कलम से..
Wednesday, 30 May 2012
पूजे है ख्वाब भी उसके हमने
ए सफर चल अब चल दिए बता क्या सोचना ..
जिंदगी दांव पर लगी है जुआरी की तरह अपनी ..
मदिर का देवता नाराज सा क्यूँ है कहे तो सही ..
पूजे है ख्वाब भी उसके हमने पूजा की तरह अपनी ..--विजयलक्ष्मी
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