बोझ कत्ल का उतरता नहीं आसमाँ पर चढ़ गया किसकदर
समझ सके तो ,प्रस्तर मन ,नमी भी छूती नहीं सूनापन है इसकदर.
कल बहुत खेला किया खिडकी में बैठ, मगर सन्नाटा बिका नहीं,
कंकर भी उछाले ,जल रहे है ताप से, कुछ नहीं करता असर
आंच पर सीधे पका ....रख दिया जैसे सीसा उडेलकर ..-विजयलक्ष्मी
समझ सके तो ,प्रस्तर मन ,नमी भी छूती नहीं सूनापन है इसकदर.
कल बहुत खेला किया खिडकी में बैठ, मगर सन्नाटा बिका नहीं,
कंकर भी उछाले ,जल रहे है ताप से, कुछ नहीं करता असर
आंच पर सीधे पका ....रख दिया जैसे सीसा उडेलकर ..-विजयलक्ष्मी
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