Tuesday, 26 June 2012

जलाएगा क्या खाक ....

अच्छा किया , मौत के घाट उतार कर सकूं तो मिला ,
रोता रहे वो तन्हा ,जिसने अच्छा किया ही नहीं .
चल जी ले जिंदगी पुर सुकूं से तू अब ,रकीब से गिला .
बेवफा भी नहीं कह सकते ,दिल को मंजूर ही नहीं .
कुछ और गर नहीं तो लाश दफना तो देना जरूर ..
जलाएगा क्या ख़ाक? कौन लम्हा बाकी,जब जली नहीं.-विजयलक्ष्मी

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