Tuesday, 26 June 2012

धार तो तेज होनी चाहिए ..

धार तो तेज होनी चाहिए ...
अगूंठे एकलव्य के... या द्रोण के कटने चाहिए ,
अर्जुनों की तलवार गर चमक है तो चलेगी साथ में ..
जेब वर्ना गद्दीनशीनों की कटनी चाहिए ..
मैल भर के जो उठाये आँख को ..
शूल उसके पार उतार दे.... चलो
वैश्यों की दुकानों को ताला लगा ...कर्म बदल देते है चलो ..
घूसखोरों की औलादों को बाप के साथ.. जेल की हवा तो दिखा
क्या कहूँ ....दरोगा भी जिगर पे पत्थर होना चाहिए ....
द्रोण को कला गर आती नहीं ...रोटी फिर क्यूँ चाहिए ..
आदमी को आदमी की बोटी भला क्यूँ चाहिए..
देख ले सम्भल जा अभी ...वक्त अभी निकला नहीं ..
सूरज को कह से निकल अब ..समय बदलना चाहिए
ज्ञान का दिया ..अंधेरों भी जलना चाहिए
चल , बर्तनों की खनक कान बर गूंजेगी जरूर
लेखनी की धार ... तलवार बन भाजेंगी .. जरूर
एकलव्य अंगूठे क्यूँ दे भला अपने ....
जेब से नोटों की गड्डी...फांसी लगनी चाहिए ..
चल उठ ,साथ चलेगा क्या ....रौशनी कोई दीप से तो जलनी चाहिए
आग जरूरी है तू जला मैं जलाऊँ ...आग वैश्या बनी दुकानों में लगनी चाहिए ..
क्रांति ...की आग ..हाँ अब तो ..लगनी चाहिए ...विजयलक्ष्मी .

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