हदे कब बांध पाती हैं महक को प्यार की .
.अक्सर सरहदें ही टूटा करती है महक से प्यार की.--विजयलक्ष्मी
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दिल कहता है किसी पे भरोसा न कर ..
तुझपे भरोसा किये बगेर बसर भी नहीं मेरी .--विजयलक्ष्मी
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ताज्जुब न कर जमाने का दस्तूर है ..
मतलब निकल जाने के बाद राह बदल लेते है लोग .--विजयलक्ष्मी
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मेरी महक ,हम रकीब के नाम कर चुके ..
जो नहीं बचा,अब इन पर गुमाँ करूं भी तो क्या .--विजयलक्ष्मी
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आंसूं ही आते है मौसम को देखकर अब तो ..
कोई मौसम अब हमे लुभाता ही नहीं है ..--विजयलक्ष्मी
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