मालूम है , 
नाखुदा तन्हाई की कवायद शुरू हों जाती है उनकी .. विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment