Friday, 8 June 2012

अब इन पर गुमाँ करूं भी तो क्या ...



हदे कब बांध पाती हैं महक को प्यार की .
.
अक्सर सरहदें ही टूटा करती है महक से प्यार की.--विजयलक्ष्मी
     ****-----****-----****--------****------****--------****-----****------****

दिल कहता है किसी पे भरोसा न कर ..
तुझपे भरोसा किये बगेर बसर भी नहीं मेरी .--विजयलक्ष्मी 
     
   ****-----****------****-----****-----****-----****

ताज्जुब न कर जमाने का दस्तूर है ..
मतलब निकल जाने के बाद राह बदल लेते है लोग .--विजयलक्ष्मी 
 
   ****------****-----****-----****-----****-----****

मेरी महक ,हम रकीब के नाम कर चुके ..
जो नहीं बचा,अब इन पर गुमाँ करूं भी तो क्या .--विजयलक्ष्मी 

   ****-----****-----****-----****-----****-----****

आंसूं ही आते है मौसम को देखकर अब तो ..
कोई मौसम अब हमे लुभाता ही नहीं है ..--विजयलक्ष्मी 

No comments:

Post a Comment