Saturday 31 December 2016

नव कलैंडर वर्ष की शुभकामनाओ सहित ||



स्वागत है नये साल का ,
नये विचारों का 
नवयुग का 
बदलते लम्हों का 
आप सबके प्यार का 
प्रभु के साथ का 
बडो के आशीर्वाद का
छोटो को प्यार ,,,
बडो को सम्मान
नववर्ष की शुभ एवं मंगलकामना !!.- विजयलक्ष्मी


नव कलैंडर वर्ष की शुभकामनाओ सहित ||
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" कलैंडर टंगा है अभी भी उसी दीवार पर ,,
टंगा था एक बरस पहले जहां ..
याद दिलाता था भुलिबिसरी सी दास्ताँ
उसपर लगे स्याही के निशान बताते थे हमे
कुछ छुट्टियां दिखती बन बच्चो की ख़ुशी
प्रेस के कपड़ो का हिसाब ,,दूध की गिनती ..
अखबार की अनुपस्थिति कुछ जन्मदिन कुछ सालगिरह
जीवन पूरे कर चुके दादा जी की तिथियाँ
बीमार दादी की दवाई लाने की तारीख
चाचा चाची की शादी का दिन ,,
मुन्नी के स्कूल की छुट्टियां
पप्पू के आने में बचे दिन
बेटी के ब्याह के महीने ..
बुआ को राखी भेजने की याद कराने की तारीख
गैया के बियाने की सम्भावित तारीख़
नानी के घर जाने का हिसाब
नवरात्र शिवरात्रि दर्शाती होली और दीवाली
कभी गुरु गोविन्दसिंह की याद ,,
कभी ईद की छुट्टी का निशान ,,कभी गुरुग्रंथ साहिब की अकीदत
पडोस में होने वाली रामायण और सुखमणी जी का पाठ ..
कुछ आवश्यक फोननम्बर थामे टंगा रहा मुस्तैद
जाने अनजाने देखते पढते मिलने के पल
जुड़ गयी थी जैसे जिन्दगी हर पल
इसे भी बदलना होगा बदलती तारीख के साथ ,,
गुजरते साल से कलैंडर की तरह ही गुजरना है हमे भी
दादा मामा की तरह लिखी जाएगी मेरी भी तारीख
किसी को सुख देगी किसी को आंसू ..,,छोड़ जाएगी कुछ अहसास
साल दर साल बदलते कलैंडर पर ..
कुछ खो जाएँगी कुछ स्मृति चिन्ह सी चलती चलेंगी
साल का आखिरी दिन ..
और ..बदल जायेगा ये कलैंडर भी दीवार से
उसी कील पर नया कलैंडर ,,जैसे बदल रहा है वस्त्र समय भी
यादों के झरोखों से झाँकने को मजबूर करते लम्हे
गुजर रहे हैं एक एक कर आँखों की गली से होकर || "
------- विजयलक्ष्मी



Friday 30 December 2016

*क्रिसमस की सच्चाई ???

*क्रिसमस की सच्चाई ???
माना की आप व्यस्त रहते हैं लेकिन थोड़ा समय निकल कर अवश्य पढ़े हो सकता है कि आप क्रिसमस सच नहीं जानते हों।
मैं जनता हूँ कि बहुत से पास्टर और मसीही लोग इस सन्देश के खिलाफ होंगे मगर जो सच है वो आप सब को जानना चाहिए। मुझे आशा है कि बहुत दे मसीही इस सच को स्वीकार भी करेंगे।
25 दिसम्बर यीशु को जन्मदिन मान कर क्रिसमस बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। नये- नये कपड़े बनते हैं। कई तरह के पकवान बनते हैं। घरों में अच्छा-अच्छा खाना बनता है। घर सजाये जाते हैं। क्रिसमस ट्री को सजाया जाता है। छत पर बड़ा सा स्टार लगाया जाता है और क्रिसमस केक जिसके बिना क्रिसमस अधूरा सा लगता है। क्रिसमस ईसाईयों का प्रमुख त्यौहार है। क्रिसमस ईसाइयों की ख़ुशी का सबसे बड़ा कारण है।
चलिए अब आगे बढ़ते हैं-
*Q-क्रिसमस की शुरुआत कब, कैसे, और किसने की?*
*क्रिसमस रोम के सम्राट कोंस्टेन्टाइन ने 336 A.D में क्रिसमस बनाया* और तारीख 25 दिसम्बर रखी। *कोंस्टेन्टाइन एक गैर- मसीही सम्राट था* जो *नाम मात्र के लिए मसीही बन कर कलीसिया में घुस गया* और अपने नए कानून बनाये। *पहले 25 दिसम्बर को सूर्य देवता का जन्मदिन मनाया जाता था।* कोंस्टेन्टाइन ने मसीही लोगों के लिए 25 दिसम्बर पर क्रिसमस इसलिए बनाया ताकि गैर- मसीही और मसीही लोगो में प्रेम बढ़े और एक दूसरे से भाईचारे और मेल मिलाप से रहें। यह वह समय था जब मसीही लोगो को सताया जाता था और बाइबल पढ़ने की मनाही थी या तो रोम का कानून मानो या मौत स्वीकार करो।
*336 A.D यह वह समय था जब क्रिसमस यीशु के जन्म के रूप में नहीं था।*
*Q - तो किसने क्रिसमस को यीशु के जन्म दिन में बदला?*
आप को जान कर हैरानी होगी की *क्रिसमस 25 दिसम्बर को बनने के कुछ साल बाद रोमन कैथोलिक प्रधान पोप जूलियस प्रथम ने 25 दिसम्बर क्रिसमस को यीशु के जन्म दिन में बदला। यह वह समय था जब रोम में 25 दिसम्बर को सूर्य देवता का जन्म दिन मनाया जाता था जिसे रोमन कैथोलिक ने यीशु का जन्म दिन घोषित कर दिया।* आज जो 25 दिसम्बर छुट्टी और त्योहार के रूप में मनाया जाता है ये रोमन कैथोलिक का बनाया हुआ है जिसे यीशु के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है। *क्रिसमस मनुष्य का बनाया हुआ है ये मनुष्य की आज्ञा है।*

Thursday 29 December 2016

" इतिहास के झरोखे से ............||"

आखिर नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया था ? जानिए सच्चाई !
नालंदा विश्वविद्यालय का स्वर्णिम अतीत !!!
अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन दुनिया का संभवत: पहला विश्वविद्यालय था, जहां न सिर्फ देश के, बल्कि विदेशों से भी छात्र पढ़ने आते थे। इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने 450-470 ई. के बीच की थी। पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में स्थापित इस विश्वविद्यालय में तब 12 हजार छात्र और 2000 शिक्षक हुआ करते थे।
गुप्तवंश के पतन के बाद भी सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा। लेकिन एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव के तुर्क लुटेरे ने नालंदा विश्वविद्यालय को जला कर इसके अस्तित्व को पूर्णत: नष्ट कर दिया।
यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केंद्र था। इस विश्वविद्यालय में विभिन्न धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। इस विश्वविद्यालय की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी। इस महान विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके वैभव का अहसास करा देते हैं। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में अपने जीवन का एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में यहां व्यतीत किया था। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था।
यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था। विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10,000 एवं अध्यापकों की संख्या 2000 थी। सातवीं शती में जब ह्वेनसांग आया था, 10,000 विद्यार्थी और 1510 आचार्य नालंदा विश्वविद्यालय में थे। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं, बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं शती तक अंतरराष्ट्रीय ख्याति रही थी।
नालंदा विश्वविद्यालय को एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाले तुर्क लुटेरे बख्तियार खिलजी ने 1199 ई. में जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया। उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था।
ऐसा कहा जाता है कि बख्तियार खिलजी एक बार बहुत बीमार पड़ गया। उसके हकीमों ने उसे ठीक करने की पूरी कोशिश की, मगर वह स्वस्थ नहीं हो सका। किसी ने उसे नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र से इलाज कराने की सलाह दी। उसे यह सलाह पसंद नहीं आई। उसने सोचा कि कोई भारतीय वैद्य उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान कैसे रख सकता है और वह किसी काफ़िर से अपना इलाज क्यों करवाए। फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए उनको बुलाना पड़ा।
जब वैद्यराज इलाज करने पहुंचे तो उसने उनके सामने शर्त रखी कि वह उनके द्वारा दी कोई दवा नहीं खाएगा, लेकिन किसी भी तरह वह ठीक करे, वर्ना मरने के लिए तैयार रहे। बेचारे वैद्यराज को नींद नहीं आई, बहुत उपाय सोचा और अगले दिन उस सनकी बख्तियार खिलजी के पास कुरान लेकर चले गए। उन्होंने कहा कि इस कुरान की पृष्ठ संख्या इतने से इतने तक पढ़ लीजिये, आप ठीक हो जाएंगे!
वैद्यराज के कहे अनुसार, उसने कुरान पढ़ा और ठीक हो गया। लेकिन ठीक होने पर खुश होने की जगह उसे बड़ी झुंझलाहट हुई और गुस्सा आया कि उसके हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है ?
बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने व वैद्य को पुरस्कार देने के बदले बख्न्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया। उसने पुस्तकालयों को भी जला कर राख कर दिया। वहां इतनी पुस्तकें थी कि आग लगी भी तो तीन माह तक पुस्तकें धू-धू करके जलती रहीं। यही नहीं, उसने अनेक धर्माचार्यों और बौद्ध भिक्षुओं को मार डाला।
बता दें कि नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केंद्र था। प्रवेश परीक्षा अत्यंत कठिन होती थी। अत्यंत प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे।
इस विश्वविद्यालय में तीन श्रेणियों के आचार्य थे। ये श्रेणियां योग्यतानुसार बनाई गई थीं। नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे। 7वीं सदी में ह्वेनसांग के समय इस विश्वविद्यालय के प्रमुख शीलभद्र थे जो एक महान आचार्य, शिक्षक और विद्वान थे। एक प्राचीन श्लोक से ज्ञात होता है कि प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट्ट भी इस विश्वविद्यालय के प्रमुख रहे थे। उनके लिखे जिन तीन ग्रंथों की जानकारी उपलब्ध है, वे हैं: दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र। विद्वान बताते हैं कि उनका एक अन्य ग्रंथ आर्यभट्ट सिद्धांत था। इसके आज मात्र 34 श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस ग्रंथ का 7वीं शताब्दी में बहुत उपयोग होता था।
3वीं सदी तक इस विश्वविद्यालय का पूर्णतः अवसान हो गया। मुस्लिम इतिहासकार मिनहाज और तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के वृत्तांतों से पता चलता है कि इस विश्वविद्यालय को तुर्कों के आक्रमणों से बड़ी क्षति पहुंची। तारानाथ के अनुसार तीर्थिकों और भिक्षुओं के आपसी झगड़ों से भी इस विश्वविद्यालय की गरिमा को भारी नुकसान पहुंचा। इसपर पहला आघात हुण शासक मिहिरकुल द्वारा किया गया। 1199 में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया।

3.
ताजमहल की आयु --- एक वैज्ञानिक प्रयोग द्वारा 
6 फरवरी 1984 ई.भारतीय इतिहास का एक अविस्मरणीय दिन था इस दिन समाचार पत्रों में एक छोटा परन्तु महत्वपूर्ण समाचार दिखाई दिया । इस समाचार के अनुसार ताजमहल के लकड़ी के द्वार के एक प्रतिरूप (लकड़ी की छिलपट) की आयु (1984में) 625 वर्ष थी और इससे 89 वर्ष कम या अधिक , इस प्रकार वह लकड़ी का द्वार 1359 ईसवी में बना होगा और इस आयु में इस 89 वर्ष के सुधार के पश्चात्‌ उस लकड़ी का द्वार का समय 1450 ई. से 1270 ई.के बीच आता है।
वस्तुतः चमुना-तट पर ताजमहल की दीवार में दो लकड़ी के द्वार थे उक्त द्वारों में से पूर्व की ओर वाले द्वार की लकड़ी का कुछ भाग चाकू की सहायता से छीला गया तथा उसी लकड़ी की छिलपट को वैज्ञानिक शोध के लिये संयुक्त राज्य अमरीका के ब्रुकलिन विश्वविद्यालय भेज दिया गया था ।उस छिलपट की आयु का निर्धारण ब्रुकलिन विश्वविद्यालय के दो वैज्ञानिकों द्वारा रेडियो कार्बन पद्धति द्वारा किया गया था। यह उसी परीक्षण का परिणाम था
इस प्रकार लकड़ी का द्वार और ताजमहल का निर्माण अधिकतम 1270 ई से पूर्व हुआ होगा , परन्तु यदि हम सबसे बाद के 1450 ई. को ही सही मान लें तो भी ताजमहल का निर्माण कम से कम 1450 ई से पहले होना प्रतीत होता है यह वह समय था जिसके लगभग 80 वर्ष बाद शाहजहाँ के बाबा अकबर का भी बाबा बाबर आगरा में प्रथम बार आया था।
इस प्रकार लकड़ी के एक टुकड़े की आयु और ताजमहल का निर्माण काल शाहजहाँ के राज्यारोहण से कम से कम 178 वर्ष से पहले और अधिकतम 358 वर्ष से भी पहले का हो सकता है
इस समाचार पर भारत सरकार ने न तो कोई प्रतिक्रिया ही व्यक्त की और न कोई खण्डन ही किया , न ताजमहल की सही आयु के निर्धारण हेतु किसी प्रकार का शोध कार्य ही आरम्भ किया,
हाँ पता नहीं किसी अज्ञात भय के कारण सत्य छुपाने के लिए वो लकड़ी के द्वार हटाकर खाली स्थान ईंटो से बाद करा दिया गया
उपरोक्त लकड़ी के भाग की आयु निर्धारित करने वालों में एक श्री मारविन मिल्स,जो न्यूयार्क के वास्तुकला विद्यालय में वास्तुकला के इतिहास विषय के व्याखयाता थे उन्होंने भारत सरकार से ताजमहल की वास्तविक आयु निर्धारण हेतु परीक्षण के लिये भारत आने का प्रस्ताव किया था जिस पर
भारत सरकार का उत्तर कुछ ऐसा था कि हमें ताजमहल की आयु का पता है कुछ अन्य शोध हम कर रहे हैं और हम स्वयं सक्षम हैं
वैसे तो ताजमहल की वास्तविक आयु के प्रमाण उस के बन्द कक्षो में छुपे हैं जिन्हें जनता भले न जान पाए परन्तु भारत सरकार एवं पुरातत्व विभाग के अधिकारियों को भली-भांति मालूम है कि उसके अन्दर शाहजहाँ ने क्या छिपाया था !
चित्र में यमुना की ओर लकड़ी का द्वार और बंद कमरे !!

" आओ इतिहास के सत्य को पहचाने ..देखे और परखे कसौटियों पर "

आओ इतिहास के सत्य को पहचाने ..देखे और परखे कसौटियों पर ...क्यूँ श्रेष्ठता है धर्म में ... ,,||
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हिंदू धर्म ग्रंथ नहीँ कहते कि देवी को शराब चढ़ाई जाये.., 
ग्रंथ नहीँ कहते की शराब पीना ही क्षत्रिय धर्म है.. 
ये सिर्फ़ एक मुग़लों की साजिश थी 
हिंदुओं को कमजोर करने की ! 
जानिये एक अनकही ऐतिहासिक घटना.........?
"एक षड्यंत्र और शराब🍷 की घातकता...."
कैसे हिंदुओं की 
सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया इन मुग़लों ने ........??
जानिये और फिर सुधार कीजिये !!
मुगल बादशाह का दिल्ली में दरबार लगा था और हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे , उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की "है 
कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में ...............?" 
सभा में सन्नाटा सा पसर गया ,एक बार फिर वही दोहराया गया ! 
तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहा "है 
कोई हमसे बहादुर जो 
हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके........... ??
सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की और गया ! 
वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल थे !
रिड़मल जी ने कहा, "मुग़लों में बहादुरी नहीँ कुटिलता है..., सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनियाँ में,मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया !
कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर से तो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से...।
बादशाह का मुँह देखने लायक था , ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो ।
"बाते मत करो राव...उदाहरण दो वीरता का ।" 
रिड़मल ने कहा "क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ??"
बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही ,रिड़मल बोले " इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की ... "
बादशाह हसा और दरबार में बेठे कवियों की और देखकर बोला "इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है में भी 100 मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ? 
मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा ।"
राव रिड़मल निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए । 
रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीरदार का ख्याल आया ।
रात को 11 बजे रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीरदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी । 
ठाकुर साहब काफी वृद अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभक्त के लिए बाहर पोल पर आये ,, घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले " जोधपुर महाराज... आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ । 
हुकम आप अंदर पधारो...मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता ।
राव रिड़मल ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है , और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी, अब आप ही बताये की जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?
रोहणी जागीदार बोले ," बस इतनी सी बात..मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और रजपूती की लाज जरूर रखेंगे "
राव रिड़मल को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर.. , मान गए राजपूती धर्म को ।
सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे! 
उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ," महाराज थोडा रुकिए में एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में ।"
राव रिड़मल ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय है कैसे मानेगा अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को , एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए ।
ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा " आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को , दोनों में से कौनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है ? आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा !
ठकुरानी जी ने कहा बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था।।
लड़ दोनों ही सकते है ,आप निश्चित् होकर भेज दो ।
दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस द्रश्य को देखने जमा थे । 
बड़े लड़के को मैदान में लाया गया और मुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो..
तभी बीकानेर महाराजा बोले "ये क्या तमाशा है ? 
राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मोका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ?
बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो...
20 घुड़सवारों को दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन 20 घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी ।
दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ , मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,इसी तरह बादशाह के 500 सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई ।।
ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा " 500 मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर..?
तलवार से ये नही मरेगा...
कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी । 
सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करी और मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा ।
बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहथे बेठा रखा था ये सोच कर की यदि ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगा लेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली । 
उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए । 
बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था । 
हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था । 
बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको..। 
एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर
"""" शराब छिड़क दो""""" 
"""""राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब"""
का उपयोग करो।
दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए ।
मौलवी ने बादशाह को कहा " हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि ""इनका इष्ट देवी है"" और 
ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है ।
यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भृष्ट करो और इनमे दारु शराब की लत लगाओ ।। यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे ।
उसके बाद से ही ""राजपूतो में मुगलो ने शराब"" का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे """राजपूत शराब में डूबते गए"" और अपनी इष्ट देवी को नाराज करते गए ।
और मुगलो ने ""मुसलमानो को कसम खिलवाई"" की शराब पीने के बाद नमाज नही पढ़ी जा सकती । 
इसलिए इससे दूर रहिये ।।
यह हमारा.स्वर्णिम इतिहास था.।
मुगलो ने विशेष छल ब्राहमण व राजपूतो से किया ।
हमे हिन्दू समाज अपने.देश को पुन: वही भारत बनाना है । 
तब ही हम पुनः खोया वैभव पा सकेंगे और 
हिन्दू धर्म की रक्षा कर सकेंगे।
केवल महाकाल-भैरव स्वरूप को ही दिया जाता है ये प्रसाद || 
हर हर महादेव ||


2.

1526 ई पानीपत का प्रथम युद्ध भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण नहीं------
जिसमे इब्राहीम लोदी जिसने इस युद्ध में बाबर का सामना किया जिसे वामपंथी इतिहासकार भारत का बादशाह बताते हैं
अब देखिये उसकी बादशाहत -------
इब्राहीम लोदी 1517 ई में गद्दी पर बैठा
उस समय राणा संग्राम सिंह यानि राणा सांगा मेवाड की गद्दी पर थे राणा सांगा ने एक साथ मालवा और गुजरात के सुल्तानों को हराया
फिर रण थम्मौर के किले सहित सम्पूर्ण पूर्वी और उत्तरी मेवाड़ क्षेत्र पर आधिपत्य जमा लिया था
इब्राहीम लोदी 1517 ई में सेना लेकर राणा सांगा को रोकने के लिए आगे बढ़ा राणा साँगा ने भी आगे बढ़ कर भरतपुर के खटोली नामक स्थान पर सेना लेकर आ डटे , दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ और इब्राहीम लोदी बुरी तरह हारा और वापस दिल्ली भाग गया
इब्राहीम लोदी का एक शहजादा राणा की पकड़ में आ गया था जिसे कुछ अर्थ दंड ले कर छोड़ा गया
और चन्देरी पर राणा का अधिकार हो गया यद्यपि इस युद्ध में राणा सांगा ने एक आँख और एक हाथ खोया
फिर दो वर्ष बाद 1519 ई में एक बार फिर इब्राहीम लोदी धौलपुर नामक स्थान पर सेना लेकर आ डटा और इस बार भी राणा साँगा ने आगे बढ़कर फिर उसे बुरी तरह पराजित किया और दिल्ली सल्तनत का काफी बड़ा भाग पर राणा साँगा के अधिकार में आ गया
इस प्रकार राणा सांगा मालवा, गुजरात, सम्पूर्ण राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के महाराणा थे
अब इब्राहीम लोदी का अधिकार दिल्ली के आस पास तक सीमित रह गया था
इस प्रकार राणा साँगा से पराजित इब्राहीम लोदी और अपनी पिछली असफलताओ के साथ बाबर--------के बीच 1526 ई में पानीपत के युद्ध------में ये दोनों पक्ष महत्वहीन थे इसलिए इस युद्ध को भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण या मील का पत्थर नहीं कहा जा सकता भले ही बाबर जीता और इब्राहीम लोदी मारा गया हो
और यह भी कि उस समय तक इन दोनों की अपेक्षा भारत के विशाल क्षेत्र पर राज्य करने वाले विजयी महाराणा राणा सांगा का मध्य भारत के बड़े क्षेत्र में परचम लहरा रहा था

" तेरे इश्क ने जिन्दा रहने का मुझे जर्फ़ दिया ,इजहार दिया "

यूँ इश्क हुआ कुछ याद नहीं बस अपना सबकुछ वार दिया ,
मैं जिन्दा इंसा था ही कब , फिर कैसे कहूं तूने मार दिया ||

खार एक नागफनी का था कोई दुनिया ख्वाब में खिली नहीं
काश तुम कभी न जान सको किस सुख ने मुझे अजार दिया||

सजी सजाई दुनिया कैसी , मेरी जात नहीं मेरा हाल नहीं
तेरे इश्क ने जिन्दा रहने का मुझे जर्फ़ दिया ,इजहार दिया .||
------- विजयलक्ष्मी


नेह के अंतिम छोर पर खड़े हैं ,,
देह के उस पार रूह की पहचान पर अड़े हैं 
देह के रिश्तों में नेह रुकता भी कहाँ है 
रिश्तों के दंश ही न्याय की गुहार में पड़े हैं
|| --------- विजयलक्ष्मी

" नौटंकी बाजो की कमी नहीं है यहाँ ,,"

1.पूजते खुदा को रहे ,
जो 
कलंदर हो गये !!
.
खंजर लिए है, 

मन 
बंजर हो गये !!
.
जलाये घर थे , 

जिनके
बेघर हो गये !!
.
लहराई तलवारें ,

खूनी
मंज़र हो गये !!
.
देखने सुनने वाले, 

सभी
पत्थर हो गये !!
.
इंसानियत का जनाजा ,

सबका
मुकद्दर हो गये
!!
--------- विजयलक्ष्मी




" नौटंकी बाजो की कमी नहीं है यहाँ ,,
इंसानों को इंसान कब समझते हैं लोग ,,
जलता है पश्चिमी बंगाल आग में ,,
सत्य कहने पर पुलिसिया रिपोर्ट करते है लोग 
नोट बंदी मुद्दा जिन्दा जानो से ज्यादा है ,,
जाने क्यूँ हकीकत बयानी से डरते हैं लोग
देह के हिस्से और मुहब्बत के किस्से ,,
बड़ी नजाकत भरी कलम से लिखते हैं लोग
रंज न लहू बहने से होता है न सत्य मरने से
सत्य कहना,सुनना भी कब पसंद करते हैं लोग
कलियुग आने का रंज है सभी को
खुद सतयुग सा व्यवहार नहीं करते है लोग
स्वच्छन्दता पर आमादा है ज्यादातर यहाँ
स्वतन्त्रता की मर्यादा कितनी मानते हैं लोग
आजादी बोलने की चाहिए सभी को ,,
मतलबी हिसाब से न्यायनीति चाहते हैं लोग "
. ------ विजयलक्ष्मी

" ‘दिमाग’ से जुड़े 35 ग़ज़ब रोचक तथ्य "

‘दिमाग’ से जुड़े 35 ग़ज़ब रोचक तथ्य
1. अगर 5 से 10 मिनट तक दिमाग में ऑक्सीजन की कमी हो जाए तो यह हमेशा के लिए Damage हो सकता हैं.
2. दिमाग पूरे शरीर का केवल 2% होता हैं लेकिन यह पूरी बाॅडी का 20% खून और ऑक्सीजन अकेला इस्तेमाल कर लेता हैं.
3. हमारा दिमाग़ 40 साल की उम्र तक बढ़ता रहता हैं.
4. हमारे दिमाग के 60% हिस्से में चर्बी होती हैं इसलिए यह शरीर का सबसे अधिक चर्बी वाला अंग हैं.
5. सर्जरी से हमारा आधा दिमाग़ हटाया जा सकता हैं और इससे हमारी यादों पर भी कुछ असर नही पडेगा.
6. जो बच्चे पाँच साल का होने से पहले दो भाषाएँ सीखते है उनके दिमाग की संरचना थोड़ी सी बदल जाती हैं.
7. दिमाग की 10% प्रयोग करने वाली बात भी सच नही हैं बल्कि दिमाग के सभी हिस्सों का अलग-अलग काम होता हैं.
8. दिमाग़ के बारे में सबसे पहला उल्लेख 6000 साल पहले सुमेर से मिलता हैं.
9. 90 मिनट तक पसीने में तर रहने से आप हमेशा के लिये एक मनोरोगी बन सकते हो.
10. बचपन के कुछ साल हमें याद नही रहते क्योकिं उस समय तक “HIPPOCAMPUS” डेवलप नही होता, यह किसी चीज को याद रखने के लिए जरूरी हैं.
11. छोटे बच्चे इसलिए ज्यादा सोते हैं क्योंकि उनका दिमाग़ उनके शरीर द्वारा बनाया गया 50% ग्लूकोज इस्तेमाल करता हैं.
12. 2 साल की उम्र में किसी भी उम्र से ज्यादा Brain cells होती हैं.
13. अगर आपने पिछली रात शराब पीयी थी और अब आपको कुछ याद नही हैं तो इसका मतलब ये नही हैं कि आप ये सब भूल गए हो बल्कि ज्यादा शराब पीने के बाद आदमी को कुछ नया याद ही नही होता.
14. एक दिन में हमारे दिमाग़ में 70,000 विचार आते हैं और इनमें से 70% विचार Negative (उल्टे) होते हैं.
15. हमारे आधे जीन्स दिमाग़ की बनावट के बारे में बताते हैं और बाकी बचे आधे जीन्स पूरे शरीर के बारे में बताते हैं.
16. हमारे दिमाग की memory unlimited होती हैं यह कंप्यूटर की तरह कभी नही कहेगा कि memory full हो गई.
17. अगर शरीर के आकार को ध्यान में रखा जाए तो मनुष्य का दिमाग़ सभी प्रणीयों से बड़ा हैं। हाथी के दिमाग का आकार उसके शरीर के मुकाबले सिर्फ 0.15% होता हैं बल्कि मनुष्य का 2%.
18. एक जिन्दा दिमाग बहुत नर्म होता है और इसे चाकू से आसानी से काटा जा सकता हैं.
19. जब हमे कोई इगनोर या रिजेक्ट करता हैं तो हमारे दिमाग को बिल्कुल वैसा ही महसूस होता हैं जैसा चोट लगने पर.
20. Right brain/Left brain जैसा कुछ नही हैं ये सिर्फ एक मिथ हैं. पूरा दिमाग़ इकट्ठा काम करता हैं.
21. चाॅकलेट की खूशबू से दिमाग़ में ऐसी तरंगे उत्पन्न होती हैं जिनसे मनुष्य आराम (Relax) महसूस करता हैं.
22. जिस घर में ज्यादा लड़ाई होती हैं उस घर के बच्चों के दिमाग पर बिल्कुल वैसा ही असर पड़ता हैं जैसा युद्ध का सैनिकों पर.
23. टी.वी. देखने की प्रक्रिया में दिमाग़ बहुत कम इस्तेमाल होता है और इसलिए इससे बच्चों का दिमाग़ जल्दी विकसित नहीं होता. बच्चों का दिमाग़ कहानियां पढ़ने से और सुनने से ज्यादा विकसित होता है क्योंकि किताबों को पढ़ने से बच्चे ज्यादा कल्पना करते हैं.
24. हर बार जब हम कुछ नया सीखते है तो दिमाग में नई झुर्रियां विकसित होती हैं और यह झुरिया ही IQ का सही पैमाना हैं.
25. अगर आप खुद को मना ले कि हमने अच्छी नींद ली हैं तो हमारा मस्तिष्क भी इस बात को मान जाता हैं.
26. हमारे पलक झपकने का समय 1 सैकेंड के 16वें हिस्से से कम होता है पर दिमाग़ किसी भी वस्तु का चित्र सैकेंड के 16वें हिस्से तक बनाए रखता हैं.
27. हेलमेट पहनने के बाद भी दिमाग को चोट लगने की संभावना 80% होती हैं.
28. मनुष्य के दिमाग़ में दर्द की कोई भी नस नही होती इसलिए वह कोई दर्द नही महसूस नही करता.
29. एक ही बात को काफी देर तक tension लेकर सोचने से हमारा दिमाग कुछ समय के लिए सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता को खो देता हैं.
31. दिमाग तेज करने के लिए सिर में मेहंदी लगाए और दही खाए. क्योकिं दही में अमीनो ऐसिड होता हैं जिससे टेंशन दूर होती हैं और दिमाग़ की क्षमता बढ़ती हैं.
32. अगर आप अपने स्मार्टफ़ोन पर लम्बे समय तक काम करते हैं तब आपके दिमाग़ में ट्यूमर होने का खतरा बड़ जाता हैं.
33. अगर दिमाग़ से “Amygdala” नाम का हिस्सा निकाल दिया जाए तो इंसान का किसी भी चीज से हमेशा के लिए डर खत्म हो जाएगा.
34. Brain (दिमाग) और Mind (मन) दो अलग-अलग चीजे हैं वैज्ञानिक आज तक पता नही लगा पाए कि मन शरीर के किस हिस्से में हैं.
35. हमारे दिमाग़ में एक “मिडब्रेन डोपामाइन सिस्टम” (एमडीएस) होता है, जो घटने वाली घटनाओं के बारे में मस्तिष्क को संकेत भेजता हैं हो सकता की हम इसे ही अंतर्ज्ञान अथवा भविष्य के पूर्वानुमान कहते हैं. जिस व्यक्ति के दिमाग में यह सिस्टम जितना ज्यादा विकसित होता है वह उतनी ही सटीक भविष्यवाणी कर सकता हैं.
Q. दिमाग तेज करने का सबसे आसान उपाय ?
Ans. दीमाग तेज करने का सबसे आसान उपाय हैं, जमकर पानी पाएँ। 1 गिलास पानी पीने से दिमाग 14% तेजी से काम करता हैं. जब तक प्यास शांत नही होती तब तक मनुष्य के दिमाग को ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होती हैं.

मीरा को जब जब पढ़ा ..एक आलौकिकता का आभास होता है ,

प्यार ...... तो प्यार है ,, प्यार होना ही पाना होता है ,,उपस्थिति हीनता प्यार नहीं है ..... ,, बस थोडा सा स्वार्थ आता है तब सानिध्य चाहता है ,,,,, प्यार स्नेह मुहब्बत इश्क .... गर मीरा को समझ सको तो ,, द्वापर के कृष्ण को कलियुग में प्यार किया और साक्षात्कार भी ,,,, || मीरा को जब जब पढ़ा ..एक आलौकिकता का आभास होता है ,, सात्विक ,उज्ज्वल और सच्चे प्रेम की पराकाष्ठा का ऐसा उत्कृष्ट उदाहरण कहीं नहीं मिलता .. कृष्ण जो समकालीन भी नहीं थे मीरा के ... राधा तो कृष्ण की आराध्या थी इसीलिए राधा थी ...राधा जो कृष्ण रूप धारती है कृष्णमय हैं ,,,.मीरा के आराध्य कृष्ण हुए .... प्रेम की पराकाष्ठा देखिये कृष्ण के मृत्यु वरण के समय आराध्या राधा न थी ...किन्तु मीरा ने तो कृष्ण के सानिध्य में ही देह त्यागी ...... अतुलनीय है प्रेम और प्रेम दर्शन कराने वाली मीरा | नमन है उन्हें |
निश्छल स्वार्थ रहित प्रेम ..... स्वार्थ तो दुनियादारी है ,, प्रेम नहीं ||
------- विजयलक्ष्मी


Sunday 18 December 2016

" आजकल आत्महत्याओ का दौर जारी है "

" आजकल आत्महत्याओ का दौर जारी है
कही किसान तो कही पत्रकारिता मारी है 
कहीं इंसानियत कहीं धार्मिकता जारी है 
कहीं सियासत से भी मार्मिकता भारी है 
अपने गिरेबान में झांकते नहीं हैं जो लोग 
उनका ही इल्जाम का छिडकाव जारी है
सत्तर बरस का हवन कुण्ड कुंडा हो गया
अढाई बरस लग रहे सबको ज्यादा भारी है
सुना है अमर्त्यसेन अर्थशात्री बड़ा भारी है
वह नोबेल पुरुस्कार प्राप्त ज्ञान भंडारी है
चार फैक्ट्री लगाकर उठाया नुकसान भारी है
विश्वव्यापी अर्थशात्री अर्थव्यवस्था को डूबा गये
दस बरस बनकर कठपुतली सरकार चला गये
शिक्षा में कहते झोल हुआ बहुत बड़ा है ,,
इतिहास तो सारा ही गलती और गुनाहों से भरा है
पटेल से छिनकर गद्दी नेहरु को देने पर गांधी अड़ा है
नेताजी सुभाषचंद से अध्यक्ष पद छुड्वाया था ,,
मोतीलाल नेहरु से मिली दौलत का कर्ज चुकाया था
आजाद के मुखबिर को क्यूँ प्रधानमन्त्री बनवाया था
भगतसिंह को किसने समय से पहले फांसी चढवाया था
जतिन दास से देशभक्त को किसने आतंकी बताया था
भारत माँ की छाती चीर सडक का नक्शा किसने बनवाया था
आज उन्हें चिंता किसकी है जिसने पीढियों नोचा है
माँ की ममता की कीमत क्या कब किसने सोचा है
गद्दारों के वंशज यहाँ गद्दी पर मौज उड़ाते हैं
तात्याँटोपे के वंशज चाय बेच पेट की आग बुझाते हैं
लक्ष्मीबाई को धोखा देकर चैन अमन से जीने वाले ,,
देशभक्त हुए कैसे अंग्रेजी चरणामृत पीने वाले ,,
आजकल आत्महत्याओ का दौर जारी है
कही किसान तो कही पत्रकारिता मारी है
कहीं इंसानियत कहीं धार्मिकता जारी है
कहीं सियासत से भी मार्मिकता भारी है "||
---------- विजयलक्ष्मी

Saturday 17 December 2016

"" आओ पत्रकारिता भुनाए ""

"" आओ गलतियाँ दिखाए ,,
मिडिया को मण्डी बनाये ,,
गलतियाँ पुरानी नई सरकार की दिखाए 
दौलत मिलेगी बदले में ,,
आओ मौज उडाये ,,
हम तो पत्रकार है यारों ...
आओ पत्रकारिता भुनाए ""

वे सारे राजनीतिक दल जिनका "रिप्रजेंटेशन ऑफ़ दी पीपल एक्ट 1951 " के सेक्शन 29 ए के तहत रजिस्ट्रेशन हुआ है , उन्हें इनकम टैक्स से छूट मिलता है - यही इनकम टैक्स ऐक्ट का नियम है। यह संविधान में लिखा है , और संविधान कोई नोटबंदी के बाद का लिखा हुआ तो नहीं है। किन्तु क्या करें ? प्रेस और मीडियावालो को तो जिगोलो बनना ही है। अब ऐसा हो नहीं सकता कि संपादक,सह-संपादक , रिपोर्टर इत्यादि दिग्गज ज्ञानियों को इस बात का पता न हो। फिर भी वे जानबूझकर आधे सच -आधे झूठ का प्रचार करके सरकार की निंदा करने पर उतारू हैं । उन्हें अपने प्रेस्सटिट्यूट नाम को सार्थक जो करना है । जवाहरलाल नेहरू सरकार ने इनकम टैक्स एक्ट बनाया , उसमे राजनैतिक पार्टियों को मिलने वाले डोनेशन को इनकम टैक्स से मुक्त रखा गया। बाद के सुधारो में ये हुआ की अगर डोनेशन की राशि 20000 से ज्यादा है तो वो सिर्फ चेक से स्वीकार की जा सकती है। इसके नीचे कैश से।
20000 से ऊपर के ट्रांजेक्शन चेक से होने चाहिए। लेकिन कमियां ये है की ये 20 हजार की रकम एक दिन के लिए है। अगर किसी कंपनी को 1 लाख का पेमेंट कैश में मिलना है या करना है तो वो 5 दिन में 20-20 हजार का पेमेंट दिखा देती हैं अपनी बुक्स में ।
जैसे बिना पैन नंबर के आप किसी बैंक अकाउंट में 50 हजार से ज्यादा जमा नहीं कर सकते। आपको एक लाख जमा करना है ,आप 45-45 हजार और फिर दस हजार तीन दिन में बिना पैन नम्बर के जमा कर देते हैं।
आपने सिस्टम के इसी लचर ब्यवस्था का फायदा उठाया जा रहा । ऐसे ही कानून का फायदा पार्टियां उठाती आ रही हैं । फर्जी मेंबर और उनके द्वारा फर्जी डोनेशन दिखाकर चुनाव में करोडो खर्च करती हैं। यहां तक की निर्वाचन आयोग को भी ठेगा दिखा देते है ये राजनैतिक दल । फिर इसका समाधान है पूरी तरह कैशलेस सिस्टम में । जब सबकुछ बैंक के जरिये होगा , तब काला धन छुपाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा।
परंतु विरोधी दल फिर वही गरीबो का रोना रोयेंगे। जैसे अभी रो रहे हैं। गरीब कैसे कैशलेस में कैसे जिन्दा रहेगा। गरीब तो लाइन में मर रहा है। आदि आदि फिर सरकार कैसे फैसला ले ? करप्शन का जो मॉडल पिछले 70 सालों में खड़ा हुआ है क्या वो एक झटके में दूर हो जायेगा ? क्या जादू की छड़ी है मोदी सरकार के पास ? मोदी सरकार प्रयास कर रही है ! वैसे मोदी सरकार से मेरी बिनती है की राजनैतिक दलो पर बना हुआ पुराना कानून बदल दे पर इसके लिए विपक्ष का साथ मिलेगा क्या ? ये भविष्य में छिपा हुआ है !

" मन की भाषा मन ही जाने "

" मन की भाषा मन ही जाने
मनके अपने खेल निराले
अपने सपने अपने गीत
अपने स्वर संग अपनी प्रीत
अपनी दुनिया अपनी रंगत
अपनी बातें अपनी संगत
अपने विचार अपने विमर्श
अपने रास्ते अपने उत्कर्ष
अपने भाव अपने अनुभाव
अपने अभाव अपने प्रभाव
अपने रंग रास अपने विन्यास
अपने कदमों का विश्वास
अपने निर्झर अपने भाग
अपनी शांति अपनी आग
अपने मौन सुने अब कौन
जीवन हंगामा सरगम मौन
अपनी उम्र के ताने-बाने
कुछ पहचाने कुछ अनजाने
बस प्रस्तर पर जड़ा देखता
रास्तों को जाते खड़ा देखता
मैं और मेरा मन अक्सर
अपने तर्कों से खुदी बेधता
लाठी समय भी चला टेकता
प्रण नया फिर मन में ठान
रखता सूरज सा स्वाभिमान
मनके मनके पर लिखा ,,
मनके मोती का अभिमान
मनका मनका फिरे मापता
दुनियावी मन का भगवान
कैसी अनबूझ बनी पहेली ..
जीवन इक अनजान सहेली
कितना ढूँढू कितना पाऊं
ढूंढ --ढूंढ मन कित कित धाऊँ
फिरते मन को पकड़ न पाऊँ " ---------- विजयलक्ष्मी