Wednesday 25 February 2015

वीर सावरकर को नमन ||

वीर सावरकर -- एक परिचय

(जन्म: 28 मई 1883 - मृत्यु: 26 फ़रवरी 1966 )
स्वातंत्र्य समर वीर विनायक दामोदर सावरकर की पुण्य-तिथि पर उन्हें शत-शत नमन...

सभी राष्ट्रवादियों को वीर सावरकर के विषय में सब कुछ जानना चाहिए...

वीर सावरकर के प्रथम कीर्तिमान-
1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने
1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें? क्या किसी भारतीयमहापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है.?


2. वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ...


3. विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी...


4. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया, तब बाल गंगाधर तिलक ने
अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी जबकि इस घटना की दक्षिण
अफ्रीका के अपने पत्र 'इन्डियन ओपीनियन' में गाँधी ने निंदा की थी...


5. सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले और 11
जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया...


6. सावरकर पहले भारतीय थे जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से
निकाल दिया गया और दस रूपये जुरमाना किया... इसके विरोध में हड़ताल हुई... स्वयं तिलक जी ने 'केसरी' पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा...


7. वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नही ली... इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र
कभी नही दिया गया...


8. वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को '1857 का स्वातंत्र्य समर' नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया...


9. सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनके लिखे 1857 का स्वातंत्र्य समर' पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था...
10. '1857 का स्वातंत्र्य समर' विदेशों में  छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी... भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी... पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी...


11. वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय आठ जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे...


12. सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नही मिला और बंदी बनाकर भारत लाया गया...


13. वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी...


14. सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे जो दो जन्म कारावासकी सजा सुनते ही हंसकर बोले- "चलो, ईसाई सत्ता ने
हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया." 


15. वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे जिन्होंने काला पानी की सजा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आजादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पोंड तेल प्रतिदिन निकाला...

16. वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकर कोयले से
कवितायें लिखी और 6000 पंक्तियाँ याद रखी...


17. वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे, जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आजादी के बाद कई
वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा...


18. वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-'आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका. पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः.' अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभूहै जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है...


19. वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें 
अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में 
रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधी हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया... देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था...

20. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे जब उनका 26 फरवरी 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय
संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नही थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था...


21.वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जि
समे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव
भी रोका गया था....

22. वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे जिनके चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा लेकिन
राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने
अपने कर-कमलों से किया...


23. वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यरने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख
लगवा दिया...वीर सावरकर ने दस साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था जबकि गाँधी ने कालापानी की उस जेल में कभी दस मिनट चरखा नही चलाया....


24. महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी-देशभक्त, उच्चकोटि के साहित्य के रचनाकार, हिंदी-हिन्दू-हिन्दुस्थान के मंत्रदाता, हिंदुत्व के सूत्रधार वीर विनायक दामोदर सावरकर पहले ऐसे भव्य-दिव्य पुरुष, भारत माता के सच्चे सपूत थे, जिनसे अन्ग्रेजी सत्ता भयभीत थी, आजादी के बाद नेहरु की कांग्रेस सरकार भयभीत थी ...

25. वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया... पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर केराष्ट्रवादी विचारों का सूर्य उदय हो रहा है...



Monday 23 February 2015

" फ्लैट उग रहे है ,,सोसाइटी उग रही है .."

" बहुत अजब गजब घटना घट रही है हिंदुस्तान में ,,
फ्लैट उग रहे है ,,सोसाइटी उग रही है ..
बाजार उग रहे हैं मॉल उग रहे हैं साथ में ..
गेहूं नहीं उगता ..चावल नहीं उगता छप्पर नहीं उगता छान में 
धरने उगते हैं ,,कालाबाजारी उगती है 

एनजीओ उगते हैं हिदुस्तान में ...
सेवा नहीं उगती ..वृक्ष नहीं उगते ..दाल सब्जी उगने लगे रासायनिक खाद में
गोबर भी गायब ..दूध सिंथेटिक हु
आ ..
बिल्डर्स उग गये है राजनैतिक मकान में
सब कुछ उग सकता है ...भूख तो सदा से उगती रही शान में
किसान अमीर न हुआ आजतक भी ,,
दलाल ,,आढतिये ,,बिचौलिए और नेता खड़े हैं रईसी शान में
उद्योग को बंद रहने दो ,,नदी मत साफ होने दो ..
विकास की गाडी पटरी पर चढ़ गयी अगर ...एनजीओ निठल्ले बैठ जायेंगे
लोग खुश होंगे ...मगर एनजीओ वाले गरीब रह जायेगे
फिर धरने के लिए नये बहाने कहाँ से आयेंगे
बहुत अजब गजब घटना घट रही है हिंदुस्तान में ,,
फ्लैट उग रहे है ,,सोसाइटी उग रही है ..
बाजार उग रहे हैं मॉल उग रहे हैं साथ में
गेहूं नहीं उगता ..चावल नहीं उगता छप्पर नहीं उगता छान में
धरने उगते हैं ,,कालाबाजारी उगती है
बस एनजीओ उगते हैं हिदुस्तान में
" ... .----- विजयलक्ष्मी









" चलो सब बंद करके धरना देते हैं ..
हम कोई नेता नहीं कोई अभिनेता या समाजसुधारक नहीं हैं 
अजी बात सच ये भी वो भी कोई विचारक नहीं है 
कोई एक मुद्दा उठाया जनता के बेच उधम मचाया 
कुछ दिन पिकनिक सी मनाई और लौट गये घर 
नहीं समझे न ....कैसे समझोगे ..मतदाता बन चुके हो सब ..
कोई भाजपा का कोई कांग्रेस का ..कोई कम्युनिस्ट है कोई है अंधभक्त आ आपा का 
नागरिक बनो ,, नागरिक बनोगे तो जिम्मेदार बनोगे ,,
न काम त्यागोगे 
न मुफ्त की मांगोगे 
भिखारी नहीं बनोगे ,, 
मेहनत करोगे
आगे बढोगे ,,
कटोरा लिए मुफ्त की आदत जबसे लगी है ..
मुसीबत नागरिको की बढ़ी है 
याद रखना कुछ मुट्ठीभर चंद सरफिरे गद्दीनशीं न होने पाए 
अपनी मेहनत की रोटी में सुकून है 
धरने की नीति छुट्टी करने की नीति
सडक बंद परेशान हैं नागरिक 
मगर परम्परा बन चुकी पारम्परिक 
जिसे नाम कमाना हो ,,
मिडिया से थोडा दोस्ताना हो 
कुछ अच्छे पिछलगू दोस्तों से याराना हो 
जिसे कुछ किये बिना नाम कमाना हो 
जिस अख़बार में सुर्खिया पाना हो 
चले आओ जन्तर मन्तर चलो ...या रामलीला मैदान में घर बना लो 
चलो सब बंद करके

धरना देते हैं ..
हम कोई नेता नहीं कोई अभिनेता या समाजसुधारक नहीं हैं 
अजी बात सच ये भी वो भी कोई विचारक नहीं है 
कोई एक मुद्दा उठाया जनता के बेच उधम मचाया 
कुछ दिन पिकनिक सी मनाई और लौट गये घर
"--- विजयलक्ष्मी


Wednesday 18 February 2015

" जन्म कहीं जीवन कहीं ...कहाँ ठिकाना,, सोचती है "

" जानती हूँ ,मेरी स्तरहीनता ही कचौटती है ,
अल्प बौद्धिकता ही मेरी नीचा दिखाती है 
मालूम है सत्यभाष कठिन है उकेरना 
सत्य पर झूठ की चादर मुझे नौचती है 
मैं स्त्री मजलूम भी नहीं लेकिन ...,फिरभी 
दर-कदम जिन्दगी स्वाभिमान खोजती है
अभिमान के लिए मानिनी नहीं बनी औरत
देवी बनाकर पूजा, गर्भ में क्यूँ खौन्चती है
मेरे हक मेरी झुकी नजर ,,टूटी कमर है
मेरा प्रेम कर्तव्य, बेह्क ममता क्यूँ सोचती हैं
मेरा हक इबादत है ,,चुप्पी पुरुष बपौती पर
म्यान में रह.. औरत ज्यादा कब बोलती है
जननी हूँ मगर फैसला कोई नहीं ले सकती
जन्म कहीं जीवन कहीं ..कहाँ ठिकाना,, सोचती है
"---- विजयलक्ष्मी

" मगर ...मैं स्त्री कहाँ ....विद्रोहिणी बन बैठी "

" अगर डरी सकुची सी होती तो विमर्श करती 
लडकी होने पर लिखती कुछ शंकाए ढूंढती कुछ समाधान 
मगर ...मैं स्त्री कहाँ ....विद्रोहिणी बन बैठी ...
किसी और से नहीं स्वयम से भी ..
अगर ..जिन्दगी मुझे भी कुछ सामंजस्य की जगह देती तो ..
शायद ..लिखती सहमी सी आँखों का रोता हुआ सन्नाटा ..
जिसे पढ़ सकती दुनिया ..एक औरत की नजर से
देखती उन नजरो में छुपी उस बेरहम पीड़ा को
जो न चाहते हुए भी जिन्दगी के साथ चलती है
भूलने की इच्छा होते हुए भी ,,लहू के साथ बहती हुई प्रतीत होती है
उस समाज की कीचड़ और सामजिक आँख की वो चीकट सोच दिखाई देती
जहां औरत को उम्र के बंधन से पीछे छोड़ ..पचहत्तर वर्ष की उम्र में भी औरत होने का अभिशाप झेलना पड़ा
जहां औरत को औरत होने पर मान नहीं अपमान झेलना पड़ा
अगर मैं भी पैरो पर झुककर गिडगिडाती शायद ...रोटी मिल जाति पेट भरने को
मेरी ही इज्जत की बिना पर नौचती देह को लिए आँख में
विद्रोहिणी को कौन दे पनाह विद्रोह है उसका गुनाह ..
और गुनाह को मुआफी नहीं देता कोई ..पाप होता गर तो शायद ईश इच्छा कर देती पावन मुझे
लेकिन दृष्टिदोष में पारंगत हुआ समाज छिनने को उतावला सर्वहारा बनने की चाहत लिए
एक विद्रोहिणी को रास्ता नहीं मिलता ...मिलता है इनाम पत्थरों का जिन्दा रहते
मौत के बाद एक मन्दिर मिल भी जाये तो क्या ?
मगर मैं बनी भी तो विद्रोहिणी ...फिर भला क्यूँकर
अगर डरी सकुची सी होती तो विमर्श करती
लडकी होने पर लिखती कुछ शंकाए ढूंढती कुछ समाधान
मगर ...मैं स्त्री कहाँ ....विद्रोहिणी बन बैठी ...
किसी और से नहीं स्वयम से भी ..
अगर ..जिन्दगी मुझे भी कुछ सामंजस्य की जगह देती तो ..
शायद ..लिखती सहमी सी आँखों का रोता हुआ सन्नाटा ..
जिसे पढ़ सकती दुनिया ..एक औरत की नजर से "
------ विजयलक्ष्मी

Tuesday 17 February 2015

" चिंगारी दिखाकर उसे ढकता चला गया "

" हाल ए दिल सुनने का इक ख्याल ,,
जिन्दगी के रंग को रंगता चला गया ||
लम्हे इन्तजार के ठहरे रहे पलक पर
वक्त को क्या कहे वो बहता चला गया ||
अक्सर कोरों पर बैठ कहताहै किस्से
रंग ए वफा को बेढब रंगता चला गया ||
कोई समझ न सका हालात ए रंगत
बेमोल जिन्दगी को रंगता चला गया ||
तपिश की न पूछ सुलगता हुआ आलम
चिंगारी दिखाकर उसे ढकता चला गया ||
" ---------- विजयलक्ष्मी

Monday 16 February 2015

" ॐ नम: शिवाय "

ॐ नम: शिवाय ||


शिव की तपस्या का परिणाम थी गौरा,,
या गौरा के विश्वास की पराकाष्ठा का परिणाम 
गरल पीकर जिन्दगी का रंग खिलाया धरा पर 
जिन्दगी के कशमकश में विकल मचा कोहराम 
बतरस आनन्द दुनिया भई स्वार्थ आठो याम 
एक शिव हलाहल धार कंठ नीलकंठ हुआ नाम
मान रक्षा हित पितृ गृह जाकर भी तजे प्राण
विनाश सृष्टि का रचा देख प्रिया के तृषित प्राण
शिव ही सत्य शिव ही सुंदर शिव ही है कल्याण

वामांगी बनी धन्य शिव थे गौरा जगतजननी
शिव भोले में बस रहे जगतजननी के प्राण 
विवाहोत्सव का पुनीत शिव को मिला कन्यादान 
शिव तपस्वी ने किया गृहस्थ में सम्मान  ----- विजयलक्ष्मी 


शिव-पार्वती के विवाह समझाता है कि पुरुष और महिला का जीवन में ही नहीं बल्कि सृष्टि में समान अधिकार, वर्चस्व और स्थान है। ...शिव और शिवा एक-दूसरे से  अलग होकर क्या  वे सुखी रह सकते हैं ...और यदि नहीं तो  संतुष्ट भाव से सृष्टि को कैसे सुख दे सकते हैं। शायद इसलिए ही शिव-पार्वती की जोड़ी को सबसे आदर्श दांपत्य के रूप में पूजा जाता है।


शिव को विश्वास था कि पार्वती के रूप में सती लौटेगी तो पार्वती ने भी शिव को पाने के लिए तपस्या ।





ॐ नम: शिवाय ||
बारह स्‍थानों पर शिव के 12 ज्योतिर्लिंग----
1. सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित है।
2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थातिप है श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग।
3. महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।
4. ओंकारेश्वर ममलेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदाने देने हुए यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।
5. नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
6. बैजनाथ बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।
7. भीमशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।
8. त्र्यंम्बकेश्वर नासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।
9. घुमेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग।
10. केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग।
11. विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।
12. रामेश्वरम्‌ त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग। 

Thursday 12 February 2015

"कुछ अहद हो सच्चे से कुछ दोस्ती गहरी "

" मेरी जरूरत में तुम्हारी जेब बेमतलब,
मेरी ख्वाहिश है नाम लेने की इजाजत ||

क्या करना दुनियावी दौलत का भला
मेरी ख्वाहिश याद करने की इजाजत ||

पत्थर के महलों में ,,महरूम खुदा गर
मेरी ख्वाहिश इक तस्वीर की इजाजत ||

शिलालेख उकेरा है कलम ने खुदा की
मेरी ख्वाहिश इक तहरीर की इजाजत ||

कुछ अहद हो सच्चे से कुछ दोस्ती गहरी
कुछ यादे ठहरी ,,और मुसलसल इबादत ||
" ---- विजयलक्ष्मी





" कुरेद लेते हैं जख्मों को आप ही सी भी लेते हैं ,
सहरा हो या दरिया प्यास को ही पी भी लेते हैं ||

गुल उजाड़े माली गर आबाद गुलिस्ताँ हो कैसे 
पतझड़ के मौसम में बिन बारिश जी ही लेते हैं ||

गिरते टूटकर जो पत्ते बरसती ओस उनपर भी 
समेटकर दर्द,, दागों के साथ भी जी ही लेते हैं ||

गर खुद नहीं जिन्दा ,,खुदा की खुदाई हो कैसे 
बरसते अहसास के बादल पीकर भी जी लेते है ||

धरा पर लहू नहीं पानी से फसल उगनी चाहिए 
पसीना मेहनत का सच्चे सपूत बहा ही देते हैं || "------  विजयलक्ष्मी 

Tuesday 10 February 2015

" . पूछना तो चाहती हूँ .. " ठीक हो न तुम "

" ठीक हो न तुम "
पूछना चाहती थी 
लेकिन ..
जुबाँ उठती नहीं 
शब्द जैसे ठहर जाये है जिह्वा पर 
आवाज रुंध जाती है ..
और ..
पाते हैं मोहताज सा खुद को
सूख जाती है जुबाँ जैसे सदियों की प्यासी हो
नमी आँखों की छलक उठती है
लेकिन ..
जैसे खो जाने का डर पसर जाता है
मायूस होकर ..
समन्दर की लहरों का आलम देखकर
शब्द नौका समा जाती है उन्ही लहरों में
क्या मालूम ?
कौन जाने जवाब मिले न मिले ?
कशमकश !!
गूंजता रहता है खुद में ही सवाल ..
फिर एक ही जवाब उभरा ..
तेरी सांसे जिन्दगी का सबूत दे रही है न ..बस .
लेकिन ..
चाहकर भी नहीं पूछ पाना
पूछना तो चाहती हूँ .. बार बार तुमसे
" ठीक हो न तुम "| --- विजयलक्ष्मी 

" और बारात लौट गयी "

ममता बिकी
दूध की कीमत में कभी
कभी सुर्ख जोड़े की खातिर टोपी
दहेज ने  मौत को  गले लगाने को किया मजबूर
बिटिया दुल्हन बने कैसे
जेब में नहीं पैसे
और बारात लौट गयी
वो भी चुप था ...
पिता के आगे ,
कहता है बारात मैं ले आया ,,
अब तुम सम्भालो आगे
माँ अरमान हूँ ,,
पिता की शान हूँ
तुम्हारी जान हूँ
....तुम्हारे घरवालो ने कुछ तो जोड़ा होगा
ज्यादा नहीं तो थोडा होगा
प्रेमविवाह को कुछ तो अरेन्ज्ड बनाओ
कुछ नहीं पापा की अंगूठी
मम्मी को चेन ..
पापा को कहो मुझे कार में विदा कराओ
ममता बिकी
दूध की कीमत में कभी
कभी सुर्ख जोड़े की खातिर टोपी
दहेज ने  मौत को  गले लगाने को किया मजबूर
बिटिया दुल्हन बने कैसे
जेब में नहीं पैसे
और बारात लौट गयी  | ---विजयलक्ष्मी

Tuesday 3 February 2015

" साम्प्रदायिक भ्रष्टाचार का खंजर देशप्रेम की पीठ में दिया धकेल "

पाठ किताबो से गायब  लक्ष्मीबाई की अमर कहानी का ,
पढना किस्सा ज्ञान के पोथो में फिल्मो की महारानी का 
गद्दारों और जबर की तख्ती आज भी टंगी हुई राजधानी में
घोटाले बुर्के जितने लम्बे ,,शर्म मरी डूब चुल्लूभर पानी में
क्या खूब ,,चोरी और ठगी का पैसा धौले रंग में रंग डाला 
नोट वोट के बदले पहले अब बिकते मिले लालपरी महारानी में 
बर्बाद हुआ भविष्य भूत को रौंद डाला चमचो की मनमानी ने 
सच पूछो तो ,कठपुतली क्या देश चलाती गर्त में दिया धकेल
साम्प्रदायिक भ्रष्टाचार का खंजर देशप्रेम की पीठ में दिया धकेल     -- विजयलक्ष्मी 

Monday 2 February 2015

" चीटियाँ पूर्ण सामाजिक जीव हैं "

तलवार की धार पर धर्म और सत्ता के लालची और पाखंडी हैं ,
सोचती हूँ शीरे में लपेट लाल चीटियों को राह में डालकर भूल जाऊं 
पौधे में पानी की सीचन की तरह ... रोज शीरा डालूँ उनपर 
कुछ नहीं तो चीटियों का भोग लग जायेगा ...
तृप्त जीवात्मा आशीष देगी ... वो भी कुछ समय की भागदौड़ से फुर्सत पाएंगी 
सम्भवतया तुम सत्य से परिचित न हो ...चीटिया पूर्ण सामाजिक प्राणी है ,,
धरती के नीचे इनकी कोलोनिया होती है ,,
सजते है न्यायालय ... लगती है अदालते ..कामचोरी पर भी ,
ये हिंसक नहीं होती किन्तु इनके सिपाही तत्पर रहते है हर इक बदले के लिए
ये इन्सान की तरह दोहरे चरित्र की नहीं होती
इनके विद्यालय में कभी रविवार भी नहीं होता ईद होली दीवाली या ईसा सूली पर नहीं चढ़ाये जाते
यद्यपि चीटियाँ पूर्ण सामाजिक जीव हैं
लम्बी दो कतारे जैसे सडक पर करे एक ही दिशा में दौड़ी जा रही हो
न जाम न धरना ..न मक्कारी न भ्रष्टाचारी न आतंकी लाचारी
यहाँ कोई आक्षेप भी नहीं लगता किसी पर ,,
पुरुष को भी मर्यादा में रहना पड़ता है .
क्यूंकि चीटियाँ वैज्ञानिक तौर पर भी सम्पूर्ण सामाजिक प्राणी है
...और ..........मनुष्य ..? ---- विजयलक्ष्मी

Sunday 1 February 2015

" ए कवि .. कभी न लिख सकोगे जिसे कहते हो तुम कविता"

ओह ,अकेली ,
नितांत अकेली !
गजब ...कैसे सम्भव है ऐसा हो जाये 
तुम तो औरत हो ..
हर भोर निकलती है जीवन का श्रृंगार किये जानती हो न 
धरती खनक कर ठुमक उठती है
सिंदूरी चुनर ओढ़े ..सूरज से भी पहले ..और तुम ..उससे भी पहले
रात सोचकर सोई थी न इस सुबह के लिए
नींद भी करती है पूरी या नहीं ..
जब तुम्हे सोना चाहिए था खुद को खुद में समेटकर ,,लेकिन ...
प्रात: पेट पूजा की फ़िक्र ..टिफिन कुछ लम्हे rचिड़िया चहक उठी आंगन में.. कौन सी है ?
चिहुक उठा था मन.. झटक दिया वक्त के लम्हों को पकड़ना था उसे तो
चाय ... पानी घर मुह बाए देख रहा है उसे ..मुझे कब सम्भालोगी तुम ,
दोपहर की नाक पहले ही पकती नजर आई और नहीं था कोई लम्हा अपने लिए
पसीने की एक बूँद उभरकर ...लकीर बनती चली कभी कपोल पर और.. टपक !
टीवी में उभरा एक गाना ..कुछ रुनझुन सा .. मन थिरक सकता था लेकिन ..
औरत चारदीवारी के भीतर क्या आजाद है पूरी तरह से
बहराल घर है न उसका ....लेकिन
घर परिवार रिश्ते-नातेदार ..गुनगुना सकती है वो भी मधुर गीत लेकिन ..
आईने के सामने जाकर ठिठकी तो थी इक बार ..
एक लट उलझाकर सुलझा सकती थी अपनी नजरो के सामने ..लेकिन
घर के किसी कोने में वो खुद अकेली नहीं रहती अपने मन से उन्मुक्त
कब उठती है अपनी इच्छा से आँखों को खोलकर ,,
या सो सके कहकर ...नहीं उठेगी वो आज किसी की खातिर
या ..आज होटल बंद है उसका जाओ यहाँ से ..छुट्टी है मुझे भी गुनगुनाना है एक गीत
या फिल्म-अभिनेत्री सा इतराना है जिसकी तारीफे सुनकर तकती रह जाती है खुटकर भी दिनभर ,,
खीज उठता है मन कहने को --
"बुला लो न घर में चकरघिन्नी बनेगी तो आटे-दाल का भाव "
निकल गये कितने पड़ाव उम्र के ...कब बालो में सफेदी चमकने लगी....आज सोचा ..
एक पल को ...कैसी लगती हूँ मैं आज देखूं तो जरा ...लेकिन
सफेदी जैसे मुह चिढ़ा रही थी इस उम्र में ... अब आइना देखने को क्या बचा है ?
थिरके कदम क्या उम्र बची है तुम्हारी अब ?
आँखों के नीचे की लकीरे पीट रही थी दरवाजा बहुत तेजी से ...शायद ,,
कह रही थी अब !!.. उम्र ढुलक गयी मुट्ठी की रेत सी ,,
नजर नीची किये जुट गयी ..उसी तपस्या में ..जिसका परिणाम निर्भरता ही था सदा से
समाज ,परिवार, रिश्ते -नातेदार कोई नहीं आया कहने कभी ...
आओ तुम भी जी सकती हो स्वतंत्र होकर ,,
और पिता की झुकी आँखों का ख्याल ,,माँ का बीमार सा चेहरा ..बंद करता रहा मुझे
क्या कहू किसी को ..मैं एक औरत हूँ ..
जन्म और जीवन मेरे अपने कब थे ..जब मेरे अपने हुए तो ..मैं औरत नहीं लगी किसी को
सजावट और नजर सेंकने का साधन मात्र बनी |
क्या हुआ क्या ये सच नहीं है ...अगर नहीं तो कभी झांक लेना उन लम्हों में ,
जीवनसाथी कही गयी बनी कब ?
हमसफर सुना बहुत बार लेकिन हुआ सफर कब ?
मुझे खामोश ही रहने दो ..
मेरे एकांत में न झांको ए कवि ..
कभी न लिख सकोगे जिसे कहते हो तुम कविता | --- विजयलक्ष्मी