जब हम तुम करते थे बातें ..
कुछ कही कुछ अनकही सी मुलाकातें ..
रहता इन्तजार आज भी है तुम्हारा ..
तुम आते थे घंटों देखा करते थे हमको ..
और मुस्कुराते से आँखों में पढते थे हमको ....
मेरे आंसूं तेरे नयनों में आ जाते थे छिप छिप कर ..
कोरो पर नमी और अवशेष ओस बन जाती थी सरहद पर ..
खोए से दिन है तन्हा ये रातें है लम्बी ..कैसे कटते है सोचो तुम ...
क्या आंगन में धूप का आना खोया क्यूँ है ...
न मिलते तो ..मिलते तो रहते हम तुम ..
खोकर भी खोए तो न थे हम तुम ...
है इन्तजार पहले भी ज्यादा अब तो ...
जाने क्यूँ खोए हों कह दो ..कुछ तो बोलो ..
चुप क्यूँ हों जाते हों .....चुभती है चुप्पी भी मुझको तीर कटारों सी ..
छलनी होता है लम्हा लम्हा बरिश में बौछारों सी ....
नदिया नयनों से मत गुजरो उनको भी आजाने दो ..
हम दोनों के दो नयनों को बस एक ख्वाब सजाने दो ....विजयलक्ष्मी
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