चीखती नहीं आवाज चीरती है मुझे
लहू की शिनाख्त कर सजा तो सुना ..
सूरज के घर अँधेरा क्यूँ है भला ..चल दीप जला दूँ एक
क्यूँ चुप हों ...कटार घोंप कर दर्द का राग दे कोई ..सुर बजने लगे हैं
आज चाँदनी को दरकार हुई है दर्शनों की, देव सो गए किस्मत को सुलाकर
दीप जला दिया , मंदिर में आओ साँझ ढले की आरती लेलो अब .-विजयलक्ष्मी
लहू की शिनाख्त कर सजा तो सुना ..
सूरज के घर अँधेरा क्यूँ है भला ..चल दीप जला दूँ एक
क्यूँ चुप हों ...कटार घोंप कर दर्द का राग दे कोई ..सुर बजने लगे हैं
आज चाँदनी को दरकार हुई है दर्शनों की, देव सो गए किस्मत को सुलाकर
दीप जला दिया , मंदिर में आओ साँझ ढले की आरती लेलो अब .-विजयलक्ष्मी
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