मौलिकता या हकीकत ..
बयानबाजी या मुसीबत..
शब्दों का खेल या रुसवाई का सफर ..
देखो तितलियों के होली के रंग ..
झुलसती सी गर्मी और और तपता हुआ आसमान ..
चाँद तन्हां और आग उगलता सूरज..
आंधियों का खौफ, कभी बेबाकी और बेबसी ..
ताजातरीन खबर जो अखबार में छपी ..
छुपते चमकते सितारे ,जमीं के रिश्ते सारे ..
सावन की बौछार ..वक्त का सिला ..
देखना मुड मुड कर ..और बिजली सी कौंधना ..
रौशनी का बिफरना तडित का चमकना ..
बहना नदी सा ...सागर सा खारापन ..
कश्ती का टूटना ..नदिया का सूखना ..
किनारों का यूँ तन्हा देखना ..
बहुत अजीब सा है न कुछ ..
फिर अच्छे है सब ...इनमे तुम हों ..
चलो ...बहुत बुरे बन चुके सबसे
बादलों की सैर कर लेते है आज
जिंदगी और मौत के बीच के नपते फलसफों के फासले ..
कुछ कम हुए या बाकी है अभी ..बोल ?.
अब स्मितरेख से पूछ कहाँ छिपी है ...
बहनों की चीख ...ममता का दुलार .
वक्त मार ..और भूख लाचार ..
संसद का रोना ..सांसदों का बिकना ..
जनपथ और राजपथ..क्यूँ हैरान औ परेशान
फरमान या अरमान ..कुछ तो है अभी बाकी ..सोच कर देख ..
चल अब छोड़ ...हम भी भूल जाते है दर्द को ...विजयलक्ष्मी
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