Thursday 25 February 2016

" ॐ "

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 ॐ के 11 शारीरिक लाभ :-
👉 ॐ, ओउम् तीन अक्षरों से बना है :- अ उ म् ।
"अ" का अर्थ है उत्पन्न होना,
"उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास,
"म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना ।।
🙏 ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है । ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है ।।
👉 जानें, ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक...और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग.!!!
1. ॐ और थायरायड :-
ॐ का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है, जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है ।।
2. ॐ और घबराहट :-
अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है, तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं ।।
3. ॐ और तनाव :-
यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है ।।
4. ॐ और खून का प्रवाह :-
यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है ।।
5. ॐ और पाचन :-
ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है ।।
6. ॐ लाए स्फूर्ति :-
इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है ।।
7. ॐ और थकान :-
थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं ।।
8. ॐ और नींद :-
नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है । रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी ।।
9. ॐ और फेफड़े :-
कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है ।।
10. ॐ और रीढ़ की हड्डी :-
ॐ के पहले शब्‍द का उच्‍चारण करने से कंपन पैदा होती है । इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है ।।
11. ॐ दूर करे तनाव :-
ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर
तनाव-रहित हो जाता है ।।
👉आशा है आप अब कुछ समय ॐ का उच्चारण जरुर करेंगे । साथ ही साथ इसे उन लोगों तक भी जरूर पहुंचायेगे जिनकी आपको फिक्र है ।।

"प्रेम क्या है..?"

प्रेम देह नहीं है प्रेम विशुद्ध है ,,पवित्र  है तभी तक प्रेम है 
अन्यथा प्रेम भी सौदा है 
प्रेम समर्पण है किन्तु लालच नहीं 
प्रेम आत्मिक और अध्यात्मिक घटना है 
दैहिक प्रेम को प्रेम की सीढियों में नहीं गिना जा सकता
यदि ऐसा होता तो मीरा दीवानी न होती 
राधा कृष्ण से विवाह कर लेती 
विवाह सामाजिक मर्यादा की सीमा तय करता है
प्रेम की नहीं |
लाओत्से ----------
प्रेम एक ध्यान है
जिस में केन्द्रित हो जाओ.!
"प्रेम क्या है...?"
गौतम बुध---------
प्रेम एक
साक्षी भाव है दर्पण है..!
"प्रेम क्या है...?"
सुकरात-----------
प्रेम द्वार है
नए जीवन में जाने का.!
"प्रेम क्या है...?"
हिटलर------------
प्रेम एक एसा युद्ध है
जो भाव से जीता जाये.!
"प्रेम क्या है...?"
कृष्ण-------------
प्रेम तो समर्पण है
भक्ति है रम जाओ..!
"प्रेम क्या है...?"
ज़ीज़स------------
प्रेम एक रास्ता है जो
सुख की अनुभूति देता है..!
"प्रेम क्या है...?"
नीत्से-------------
प्रेम वो रस है
जो नीरस है
पर मीठा लगता है..!
"प्रेम क्या है...?"
मीरा -------------
प्रेम तो गीत है
मधुर आत्मा से गाये जाओ.!
"प्रेम क्या है...?"
  फ्रायड ------------
प्रेम वो स्थति है
जिस में अहम् मिट जाता है.!
"प्रेम क्या है...?"
ग़ालिब-----------
वो मदिरा है
जो नशा देती है
और दीवाना बना देती है.!
"प्रेम क्या ह...?"
हिप्पी लोग--------
प्रेम तो किये जाओ बस किये जाओ
अंत नहीं...!
"प्रेम क्या है...?"
सूरदास-----------
प्रेम एक एहसास है
जो ह्रदय को
ख़ुशी से भर देता है..!
"प्रेम क्या है...?"
ओशो-------------
तुम ही प्रेम हो
तुम प्रेम ही हो जाओ
तुम प्रेम में
दो होकर भी एक हो..!
"प्रेम क्या है...?"
पंतजलि-----------
प्रेम वो योग है
जो ह्रदय से उठ कर
भाव में बदलता है..!
"प्रेम क्या है...?"
विज्ञानं भैरव-------
प्रेम तंत्र है
दो आत्माओ को
एक सूत्र में बांधता है.!
"प्रेम क्या है...?"
मायाजाल---------
प्रेम वो मायाजाल है
जो हर मोह को त्याग देता है.!
"प्रेम क्या है...?"
गीता-------------
प्रेम परिभाषा है
खुद को स्वयं को
भाषित करने की...
!! 

Sunday 14 February 2016

" बस मन गया अपना तो वेलेंटाइन डे || "



हैप्पी वाला वेलेंटाइन है ||
दुआ भी करंगे ईश से दर्द ए दवा को भी कहेंगे ,
तन्हाईयो में भी मुस्कुरा उठे होठ ,यही चाहेंगे .- विजयलक्ष्मी
कृष्ण सा जीवन कृष्ण सा ज्ञान कृष्ण सा युद्ध कृष्ण सी कलाएं कृष्ण सा प्रेम ....क्या सम्भव है धरती पर जहां प्रेम अपनी पराकाष्ठ को छुए तो किन्तु अपवित्र न हो ...पूर्ण पवित्र प्रेम ,देह से विलग ,जहां शरीर विदेह जनक की तरह अलग थलग हो और प्रेम रहे शाश्वत सत्य बनकर ,जपे प्रतिक्षण ,डूबे उस प्रेम में ,जैसे.... जल में रहके भी कोई गीला न हो ...रात तो किन्तु अँधेरा न हो ...धुप सूखे भी नहीं ...जले मगर बर्फ सी ठंडक लिए ..आत्मा का शुद्ध सरल और शाश्वत रंग ...यदि हाँ ...तो समझो प्रेम पा लिया आपने ..और अगर मिलन की जरूरत है और पाने की लालसा बकाया है तो सब कुछ अधुरा ही है ...राधा सा प्रेम ...मीरा सा बावरापन.. सुर सी साधना तुलसी सी भक्ति ..सुदामा सी श्रद्धा बिखरा पड़ा है जैसे समेटने की देर है ... राधा सा शाश्वत अटल प्रेम ...राधा पूर्ण स्त्री ...जिसमे स्वयम में ही कृष्ण को समा लिया और उधौ के सम्मुख प्रगट कर प्रेम की पराकाष्ठा के दर्शन कराए ...प्रेम कृष्ण राधा सा ही शाश्वत और सत्य है बाकी वृथा ,देह के साथ शुरू और देह के साथ खत्म ..|देह के साथ रहकर आत्मा भी बीमार समझने लगती है खुद को ..देह रूठकर नेह से छूट जाती है और रह जाती है विलग आत्मा ..यही वो सत्य है जो जीवात्मा स्वरूप में प्रभु से मिलता है अत:प्रेम उज्ज्वल होना चाहिए ..जिसे आत्मा के साथ ले जाया जा सके ...सांसारिक मोह बंधन युक्त नहीं .." ईश्वर साक्षी रहे इस पवित्र प्रेम का "!




" बयाँ जो कर गयी आँखे हाल ए दिल तेरा 
बना गयी शाम ए गजल, वही मुकाम मेरा

रस आती नहीं जिंदगी जो तु शामिल नहीं 
सुकूं पायेगा कैसे तुम बिन, ये दिल मेरा

वो कौन पल जो मिले नज़रों से तुम आकर 
अमीत कहाँ ढूंढे बता दे, खोया है सकूं मेरा "



जब दिल और राग साथ हो .... बस मन गया अपना तो वेलेंटाइन डे ||
गिफ्ट करना है देह का नहीं नेह का दो
तन से नहीं मन से दो ....
सूरज सी रोशन मुस्कान खिल उठे ..
फूल महक उठे अहसास में ...
और बासंती पवन झूम उठे मन में ...
प्रकृति बन मन अम्बर पर छा जाओ तुम ...
और खिल उठे कायनात ...
एक दिन नहीं ..
हर लम्हा जिन्दगी का वेलेंटाइन होगा ...
सबको मुबारक होगा ...मुझे भी आपको भी ..
हम चले सोचते हैं मीरा बने या राधा
चाहिए तो कृष्ण ही -------- विजयलक्ष्मी

Thursday 11 February 2016

" नमामि शारदे !!"( वसंत पंचमी )



नमामि शारदे !!
पूरे साल को छह मौसमों में बाँटा जाता था उन्ही में एक है वसंत |जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं।
पौराणिक :---
1. वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था।
2. सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
3. गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे।
शैक्षणिक :---
जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं
एतिहासिक :----
1. पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं।
जगप्रसिद्ध है कि गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।
2. वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?
बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया।
कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसंत पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अत: पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है।
3. वसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवष्त्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिश्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया।
गुरू रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उध्दार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिश्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अत: युद्ध का पासा पलट गया।
इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।

Tuesday 9 February 2016

" कागज की कश्ती इश्क ए नाखुदा को मुद्दतें "


वो इक गुलाब था या काँटा बबूल का ,,
दर्द ए इन्तेहाँ सफर बेवफाई कबूल था ||
जिन्दगी में खफा मौत से किये जुस्तजू
आरजू ए दर्द औ बा-वफाई मशहूर था ||
------- विजयलक्ष्मी




" यूँ अमावस है ठहरी हुई रौशनी को मुद्दते,
न चाँद दिखा गगन में चांदनी को मुद्दतें ||

लगी आग जब , जली चौखटों को मुद्दतें ,
ढूंढते फिरते कहाँ दबी चिंगारी को मुद्दतें ||

इम्तेहान ए वफा यूँ,रही दरकार को मुद्दतें,
पैरहन कैसी कैसी ,यूँ जिंदगानी को मुद्दतें ||

इक चकोरी ढूंढती मिली चकोर को मुद्दतें ,
होश औ हवास बेखबर,इंतजारी को मुद्दतें ||

सलामी दूं किसे मैं यूँ इल्जामात को मुद्दतें,
यूँ बढ़ते कदम औ राह ए रवानी को मुद्दतें ||

कागज की कश्ती इश्क ए नाखुदा को मुद्दतें
ख़ाक ए नजर मिली मेरी गुमनामी को मुद्दतें ||" 

-------- विजयलक्ष्मी