जलाएगा क्या खाक ....
अच्छा किया , मौत के घाट उतार कर सकूं तो मिला ,
रोता रहे वो तन्हा ,जिसने अच्छा किया ही नहीं .
चल जी ले जिंदगी पुर सुकूं से तू अब ,रकीब से गिला .
बेवफा भी नहीं कह सकते ,दिल को मंजूर ही नहीं .
कुछ और गर नहीं तो लाश दफना तो देना जरूर ..
जलाएगा क्या ख़ाक? कौन लम्हा बाकी,जब जली नहीं.-विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment