Monday, 25 June 2012

जिंदगी क्या रूप है क्या रंग है तेरा ..



हे भगवान ,..जिंदगी क्या रूप है क्या रंग है तेरा ..
इतनी खारों सी काँटों के तारों सी ,उजडे सहरा के आँगन सी
फूटे बासन सी ,टुकड़े टुकड़े चिथड़े सी हिमालय की पीर सी
लहू की लकीर सी ,कर गयी फकीर सी ,दिमाग कुंद हुआ..साँस अवरुद्ध हुआ
दम साधे देखती रही ..साँस भी लेने की न होश रही ..
जैसे नीम बेहोश रही ,लडखडा गए कदम ,गिरते गिरते बचे हम
उफ़ जिंदगी इतनी भयावह भी हों तुम ,
तन लथेड़ कर चल रहा और मुस्कुरा रहे है होठ..जिंदगी ये क्या है ?
ये तेरा कौन सा रूप है क्यूँ लगती इतनी कुरूप है
अगर वो खुश उस हाल है तो मैं महलों की रानी बन गयी..
जिंदगी तेरा सन्नाटा भी उन्हें देता जिंदगी ..
मेरे आस पास तो खुशियों का समन्दर है ठहरा ..
इन हवाओं की में शहजादी बन गयी
पल भर में लगा उपर वाले मुझे सब कुछ अता किया है कर दूँ उसका शुक्रिया ...
हुई आँख नम है ,इंसान कितना पानी कम है ,
जितना भी मिल जाये लगता उसको कम है ...
देखा जो हाल अब है ...जिंदगी मुहाल कब है ...खुश किस्मत हूँ सबसे ज्यादा ..
पल पल साथ रब है हाँ बहुत खुश नसीब हूँ मैं ...प्रभु बहुत बहुत शुक्रिया है तेरा ..
उठती है हुक दिल में दर्द ए दयार देख नग्न तन है उनके पानी का हाल देख ..
सहेज लो धरा को क्या छोड़ तुम मरोगे ,औलाद को प्रकृति से महरूम तुम करोगे ..
सम्भल जाओ अभी वक्त है ...प्रकृति को सम्भालो ...वर्ना खुद भी मरोगे ...
वंश बेल का तो सवाल खत्म है ..जिंदगी तू कितने रंग लिए बैठी है ..
वो भी तो इंसान है उनसे क्यूँ रूठी है ..उनसे क्यूँ रूठी है .-विजयलक्ष्मी .

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