तन निरा है कांच ,मनका हीरा मनका ही है .
कैसे सोचा सोच भला ये तन की है फरियाद ?
चल हट परे कैसा करे विवाद रुंड मुंड उतरें क्यूँ
शिव तो शिव है बैठ समाधि फिर कैसे पाप धरे..
चल बोला था ,नादान अभी है सब के जैसी सोच
जीवन इतना करे कलुषित क्यूँ तू ज्यादा न सोच .
बैठ अभी बस शब्द पढे है मन राग तो पढता ..
देह तो ढेर माटी, मन पावन कर गंगा कर स्नानं
बैठी शिव संग तू क्या समझेगा ,तू अभी बहुत नादान ..-विजयलक्ष्मी
कैसे सोचा सोच भला ये तन की है फरियाद ?
चल हट परे कैसा करे विवाद रुंड मुंड उतरें क्यूँ
शिव तो शिव है बैठ समाधि फिर कैसे पाप धरे..
चल बोला था ,नादान अभी है सब के जैसी सोच
जीवन इतना करे कलुषित क्यूँ तू ज्यादा न सोच .
बैठ अभी बस शब्द पढे है मन राग तो पढता ..
देह तो ढेर माटी, मन पावन कर गंगा कर स्नानं
बैठी शिव संग तू क्या समझेगा ,तू अभी बहुत नादान ..-विजयलक्ष्मी
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