Saturday 27 June 2015

" ये कैसा पागलपन लडकियों का ,"

" ये कैसा पागलपन लडकियों का ,,
यही सोचते हैं न सब ,,सबकुछ लुटाकर भी चैन से जी लेती है 
नहीं जानता कोई भीतर भीतर कितना रो लेती हैं 
कुछ न पाकर भी जिन्दगी स्वर्ग बनाती है 
डांट भी खा लेती है और पिटाई भी फिर भी चुप रहती है 
अपने हिस्से का खाना भाई को देकर भी खुश हो लेती है 
जन्म देने वालों के लिए पराई ,,पराये घर को जाकर परनाई
तुमने धान की फसल देखी है ,,जिसे रोप दिया जाता है दूसरे  खेत में लेजाकर 

लडकी नाम की पौध तो दुसरे के खेत में रोपी जाती है ...
लहलहाती है खुशबू बिखरती है और बांटती है खुशियाँ ,,
कभी लडके भी रोपकर देखें हैं ?
लडकों को क्यूँ नहीं भेजा जाता ..कभी सोचकर देखना ..
शायद वो इस लायक ही नहीं है किसी को सम्पूर्णता से अपना सके
किसी गैर को बिना स्वार्थ खुद को न्यौछावर कर सके ,
न धर्म न भावना ,,बस निरा स्वार्थ ,,
बेढंगी बदरंग दुनिया बनाने के माहिर होते हैं लडके
रोटी कपड़ा अपने स्वार्थ हुए पूरे तो ख़ुशी मिलती है ,,
अपने मन के चलते अँधेरे में अपनी बहन की भी चुन्नी खींच लेते हैं लडके
अलमारी में रखी चुन्नी देखकर भी चुप रहती है ,,,भाई के गुनाहों पर माफ़ी मांगकर रो लेती है
क्या करे ...पिता का कर्ज और बेटी का फर्ज याद रखती है लडकी ,
पराई होकर भी जीवन भर आँखों में सजाती है खुशियों की दुआए
दुनिया को बसाने को धरती बनाई वो भी लडकी ,
जीवन चलता रहे सांस चलती रहे हवा बनाई वो भी लडकी ,
सांस भी बनाई तो भी लडकी ,,
लडकी के अहसास पुरुष में जगाना चाहता है उपरवाला शायद ,
शायद उसका अपनत्व का पागलपन ही दुनिया को मुक्कमल करता है ,,
खत्म हो जाएगी लडकी के बिन सृष्टि सारी
इसीलिए ईश्वर भी लडकी बनानी बंद नहीं करता है
"------- विजयलक्ष्मी

Sunday 21 June 2015

Happy father's day

Happy  father's  day

सभी पापा को आज के दिन की विशेष शुभकामना !!
आज फेसबुक पर सब अपने अपने पापा को best wishes देने में लगे हैं ......सच बताना कितने लोगो के पापा फेसबुक खोलकर देखतें हैं ,...क्या मात्र एक दिन की बधाई उनकी ख़ुशी है ,क्या कभी कुछ घड़ी उनके पास बैठकर देखा है ...जाना है जिन्दगी के उन अनछुए लम्हों को जो किसी को बांटने की उन्हें फुर्सत न हुयी ...क्यूंकि उन्हें जाना होता था धन कमाने ...हमारी शिक्षा ,हमारी किताबे हमारी जरूरत को पूरी करने ..... सुबह जल्दी जाना शाम गये घर लौटना ,,,कभी डांटना कभी परेशान होना ....कभी तसल्ली के दो शब्द कहे किसी ने अपने पापा को ...एक बार सिर्फ एक बार कहकर देखो ..".पापा आप परेशान मत हुआ करो मैं हूँ न "!!........मैं नहीं कह सकती अपने पापा को लेकिन ..हर वक्त साथ है मेरे ..पापा भी माँ भी .......आप दोनों थे तो हम हैं ..आज है ..घर है...बहन भाई है... रिश्ते नाते हैं ...क्यूंकि इन सबमें आप दिखाई देते हो है और हमारे भीतर आपके दिए हुए संस्कार हैं ...आपका प्यार और एक सुखद अहसास ...शुक्रिया , भगवान जी ..मेरे पापा माँ को खुश रखना अपने पास !!-- विजयलक्ष्मी


Happy father's day....!! ....माँ का एक दिन ,,,एक दिन पिता का ,...बाकी दिन ..अरे हाँ एक दिन राखी का याने एक दिन बहन का और एक दिन टीके का मतलब भाई का ....दादा दादी का भी एक दिन हो गया एक हुआ दोस्ती के नाम ...एक ... और बाकी दिन का क्या .. वैसे एक राज की बात बताऊँ ...कोई नहीं बोलेगा ....मन में घुटते रहेंगे लेकिन .....क्यूंकि कुछ पुरुष जनक तो होते हैं किन्तु पिता नहीं ....बच्चे उनके लिए सम्पत्ति की तरह होते हैं जिसे जैसे चाहे घुमाया जा सके ....बच्चों पर निर्णय थोपते हैं ...पूरा न करने पर उन्हें समय समय पर इन बातों का अहसास कराया जाता है .....देनी तो नहीं चाहिए किन्तु ...जनक बनने के साथ पिता भी बने ...रिश्तों में मिठास और प्रगाढ़ता उम्र भर रहेगी और रिश्ते की सार्थकता भी सिद्ध होगी | ---- विजयलक्ष्मी



Friday 19 June 2015

"खेत में उगती मिलिती है फांसी वाली रस्सी "



सूरज जर्द हो गया था 
खो जाती है उसकी लालिमा आँखों में उतरने से पहले 
साँझ भी देर से होने लगी है जैसे इन्तजार लम्बा हो गया हो 
और काम का बोझ बढ़ता जा रहा है 
सूरज भी सोचता होगा साँझ के पहलू से रात उजागर हो 
कुछ समय तो मिले रात के साथ चैन से बैठने का दो घड़ी भर
दिन की तपिश और काम की मारामारी आजकल चैन नहीं लेने देती
सब सर्दी में मांगते है सूरज को ,,और बरसात की कीचड़ से उबकर सुहाता है सूरज
हवा भी सूरज से मिलकर उसे क्या समझाती और ताव खाने लगती है आजकल
इन सबसे आगे बढकर धरती ने भी गर्मी से इतनी दोस्ती बढ़ा ली जैसे रिश्तेदारी हो पिछले जन्म की कोई
हे भगवान ,,जाने कब उबलते मौसम में बरसात होगी
जाने कब खेत में हरियाली आएगी
पर किससे कहूँ मन की व्यथा
आजकल खेत उगा रहे है कर्जा
खेत में उगती मिलिती है फांसी वाली रस्सी
और जिन्दगी का धोखा
बसंत की राह में तो मुश्किले बहुत है
----- विजयलक्ष्मी

Thursday 18 June 2015

" भीग रहे हैं भीतर बाहर इन्द्रधनुषी रंग में "


मधुर मदिर मनोहर लालित्य रंग ढंग में ,,
भीग रहे हैं भीतर बाहर इन्द्रधनुषी रंग में
--- विजयलक्ष्मी


उफ़ !
इतनी तेज धडकन 
महसूस हुयी 
एकबार ही 
और तूफान 
नहीं
झंझा था
हिला गया झकझोर कर
शांत करो खुद को
अभी वक्त नहीं आया
ठहरो ..
यही हूँ मैं ..
सामने ..
तुम्हारे
हमेशा की तरह
बस
एक बार मुस्कुरा दो
!!------- विजयलक्ष्मी



2.
वक्त की रागिनी बजी 
माधुरी सी बांसुरी गुनी 
स्वर उठेंगे गूंज 
तट पर नहीं 
लहरों के उपर 
अथाह बिखरे रंग
सूरज डूबता सा
दिन टूटता सा
अहसास के मोती लिए
जब क्षितिज गगन
एकाकार हुए थे
कागा गा उठा पंचम सुर
कोयल हक्लाती बोल उठी
उफ़ !
सूरज क्यूँ पूरब में डूबा
और धरती गहरा उठी
सूरज को न पा ..
मनुहरिन और पुजारिन
ये क्या ..
मृत्यु शैया .
नहीं ...
शांत जीवन ..
निष्णात अंत
उद्विग्नता का समापन
नफरत और ईर्ष्या से दूरी
सिर्फ "तुम "
आजादी भी है
मुहब्बत भी है
मालूम है हम केंद्र है एक दुसरे के
और
तुम
कदाचित चिंतित हो
निवारण हो जायेगा
मुस्कुराहट उभरेगी
रहस्य ...नहीं
प्रेमरस है
जिसे पीकर ...
जिन्दा हो जाउंगी
सदा के लिए
साथ दूंगी तुम्हारा
रम जाउंगी
आत्मा के उसी छोर
मैं !!
लगाते हो आवाज
जहा से ..
तुम .
------- विजयलक्ष्मी

Wednesday 17 June 2015

" क्या इन्तजार पूरा होगा "

क्या इन्तजार पूरा होगा 
क्या जिन्दगी लौटेगी कभी फिर से 
क्या सूरज चमकेगा मुंडेर पर मेरी 
क्या इबादत मेरी रंग लाएगी
क्या इन्कलाब की हद तक वफा जाएगी 
क्या सूरज की चमक चांदनी मुझे बनाएगी
क्या पुहप की खुशबू रंग लाएगी
क्या बीतेगी काली नागिन सी रात
क्या उगेगा जीवन में बोया जो राग
क्या यूँही जलायेगी ये आग
क्या बन्दगी ईमान बन पायेगी
क्या रागिनी कोई वतन के राग को गुनगुनायेगी
क्या मुकम्मल से दिन ...राष्ट्रिय गौरव महकाएगी
क्या इल्जाम माथे के धुलेंगे कभी
क्या मानवता जिन्दा रह पायेगी
क्या खेत की भूख किसानों को बचाएगी
इन्सान इन्सान को डस रहा ,,ईमान साप का इंसानों में बस रहा
जहर ही जहर को मारेगा कैसे ,,
विज्ञानं बहुत दूर है इंसानी जेहन से
दिमाग में उठने वाले तूफ़ान से ,बदले की आग से
भीतर स्वार्थ की आग से जले फूंके गुबार से
क्रोध में उठते शेषनाग के पाश से
ईमान सुलगा है मगर धोखा जन्म ले चुका है
जबर्दस्त जबरदस्ती लिए बंदूक मौत को निगल चुका
पाप पूण्य खिलौने हो गये
देख लो इन्सान कितने सयाने हो गये
स्वार्थ के लिए कोई भी ढंग अपना सकते है
आज रावण बहुत है गधे को बाप बना सकते हैं
श्रवण कुमार इक्का दुक्का कोई होगा ,,शायद
इसीलिए धरा का वर्चस्व बाकी है
हर गिलास में नशा हर हाथ में साकी है
किसी को दौलत का किसी अहकार स्वत्व का है
हम नादाँ भी इस दुनिया के मगर जाने क्यूँ हमे अपनत्व का है
कोई जीवन धन को समझ रहा
कोई बेमतलब धर्म को रगड़ रहा
कोई भक्ति के दिखावा कर गंगा नहा रहा
कितना मुर्ख है व्यर्थ में बतंगड बना रहा
नग्नता का बोलबाला है
छिछोरे हुए संस्कार ,,शब्द कांटे बन गये
सत्य को मार कर झूठ के पराठे बन गये
इसी रोग में मरे हुए भी जिन्दा है
जितने जिन्दा है हकीकत में वही शर्मिंदा है
पूछ लो खुद से खुदी के भीतर झांककर
मालूम है कहोगे पहले खुद को भी देख लो आंककर
अपने भीतर झांकर देखूं भी क्या भला
मैं मुर्दा हूँ ,,गीली सी कब्र में जज्बात बिखरे है
सुनो ,ये मत पूछना मुझसे ..लम्हे अकेलेपन के क्यूँ अखरे हैं .--- विजयलक्ष्मी

Tuesday 16 June 2015

" आओ मिलकर योग का विरोध करें ,,

" भोर का सूरज भारत के प्रकाशरश्मियों को और अधिक कीर्तिवान बनाने की राह पर अग्रसरित है ....भारत का योग अंतर्राष्ट्रीय आसमान पर अपनी चमक को और भी अधिक प्रकाश से प्रकाशित करेगा ...और सार्थक करेगा ,,भारत विश्वगुरु बनने की राह पर अपने कदम क्रमशः बढ़ा रहा है | शुभकामनाओ सहित भारतीय संस्कृति के अनुगामी सभी भारतीयों को बधाई .... ...स्वस्थ भारत .... विकासोन्मुख भारत ||" ------ विजयलक्ष्मी




" आओ मिलकर योग का विरोध करें ,,
विरोध करे स्वास्थ्य का अपने 
विरोध करें मेडिकल के खर्च का अपने 
विरोध करें लम्बी उम्र का ..अनुरोध करें मृत्यु शीघ्र का 
विरोध करें जीवन की जरूरियात का 
विरोध करें करें तो दिन और रात का
विरोध करे ढलती साँझ उगते प्रात का
विरोध करें जिन्दगी के स्वास का
विरोध करें जीवन आस का
विरोध करें मन के विकास का
विरोध करें निरोगी तन की आस का
विरोध के स्वर हो इतने मुखर गूंजे दूर तक
जा पहुंचे धरती से दूर सूरज चंदा के छोर तक
गगन के किनारे रोये सरे सितारे ...
गमकना कान्ति देह का बहुत बुरा है यार
मिटना क्लेश भ्रान्ति उससे बुरा है यार
बस बचा आजकल एक ही उपाय ...
करें विरोध गूंजे स्वर जन्नत के द्वार तक
फिर वही एक नारा हो जाए
देख लेंगे सूरज को भी रौशनी ले जाए
न बरखा हो धरा पर तो क्या हुआ ...
हमारा प्यारा "शांति धर्म " अँधेरे में रह जाये ......
आइये न मानिए घाटे में रहेंगे
पागल नहीं हुए अभी जो योग की कहेंगे
उपयोग कीजिये विरोध कीजिये मत इस्तेमाल निरोध कीजिये
क्या हुआ धरा जो कम पड़ जाये किसी दिन
बस एक बात मानिये ---
बकरी जगह बच्चे की बली दीजिये अपनी ईद की इदी से फिर मजे लीजिये
आओ मिलकर योग का विरोध करें ,,
विरोध करे स्वास्थ्य का अपने
विरोध करें मेडिकल के खर्च का अपने
विरोध करें लम्बी उम्र का ..अनुरोध करें मृत्यु शीघ्र की
विरोध करें जीवन की जरूरियात का
विरोध करें करें तो दिन और रात का
"-------- विजयलक्ष्मी

योग --- जिसका सीधा सा अर्थ है जोड़ना ...अर्थात , शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का काम होता है ....यही भारतीय आध्यात्म भी कहता है |
पंतजलि ने योगदर्शन में, जो परिभाषा दी है 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः', चित्त की वृत्तियों के निरोध = पूर्णतया रुक जाने का नाम योग है। इस वाक्य के दो अर्थ हो सकते हैं: चित्तवृत्तियों के निरोध की अवस्था का नाम योग है या इस अवस्था को लाने के उपाय को योग कहते हैं।
(१) पातंजल योग दर्शन के अनुसार - 
योगश्चित्तवृत्त निरोधः ---------- चित्त की वृत्तिय
ों का निरोध ही योग है।
(२) सांख्य दर्शन के अनुसार -
पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते। -------- पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है।
(३) विष्णुपुराण के अनुसार -
योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने।--------- जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।
(४) भगवद्गीता के अनुसार -
सिद्दध्यसिद्दध्यो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्चते ।----- दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है।
(५) भगवद्गीता के अनुसार -
तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्। ------- कर्त्तव्य कर्म बन्धक न हो, इसलिए निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकर कर्त्तव्य करने का कौशल योग है।
(६) आचार्य हरिभद्र के अनुसार -
मोक्खेण जोयणाओ सव्वो वि धम्म ववहारो जोगो। --------मोक्ष से जोड़ने वाले सभी व्यवहार योग है।
(७) बौद्ध धर्म के अनुसार -
कुशल चितैकग्गता योगः। ------------कुशल चित्त की एकाग्रता योग है।
सच बोलूँ तो ..योग मतलब शरीर को मन को अधिक समय तक खुद को युवा रखने का साधन ..मतलन मृत्यु देर में आएगी ..बिमारियां दूर रहेंगी याने डॉक्टर पर होने वाले खर्च में कटौती ..
संहारक शक्तियों की पराजय ... ॐ का उच्चारण स्वांस को नियंत्रित करने में सहायक है ..जिससे स्वर साधने में भी सरलता महसूस देती है ....साँस को यदि प्रकृति से मिला लिया जाये तब प्रगट होते है चमत्कार ...मसलन अमरता की तर्ज र आयु का सैकड़े में पार करना |
राक्षसी प्रवृत्ति वाली भूख को भी नियंत्रित किया जा सकता है और शरीर की उर्जा का संरक्षण भी किया जा सकता है ,,,यही है योग
योग द्वारा जीवन के हर दिशा और दशा के आनन्द में वृद्धि कीजिये |
----- विजयलक्ष्मी

Sunday 14 June 2015

" क्या त्याज्य स्त्री ही कुलटा और कुलक्षिणी होती है "

हमारा तथाकथित सभ्य समाज किसी भी गलती पर हर अंगुली औरत की तरफ ही उठाता है. .......चाहे वो चारित्रिक हो या वस्त्र सम्बन्धी...या विचार को लेकर.या स्त्री के अस्तित्व की लड़ाई....क्यूंकि पुरुष कोई गलती नहीं करता और हर स्त्री गलतियों का पुतला है.....और हरपुरुष दूध का धुला........ और घर की अन्य सभी तथाकथित औरते कुलीन |
क्या त्याज्य स्त्री ही कुलटा और कुलक्षिणी होती है........मसलन सीता का पुन: वनवास उसी का हिस्सा था.......और जिम्मेदारी भी औरत पर....... तलाक के समय प्रयास होता है बच्चे माँ के ही साथ रहे..... बस एक सवाल पूछू भगवान बने पुरुष पति से ...क्या उस बच्चे को माँ के घर से लाई थी..... स्त्री एकाकी  होकर यदि बच्चे का पालन कर  सकती है तो  पुरुष क्यूँ  नहीं क्यूँ न वंशबेल को  उसकी जड़ के साथ  छोडकर निकले स्त्री  स्वयम को बांधकर पुरुष को आजाद क्यूँ करे ..... जिससे वो एक और कुँवारी कन्या से ब्याह कर सके ?...... क्या उसे जीवन यापन का उतना हिस्सा मिलता है जिसकी हकदार है वो.... क्या उत्पन्न परिस्थितियों के लिए केवल स्त्री ही जिम्मेदार होती है...... और यदि स्त्री इतनी सक्षम है...तो..समाज उसे बंधक बनाकर पर्दे में क्यूँ रखता है...क्यूँ डरता है स्त्री को पूर्ण इकाई मानने से....कमतर क्यूँ आंकता है ,,उसे गृहस्थ में बराबर सहयोग न करके भी सामाजिक दिखावा क्यूँ करता है ....सच बोलना अपनी अर्धांग्नी को सही मायने में अर्धांगनी कब कब समझा ? .....चलो यही पूछ लो खुद से क्या कभी सच्चे दोस्त की तरह सुना और समझा ? ......... ईमान से झांकना खुद में
आइना बनने की चाहत में रंग लिया इक-छोर
खुद-पर नजर जाती तो जाती-क्यूँकर भला ---- विजयलक्ष्मी 

Monday 8 June 2015

" मुहावरो के आधुनिक अर्थ...( वाह क्या दुश्मनी है )"

बदलते परिवेश और मानसिकता के साथ शब्दों के अंदाज भी बदले जा रहे हैं ....आप भी आनन्द लीजिये अगर ले सकें ...इस नई सोच का ---
मुहावरो के आधुनिक अर्थ...( वाह क्या दुश्मनी है )
1. सुख की जान दुःख में डालना = शादी करना
2. आ बैल मुझे मार = पत्नी से पंगा लेना
3. दीवार से सर फोड़ना = पत्नी को कुछ समझाना
4. चार दिन की चांदनी वही अँधेरी रात = पत्नी का मायके से वापस आना
5. आत्म हत्या के लिए प्रेरित करना = शादी की राय देना
6. दुश्मनी निभाना = दोस्तों की शादी करवाना
7. खुद का स्वार्थ देखना = शादी ना करना
8. पाप की सजा मिलना = शादी हो जाना
9. लव मैरिज करना = खुद से युद्ध करने को योद्धा ढूंढना
10. जिंदगी के मज़े लेना = कुँवारा रहना
11. ओखली में सिर देना = शादी के लिए हाँ करना
12. दो पाटों में पिसना = दूसरी शादी करना
13. खुद को लुटते हुऐ देखना = पत्नी को पर्स से पैसे निकालते हुए देखना
14. पैरों तले जमीन खिसकना = पत्नी को साक्षात सामने दिखना
15. शादी के फ़ोटो देखना = गलती पर पश्चाताप करना
16. सर मुंडाते ही ओले पड़ना = परीक्षा में फेल होते ही शादी हो जाना
17. शादी के लिए हाँ करना = स्वेच्छा से जेल जाना
18. शादी = बिना अपराध की सजा
19. बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना = दुसरो के दुःख से खुश होना
20. साली आधी घर वाली = वो स्कीम जो दूल्हे को बताई जाती है लेकिन दी नहीं जाती.

" और वक्त की आंख में डालकर आँख आइना बन जाओ "

कैफियत न पूछ दिल के हाल बुरे है ,,
हम भूलते नहीं उन्हें वो याद नहीं करते 
जिन्दा हैं बता देना ए हसरत उनको 
बात इतनी सी हम फरियाद नहीं करते
--- विजयलक्ष्मी



न द्वंद है न कोई विरोधाभास है ,
धरती गगन का आपसी विश्वास है 
हरित है धरती क्यूंकि प्रकाश है 
धरती के परीत: पसरा आकाश है
--- विजयलक्ष्मी


सुबह सवेरे भोर हुए सूरज उग आया खिड़की पर बोला उठ जाओ 
जागो खोल आँख जीवन पथ पर आगे और आगे बढ़ जाओ 
वीर बनो कायरता का बाना न खुद ओढो न भविष्य को उढाओ 
समय ठहरता कब है जो तुम ठहर गये .. सोच समझ कर बतलाओ 
क्रांति की भ्रान्ति नहीं मशाल न जल सके गर कोई इक दीप ही जलाओ 
झूठ दिखावे की दुनिया में कभी तो सत्य के चेहरे को भी सामने लाओ
छल प्रपंच को छोड़ उतारो झूठ से बना बुरका सत्य से पर्दा उठाओ
कब तलक ठहरे रहोगे मन बीथि में लगे विचारों के जाम में कदम आगे बढाओ
नव पल्लव सम नवप्रभात के नव सूरज सा प्रथम कदम आगे बढाओ
बीनकर दीप से जलते सितारे अँधेरे के आंचल में सजा नव गीत गाओ
पुष्प से खिलकर मन सुगंधी को जीवन पथ पर महकाओ ..
और वक्त की आंख में डालकर आँख आइना बन जाओ
----- विजयलक्ष्मी


Saturday 6 June 2015

" वो कहाँ गये जिन्हें जख्म मिले देह पर और आत्मा पर छाले थे "

खबरनवीसों सोचो और पढो खबर अख़बार के हवाले से ,
क्यूँ आजादी की डायरी के पन्ने कुछ ही नाम सम्भाले थे ,
वो कहाँ गये जिन्हें जख्म मिले देह पर और आत्मा पर छाले थे 
घर दर छूटे जिनके जिन्दगी के भी पड़े लाले थे 
फखत कुछ क्यूँ बाकी जो आजादी से सत्ता सम्भाले थे ..
कौन है जो लगा ..उन्हें ढूँढने के प्रयास में
दफन कर दिए बलिदानों के नाम तक इतिहास में
क्या नेहरु गाँधी ही बस आजादी ले आये है,
उनका वारिस भी तो ढूंढो जो अपनी जान गंवाए हैं
कितने वीरो और वीरांगनाओ ने बरात चढाई आजादी के साथ
और सजाई सेज सुहाग मातृभूमि के साथ
सो गये जो वतन के मतवाले थे ..
इबादत ए इश्क ए वतन...जो भारत पर मिटने वाले थे
उनका क्या देखे ...लड़े या नहीं मगर वसीयत में गद्दी सम्भाले थे
--- विजयलक्ष्मी



Friday 5 June 2015

बोलो पर्यावरण दिवस की जय



पर्यावरण दिवस ..." हर प्रयास सार्थक है "||
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पर्यावरण दिवस ...इच्छा के बाद भी एक वृक्ष सार्वजनिक स्थान पर न लगा पाने का अफ़सोस ...लेकिन अफ़सोस क्यूँ .....पर्यावरण को सुरक्षित रखने के तो बहुत उपाय है ...आप सहयोग कीजिये ...हर छोटा उपाय ही बड़े उपाय को और भी बड़ा करता है ,,,एक प्रयास ..पोलीथिन का प्रयोग कम से कम हो ..न हो तो बहुत अच्छा ,,,अपने घर के टेरेस पे ही सही कोई छोटी सी पौध गमले में ही क्यूँ न ..लेकिन लगाइए जरूर ...घर भी सुंदर लगेगा और पर्यावरण के समन्दर में एक बूँद ही सही आपका सहयोग भी होगा ...अपने घर के आसपास के किसी भी हरे वृक्ष को कटने न दे ...कोई वृक्ष पानी के आभाव में है ..कुछ नहीं तो ..उसकी प्यास बुझाकर उसे मरने से बचाइए ...पंछियों के लिए जल रखिये ...वो भी हमारे पर्यावरण का आवश्यक अंग है ...घर के भीतर उन वृक्षों को लगारण ये जो छाया में भी जीवन यापन कर सकते हैं ...ये सोचकर सार्वजनिक वृक्ष ही पर्यावरण में सहायक है हाथ पर हाथ धरकर न बैठिये ...हर कोशिश ..छोटी या बड़ी ..आप सभी का सहयोग अपेक्षित है .
घर में तुलसी का पौधा लगाइए ...जो वातावरण और सेहत दोनों का ख्याल रखेगा |
सोचिये जरा ...बड़ा प्रयास कर न सके और छोटा किया नहीं ...क्या उचित होगा ?........और मनाइए आप भी अपना पर्यावरण दिवस ...प्रयास का एक दीप जलाकर !!--- एक नागरिक ( विजयलक्ष्मी )



पर्यावरण दिवस .. 
मतलब कुछ सेमीनार 
मतलब कुछ वार्ता समाज के ठेकेदारों की 
मतलब कुछ गोष्ठियां 
मतलब कुछ जमावड़ा 
मतलब कुछ चिन्तन का दिखावा
मतलब लम्बी लम्बी बातें
मतलब वृक्षों की चिता पर उठती लपटों सी चिंता
मतलब गंदे नदी नाले
मतलब खनन पर सम्वाद
मतलब कुछ वाद कुछ विवाद
मतलब समय का सदुपयोग के कागज भराई
मतलब कुल मिलाकर मिडिया पर नया प्रपंच रचने का साधन
मसलन कुछ लकड़ी की टाल
कुछ समाज के ठेकेदार
कुछ जंगल काटने वाले
कुछ खनन के मतवाले
कुछ पीक थूकने वाले
कुछ बीडी सिगरेट का सुट्टा फूंकने वाले
कुछ लकड़ी के व्यापारी
कुछ नेता भारी भारी...करेंगे सारी तैयारी ,
दिनभर भाषण की मारामारी ,,,
एसी में विचार विमर्श दिखावे का परामर्श ,,जनता को सीख ...
रुपयों का खर्चा कागज पर चर्चा ,,
महज दिखावे को कोई एक आध पेड़ लगेगा ,,
चार दिन बाद बिन पानी बेचारा मरेगा ..,,
और पर्यावरण दिवस गुणगान अख़बारों और मिडिया में चर्चा का विषय रहेगा
असर ढ़ाक के तीन पात ..
बोलो पर्यावरण दिवस की जय ,,हिन्दुस्तान में तो ऐसे ही मनेगा ---- विजयलक्ष्मी




सम्भालों जिंदगी बदल रही है..
प्रकृति को मारोगे तो तुम जीवित रह पाओगे क्या .?. 
वृक्ष विहीन धरा न करो दोस्तों..
बिन वृक्षों के तो सोचो साँस भी ले पाओगे क्या .. ?
हरित बाना धरा का न नोचो ..
धरती को मिटा कर भला फिर तुम पाओगे क्या..?
वजूद धरणी का जरूरी है दोस्तों ..
अपने लिए भी प्रकृति तत्वों को न बचाओगे क्या ..?
क्या दे रहे हों अपनी वंश बेल को..
जीवन की जरूरत आक्सीजन भी दे पाओगे क्या ? - विजयलक्ष्मी