Monday, 4 June 2012

तुम हों ...


  अब याद नहीं हम तन्हा है तन्हाई में भी  संग तुम हों ,
  है पसरा श्वेत रंग हर तरफ  जुदाई का वो रंग तुम हों |

अब याद कहाँ मेले फूलों के ,वो पुरवाई जो संग बही ,
   है दर्द ए चुभन लम्हों में ,न होकर भी तो  संग तुम हों |

कौन अहसास बयाँ कर पाया ,शब्द हुए फकीरों जैसे ,
   दे सकते किसको क्या हम ,हम फकीर औ रब तुम हों |

बीत रहे पल पल  तन्हा ,खुद से ही जुदा हम हों बैठे ,
हैं ख्वाब अधूरे लम्हे  अधूरे ,मेरा अधूरापन तुम हों |

हाँ कहना चाहों जो भी तुम ,कह दो खता  हमारी है ,
     क्या कहना  किसको  क्यूँकर ,सांसों का जीवन तुम हों |

                                                          -- विजयलक्ष्मी                          


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