लेकर तोड़ने की कोशिश तदबीर मेरे हाथों की लकीरों में .
सत्ता का नशा देखो ,बाकी क्या बचा कह दो ,कत्ल हुआ
बिखेरने की कोशिश हर हाल सम्भलना ,बाँध जंजीरों में.
ताबूत भेज सियासी दांव खेला है,बिका इन्साफ शरीरों में.
बदल सकने की हिम्मत को इतिहास बनाता है, सम्भलना
नोटवोट ,स्वार्थ, सत्ता बस बाकी बचा है क्या तहरीरों में.
उसे जिद हम बिखर जाये ,हम अभिव्यक्ति के पटल पर
मर्यादा, शिष्टता,शालीनता मौलिकता ले बंधे जंजीरों में .
झुग्गी जली जिस्म को लेकर जिन्दा आग कैसी लगा दी ,
टपकेगा लहूँ कोरों पे अब बहेगा तुझमें, तेरी ही नजीरों में.
कहानी नहीं लिखी यही इतिहास पढा जायेगा किताबों ,
आज अखबार में है, कल अब होगा चर्चा इतिहासकारों में.-विजयलक्ष्मी
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