Wednesday 20 December 2017

सर्द रात है मैं छत पर ....


सर्द रात है मैं छत पर .
गुफ्तगू सितारों से अपनी 
वो नीले रंग की चमकती रात पर 
साया धुंध का देखा 
लिए कुछ सुरमई अखियाँ 

चमक थी खोई सी जैसे
झांकता वो एक चेहरा
बड़ा अपना सा था
लगा एगबारगी सपना सा था
कुछ उदासी जैसे छाई थी
वो धुंध शायद दिल पर उतर आई थी
कही से प्यार का जुगनू दिखा टिमटिमाता सा
लगा फिर देखकर जान में जान आई थी
शब्द खामोश हो गये
नमी पत्तो पर उभर आई
भीगी कोर पलको की
अजब सी आज तन्हाई थी
उभर कर इक सितारा गिरा टूटकर ऐसे
नमी कोरो की भारी लग रही जैसे
दुआ में मांगते भी क्या
कुछ यादें ,, यादों में चहकता अहसास मांग डाला
जफा का रंग भी बसंती करार मांग डाला
बंद आँखों से दुआ इक और कर डाली
न टूटे कोई सितारा फिर ,,
न कोई दुआ रहे बाकी
हर दुआ के लिए कितने सितारे टूटेंगे भला बाकी
चमक फिर फीकी न रहे मुस्कान मांग डाली थी
बीत गयी रात सारी यूँ भोर थी होने वाली
विदाई मांग न पाए ,,
जुदा हम कर न सके
गुजरी रात यूँ दिल पर ,,
रात भर भी उतर न सके
अब उसी मुस्कान को लिए फिरते हैं
दर्द की बस्ती में भी मुस्कुराकर ही गुजरते हैं || 

---------- विजयलक्ष्मी

Monday 18 December 2017

ये कलयुग है ,,

ये कलयुग है ,,द्वापर नहीं ..
कृष्ण बनने की चाहत लिए सभी हैं 
राधा भी चाहिए ..लेकिन ..
उसका नेह नहीं उसकी देह लगे प्यारी 
अवसर चाहिए ..
राह कोई भी हो ..चाह यही है
हाँ ...यह कलयुग ही है ..
यहाँ राधा तस्वीर में पुजती है
मन्दिर में पुजती है
ईमान में नहीं पुजती
पुज भी नहीं सकती
कहा न ...ये कलयुग है
यह नेह रस नहीं देह रस के आकांक्षी हैं धरा पर
इल्जाम हैं हर ईमान पर
यहाँ राधा हो ही नहीं सकती
हो भी जाये तो जी नहीं सकती
क्यूंकि ...वह तो व्यभिचारिणी हैं
कलंकिनी ...अशुचिता औरत है
कृष्ण बनने की ललक तो है ..लेकिन
न राधा का चरित्र पाच्य है
न कृष्ण का सुंदर मन .
चलो बहुत हुआ ,,
यहाँ बंधन और तलाक होते हैं
बाजार में सब हलाक होते हैं
दोस्त और दोस्ती के रंग चाक होते हैं
समझ नहीं आई न अभी ----
ये कलयुग है जनाब "
यहाँ रावण और कंस मिलेंगे हर देह में
जीवन अपभ्रंश मिलेंगे नेह में
न्यायालय हैं... वकील हैं
कागजी दलील हैं
कुछ लिखी हुई तहरीर हैं
मकान हैं लिबास हैं ..
बस गुनाह नेह का अहसास है
कहा न ...
ये कलयुग है
मीरा की खातिर नाग है
मोमबत्ती का राग है
स्त्री होना अभिशाप है .
अत्याचार बलात्कार हाहाकार सबकुछ है यहाँ
हर चौराहे पर खड़ा बाजार है यहाँ
हर कोई खरीददार हैं यहाँ
बिको या न बिको
कीमत लगती है बाजार में
सबको इंतजार है यहाँ
बोला न सबको ...
ये कलयुग है जी
त्रेता युग की बात मत करना
व्यर्थ लगेगा सीता का हरना
कैसे राम ले गए वापस
वो भी अनछुई
जहां नजर भेदती हो देह
कैसे जन्मे वैदेही कोई विदेह
सोचना मना है,,,
कहा न कलयुग है ये
---- विजयलक्ष्मी

Thursday 9 November 2017

" हर झूठ सफेद हुआ तुम्हारे मुख से निकलकर ,,"

हर झूठ सफेद हुआ तुम्हारे मुख से निकलकर ,,
कभी सत्य को अपनाओ ,  झूठ से निकलकर || विजयलक्ष्मी




गजल हो या लतीफा क्या खूब हुनर है ,,
वो संगदिल दुनिया का बड़ा बाजीगर है || ----  विजयलक्ष्मी





रोने में भी लुत्फ मिलेगा कैसे किसी को ऐसे ,
क्या मंजूर होंगे दिल के रिश्ते किसी को ऐसे ।। ------ विजयलक्ष्मी






मालूम न था ,कोई है जो सफर का मुंतजिर नहीं ,
जिसको चाहा , वो इस सफर का मुसाफिर नहीं ।। ------ विजयलक्ष्मी






कुछ तकदीरें भी होती है जो नहीं बनती ,,
कुछ लकीरे होती है जो कभी नहीं मिलती ...||


हिस्सा ओ किस्सा कहे कैसे कोई भला 
सफर भी होते है जिन्हें मंजिल नहीं मिलती ||


होगा कोई टुटा हुआ सा तारा शायद 
वो चमकते हैं मगर रौशनी नहीं मिलती  ||  -------  विजयलक्ष्मी

Monday 25 September 2017

" वो मेरे पापा है ,, जिन्होंने दिन रात एक किया "







" यार कभी तो समझा करो ,
वो मेरे पापा है ,, जिन्होंने दिन रात एक किया
मेरी जरूरतों के लिए
मेंरी इच्छाओं के लिए
पूरी जिन्दगी झोंक दी मेरी कामयाबी के लिए
नहीं किया आराम मेरे वजूद के लिए
दौड़ते हुए बीते सुबह और शाम
मेरी बीमारी के समय
बीएस यही चिंता दीमक की तरह चाटती रही उनकी जिन्दगी को
मैं किसी से पीछे न रह जाऊं ,,
उन्होंने मेरी माँ ही नहीं अपनी माँ को ताकीद किया
मुझे बड़ा बनाने के लिए
मेरी भूख के लिए नई फरमाइशे लादी माँ के ऊपर
दादा जी को भी टोक ही देते थे यदा कदा,,मेरी मंजिलों के लिए
खुद के पास कभी नहीं लगने दिया ,,उन्हें डर था शायद
अपने और मेरे कमजोर पड़ने का
पल पल मेरे जन्म से मेरे पैरों पर खड़ा होने तक
नहीं देखे थकते हुए पाँव
बस हर कोशिश उनकी होती ,,
मेरे वजूद की
हर चिंता उन्हें खाती मेरे अस्तित्व की
हर साँस में जीते रहे वो मेरे लिए बुने स्वप्न को पूरा करने में
उसके लिए उन्होंने अपनी दुनिया भुला दी ,,
और मैं स्वार्थ में जीता हुआ
अपनी तरक्की देखता रहा
आज सोचता हूँ ,,
" पिता होना क्या होता है जब खुद पिता बना "
मेरी जिन्दगी के लिए अपनी जिन्दगी हर बार दांव पर लगाना ,,
अपने विषयमे सोचे बिना सिर्फ मेरे लिए चलते जाना
जिम्मेदारियों में खुद को लगा देना ,,
कभी उफ़ भी करना ,,
आज जाना है मैंने भी पिता होना ||" -------- विजयलक्ष्मी

" मुस्कान सुलझा जाये उलझन "


















" मुस्कान सुलझा जाये उलझन 
दे जाये मरहम उन हरे जख्मों को 
काश , जिन्दगी सम्भल जाए 
औ नीले से आकाश से गहराता हुआ धुंध छंट जाए 
वो दिन ,, कब आएगा 
जब मैं एक औरत ...
जी सकूंगी एक पूरी जिन्दगी
अपने रंग ढंग से
एक सांस ले सकूंगी सिर्फ अपने रंग की
एक लम्हा गुजर सकूंगी .. उन्मुक्त मन से
या यूँही सो जाउंगी चिर निंद्रा ?
नहीं मालूम अगले पल का ,,
जिन्दगी किसे कब धोखा दे जाये और ले जाउंगी
एक ख्वाब ..
अपनी रूह में समाया हुआ
वो लम्हा जो बिताना था
वो एक साँस
जिसमे जिन्दगी को पाना था
काश ,,
मेरे हिस्से भी होती एक लम्हे की
खनकती उन्मुक्त सी हुक
जो चुभती नहीं ,,
खिखिलाती बेफिक्र उड़ते धुएं सी
किलकती नन्हे से बच्चे की तरह
उम्र भी होती नादाँ जब आग भी भली लगती है
उमड़ती है लालसा उसे पकड़ने की
लेकिन ,,सबके ख्वाबों में अपने ख्वाबों को खोकर ,,
पोंछ लेती हूँ नमी आँखों की
कभी गोबरी कभी बर्तन के साथ लीपती हुई उन्ही सपनों को
लगा फूंक सबकी चोट को सहलाने वाला आंचल घायल होता है जब ..
कानून भी बिक जाता है भरी जेब की गुलामी को
और जिन्दगी देने वाली देखती रहती है टुकुर टुकुर
अपनी लहू निर्मित कलाकृति को दुसरे के नाम लिखी हुई
खो जाती है नीले से आकाश में गगन के रंग को और गहराती हुई
और कालिख पोतती हुई गम किसी रात में शामिल
किन्तु ..
कैसा हक .. ओ जाहिल औरत ,अक्ल से पैदल |
|" ----- विजयलक्ष्मी

Thursday 14 September 2017

हिंदी दिवस की तैयारी हो चुकी है ,,वी कांट लीव दिस अपूर्चनिटी

कूल डूडस हिंदी दिवस ।।
हे डूड्स हिंदी दिवस मनाया ?
व्हाई नॉट, डियर
इतना इम्पोर्टेंट डे है न

ट्विटर से फेसबुक तक डियर
वी कांट लीव दिस अपूर्चनिटी
अपनी मदरटंग है डियर
ये तो ड्यूटी बनता है न
रिस्पेक्ट करने का
सब लोग इकट्ठा हुआ,, हिंदी में बोलने का बोला
कुछ ठरकी लोग भी थे
ठरकी बोले तो ,,
जाहिल थे गंवई लोग ,,,
बोलने को शुरू हूं तो बोलते चले गए
क्या बोले ,,सुनी
अरे वही सब ,,सबको रामराम
अनपढ़ जो ठहरे ये लोग यहीं के म्युनिसिपल स्कूल में पढ़े हैं न
उन्हे कल्चर के बारे में कुछ भी नहीं पता डियर
अरे उन्हें छोड़ शाम को सेलिब्रेट करते हैं न एक नई पार्टी
रिलेक्स करेंगे सब मिलकर ,,
स्पेशल होगी शाम की हिंदी गैट टूगैदर ।
ओके डियर हैप्पी हिंदी डे ।।
---- विजयलक्ष्मी




अंधियारी रतिया बीती ,जाग री ।।
उठ भोर ने भी खोली गाँठ री ।।
सूर्य रश्मियों ने छूकर तारों को सुलाया
प्रेम भरी मीठी बोली से गगन को सजाया
अश्वारोही दिवाकर गगन पथ चढ़ आया
अली कली प्रस्फुटित पुष्पित तडाग री
अंधियारी रतिया बीती, जाग री ।।
उठ जाग ,गागर भर लाई ये भोर
खग मृग मुदित हो कर रहे हैं शोर
नवदिवस पुलकित मन की खींचे हैं डोर
गुंजित हुआ चहुँओर मन-राग री
अंधियारी रतिया बीती, जाग री !!
मधुर मदिर मन हुलसाए मलयज पवन
सुन्दर सृजन सलज्ज नयन अलकावली सघन
रंग-बिरंगे पुष्प प्रस्फुटित अनेकानेक बगियन
अब धर अधरो पर मुस्कान री ।।
अंधियारी रतिया बीती, जाग री ।।
राग रागिनी गूंजते, घंटा ध्वनि बाजत
आरती मधुर संगीत दीप सुंदर साजत
लालिमा लालित्य ललित जग जागत
उठ नयनपट खोल बुझते चिराग री ।।
अंधियारी रतिया बीती , जाग री ।।

---- विजयलक्ष्मी



खोई है हिन्दी की बिंदी ,चमक अपनों ने चुराई है
अजब आदत पड़ी अंग्रेजी की जो गैर की लुगाई है ।।
बहुत चर्चे चले घर घर अब आजाद कर भी दो
गैरों के स्वागत की कीमत अपनी जान से चुकाई है ।।
नहीं विश्वास गर तुमको तो फिर तलाक ही देदो 
यूँभी कैदियों सी हालत है जिससे हुई जगहंसाई है ।।
है मरणासन्न अवस्था में इसे इमेरजैंसी में भेजो
एक दिन की दुल्हन की आज रस्म मुंह दिखाई है ।।
----- विजयलक्ष्मी


हिंदी दिवस की तैयारी हो चुकी है 
हिंदी को मेकअप के लिए भेजा जा रहा है 
आज की रात उसे दुल्हन सा सजाना है 
क्यूंकि कल मुहं दिखाई की रस्म अदायगी है 
जी हाँ , मजाक नहीं है ये ,,, आज का सवाल ही यही है 

हिंदी को उसके आखिरी मुकाम तक पहुंचाना है
साहेब अंग्रेजी में गुर्रायेंगे ,,
हिंदी की शान में कसीदे पढकर सुनायेंगे
बेचारी माँ ,, को कैद किया है चार दिवारी में ,,
अंग्रेजन आंटी के साथ मेलोडी गुनगुनायेंगे
हे प्रभु को भूल ओ माय गॉड टर्रायेगें
कुछ नाजुक मिजाज या मेरे मौला गुहार लगायेंगे
कुल मिलाकर कैद माँ को छुडवाने का बेदम नाटक रचाएंगे
जय बोलेंगे और बुलवायेंगे ,,
एक कागज पर मीटिंग का एजेंडा सेट होगा ...
बराबर की टेबल पर पेट-पूजा का वेट होगा ,,
अजी छोडिये ..माँ का क्या है पड़ी रहेगी एक कोने में जाएगी भी कहाँ
मासी भाग गयी तो इज्जत का फलूदा बन जायेगा,,
कौन से थाने किस थानेदार को रिपोर्ट कराएगा
या आखिरी वक्त न्याय के लिए कोर्ट तक पहुंचाएगा
ये तो बताओ अंग्रेजी ट्यूशन अरे नहीं कोई हिंदी पढ़ायेगा
या तुलसी की चौपाई में हमेशा ही नारी को पिटवाएगा
एक दिन अपने भीतर भी झाँक लेना ..
इससे अलग मुझे कुछ नहीं कहना ,,
बोलो या न बोलो तुम जानो ..
मगर सुनो .. अपने संस्कार को तो मानो .
जो आज तुम कर रहे हो
उसका भुगतान तुम ही भरोगे ..
लाडले को जो पढ़ा रहे हो तैयार रहो तुम ही भरोगे
|| -------- विजयलक्ष्मी

Sunday 10 September 2017

तेरे बाद तेरी औलाद को भी तडपायेगें ||

जय भीड़वाद का ढंग 
होश में आओ ,,
आओ भीड़ बनाओ ,, 
तलवार उठाओ ,,
पत्थरबाज बन जाओ 
कत्लेआम मचाओ ,,
फिर सन्नाटा बरपाओ
कोई बोले तो चिल्लाओ ,,
मिडिया को नोट पिलाओ ,,
और ख़ामोशी करो इख्तियार ,,
अरे ओ मानवाधिकार वालो ...
मानव के लिए भी कभी मानवता की बेल उगालो
रिश्वत के पेड़ ज्यादा नहीं चलते
याद रखना ..
रिश्वत देने वाले फिर तेरे बाप से नहीं डरते ,,
एक दिन तुझे भी खा जायेंगे ..
तेरे बाद तेरी औलाद को भी तडपायेगें ||

Saturday 19 August 2017

शहीद आतंकी हुए गोरे बने निजाम ,

शहीद आतंकी हुए गोरे बने निजाम ,
जिन्होंने गुलामी कराई अब चौराहे उनके नाम ||
चोरो ने इलाके चोरो के किये नाम
सत्ता पर काबिज हुए औ बेच खाया हिन्दुस्तान ||
गांधी याद सभी करें न सुभाष न आजाद
फांसी खाकर जो मरे उनका भूला दिया है नाम ||
कुछ दलाल ऐसे हुए अंग्रेज दे गये दाम
पैसा दौलत सत्ता मिली साथ में बन बैठे भगवान||
राजसत्ता के पुजारी का तराजू जातिधर्म
जो जवान कुर्बान हुए उनका मिला न नमोनिशान||
---- विजयलक्ष्मी





गर रमजान में है राम औ दिवाली में अली ,
सच बताना वन्देमातरम पर तोप क्यूँ चली ?
जय राम जी की ,कहने में जुबां नहीं घिसती ,
या खुदा ,तेरे बंदे है फिर क्यूँ इतनी खलबली ?
नाम ए वफ़ा चाहिए बस और दरकार क्या ,
ओम् रटता है सूरज जिससे ये दुनिया चली
|| .-विजयलक्ष्मी




रायजादा की उपाधि पाकर झूमे जो ,,
सर लगाकर नाम के आगे इतराए वो 
सोच रहे सेनानी का ओहदा भी लेलूँ 

गद्दार , कातिल होकर चैन न पायें वो 
कितने मारे कितने ही लटकाए फांसी 
दौलत के भूखे पीछे घुमे दुम हिलाए वो
गद्दी के बनते पैरोकार वसीयतनामें में
आजतलक दुःख की आह न पाए जो ||
-------- विजयलक्ष्मी





इस अँधेरे को कयामत न आंको ..
भोर का सूरज निकलना बाकी है ,
नयन है पैमाना इंसानी ईमान का 
अभी सत्य का बिखरना बाकी है ,
सज लेने दो झूठ को जरा सा और 

अभी समय का निखरना बाकी है ,
मझधार में नैया पंहुच ही गयी गर
जीवन किनारों का संवरना बाकी है
||  --- विजयलक्ष्मी




आइना दिखाता वही है नजरों में जो बसा है ,
ये अलग बात है कि लोग अक्सर नजरें झुका लेते हैं .
बोलते नहीं कुछ भी जमाने का खौफ है बाकी 
बसा के आँखों में जमाने के सामने नजरें झुका लेते हैं
---- विजयलक्ष्मी

Tuesday 8 August 2017

" रक्षाबंधन के नाम पर सेक्युलर घोटाला "

रक्षाबंधन के नाम पर सेक्युलर घोटाला
डॉ विवेक आर्य
बचपन में हमें अपने पाठयक्रम में पढ़ाया जाता रहा है कि रक्षाबंधन के त्योहार पर बहने अपने भाई को राखी बांध कर उनकी लम्बी आयु की कामना करती है। रक्षा बंधन का सबसे प्रचलित उदहारण चित्तोड़ की रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ का दिया जाता है। कहा जाता है कि जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तोड़ पर हमला किया तब चित्तोड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को पत्र लिख कर सहायता करने का निवेदन किया। पत्र के साथ रानी ने भाई समझ कर राखी भी भेजी थी। हुमायूँ रानी की रक्षा के लिए आया मगर तब तक देर हो चुकी थी। रानी ने जौहर कर आत्महत्या कर ली थी। इस इतिहास को हिन्दू-मुस्लिम एकता तोर पर पढ़ाया जाता हैं।
अब सेक्युलर घोटाला पढ़िए
हमारे देश का इतिहास सेक्युलर इतिहासकारों ने लिखा है। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम थे। जिन्हें साम्यवादी विचारधारा के नेहरू ने सख्त हिदायत देकर यह कहा था कि जो भी इतिहास पाठयक्रम में शामिल किया जाये। उस इतिहास में यह न पढ़ाया जाये कि मुस्लिम हमलावरों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा, हिन्दुओं को जबरन धर्मान्तरित किया, उन पर अनेक अत्याचार किये। मौलाना ने नेहरू की सलाह को मानते हुए न केवल सत्य इतिहास को छुपाया अपितु उसे विकृत भी कर दिया।
रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ के किस्से के साथ भी यही अत्याचार हुआ। जब रानी को पता चला की बहादुर शाह उस पर हमला करने वाला है तो उसने हुमायूँ को पत्र तो लिखा। मगर हुमायूँ को पत्र लिखे जाने का बहादुर खान को पता चल गया। बहादुर खान ने हुमायूँ को पत्र लिख कर इस्लाम की दुहाई दी और एक काफिर की सहायता करने से रोका।
मिरात-ए-सिकंदरी में गुजरात विषय से पृष्ठ संख्या 382 पर लिखा मिलता है-
सुल्तान के पत्र का हुमायूँ पर बुरा प्रभाव हुआ। वह आगरे से चित्तोड़ के लिए निकल गया था। अभी वह गवालियर ही पहुंचा था। उसे विचार आया, "सुलतान चित्तोड़ पर हमला करने जा रहा है। अगर मैंने चित्तोड़ की मदद की तो मैं एक प्रकार से एक काफिर की मदद करूँगा। इस्लाम के अनुसार काफिर की मदद करना हराम है। इसलिए देरी करना सबसे सही रहेगा। " यह विचार कर हुमायूँ गवालियर में ही रुक गया और आगे नहीं सरका।
इधर बहादुर शाह ने जब चित्तोड़ को घेर लिया। रानी ने पूरी वीरता से उसका सामना किया। हुमायूँ का कोई नामोनिशान नहीं था। अंत में जौहर करने का फैसला हुआ। किले के दरवाजे खोल दिए गए। केसरिया बाना पहनकर पुरुष युद्ध के लिए उतर गए। पीछे से राजपूत औरतें जौहर की आग में कूद गई। रानी कर्णावती 13000 स्त्रियों के साथ जौहर में कूद गई। 3000 छोटे बच्चों को कुँए और खाई में फेंक दिया गया। ताकि वे मुसलमानों के हाथ न लगे। कुल मिलकर 32000 निर्दोष लोगों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।
बहादुर शाह किले में लूटपाट कर वापिस चला गया। हुमायूँ चित्तोड़ आया। मगर पुरे एक वर्ष के बाद आया।परन्तु किसलिए आया? अपने वार्षिक लगान को इकठ्ठा करने आया। ध्यान दीजिये यही हुमायूँ जब शेरशाह सूरी के डर से रेगिस्तान की धूल छानता फिर रहा था। तब उमरकोट सिंध के हिन्दू राजपूत राणा ने हुमायूँ को आश्रय दिया था। यही उमरकोट में अकबर का जन्म हुआ था। एक काफ़िर का आश्रय लेते हुमायूँ को कभी इस्लाम याद नहीं आया। और धिक्कार है ऐसे राणा पर जिसने अपने हिन्दू राजपूत रियासत चित्तोड़ से दगा करने वाले हुमायूँ को आश्रय दिया। अगर हुमायूँ यही रेगिस्तान में मर जाता। तो भारत से मुग़लों का अंत तभी हो जाता। न आगे चलकर अकबर से लेकर औरंगज़ेब के अत्याचार हिन्दुओं को सहने पड़ते।
इरफ़ान हबीब, रोमिला थापर सरीखे इतिहासकारों ने इतिहास का केवल विकृतिकरण ही नहीं किया अपितु उसका पूरा बलात्कार ही कर दिया। हुमायूँ द्वारा इस्लाम के नाम पर की गई दगाबाजी को हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे और रक्षाबंधन का नाम दे दिया। हमारे पाठयक्रम में पढ़ा पढ़ा कर हिन्दू बच्चों को इतना भ्रमित किया गया कि उन्हें कभी सत्य का ज्ञान ही न हो। इसीलिए आज हिन्दुओं के बच्चे दिल्ली में हुमायूँ के मकबरे के दर्शन करने जाते हैं। जहाँ पर गाइड उन्हें हुमायूँ को हिन्दूमुस्लिम भाईचारे के प्रतीक के रूप में बताते हैं।
..ये कौन से सेकुलरिज्म में है तथ्यों को छिपाया जाय ?

Thursday 3 August 2017

" मुहं अँधेरे उठती है "

" मुहं अँधेरे उठती है 
ठंडे चूल्हे तकते है राह 
लीपती है जिन्हें अपने चेहरे से भी पहले 
चढ़ती है पतीली अलसुबह 
सूरज भी करता है झुककर नमन 
लगता है जैसे सूरज को जगाती है चूल्हे की गर्मी से
बिन ब्रश के दातुन नीम की
उम्र से पहले उम्र दराज सी
मन से कोमल मतवारी सी
घर और खेत को मांजती है कंधे से कंधा मिलाकर
ठंडी छाज और गर्म दूध
चलता है रसोड़े में जिनके बसी रोटी के संग
समझ और ईमानदारी की महीन छलनी
छनकती है सास के पैरो पर मालिश करते हाथों में
उनकी घुमक्कड़ी रहती है घर घेर और खेत तक
मैका भी याद आता है सावन की ठंडी सी फुहार के गीतों में
देती है मीठे सिटने
तिसपर
कभी बुआई कभी कटाई
अबके बरस ननद का गौना
परके बरस ब्याही थी चौमासे में
अभी ब्याई गैया की बछिया चार दिन की ही हुई
जेठ की दुपहरी नहीं तपाती उन्हें
हाँ वही तथाकथित जाहिल सी दिखती औरते
लम्बा सा घुंघट और निश्छल सी मुस्कुराहट
नहीं लेती पति का नाम आज भी
सीता की तरह तिरछी नजर बताती है जीवनसाथी का अर्थ
नहीं समझ सकोगी कभी ..."तुम "
उस लज्जा की चादर को ..
जो बंधी है पिता के द्वारा बांधे गये इज्जत के खूंटे से
तुम जाम छलकाओ और चिरौरी करो
नारी विमर्श पर लम्बी लम्बी बाते करो
व्याखान लिखो पुरूस्कार पाओ
और करो गलबहियाँ नाच ,,,
चखना की तरह महिला के नाम पर कलंकित करती हुई तुम्हारी सोच
नहीं छू पाएगी पावनता की वो पराकाष्ठा
जाहिल शब्द का वास्तविक अर्थ तुम नहीं समझ सकोगी कभी ||
" ----- विजयलक्ष्मी

Tuesday 18 July 2017

" बर्बर हैं वो ,,"

बर्बर हैं वो ,,
ईमान से ,नाम से 
सिर्फ दूसरों के लिए 
अपने लिए 
जिन्दगी का लुत्फ़ चाहिए 
लेकिन बर्बरता ..
ये गुण या अवगुण
किन्तु रोप दिया है
मन की जमीन पर
किसी बीज की तरह
असर लहू में घुल गया है शायद
बेमानी है
चैन औ शांति
जैसे खरपतवार की तरह
निकल दी छाँट-छांट कर
ज्ञान के नाम पर
बंदूक की गोली
बम फेंकते हैं
पत्थर भी बम बनाकर फेकते हैं
बर्बरता दिखाते लोगो की तरफदारी
ये कौन सा बीज है
क्या नफरत का
या एक धर्म सिद्धांत का
कठिन है
या मुश्किल
सिर्फ दिखाई दे रही है
उन्हें हुकुम है या
मानसिक विकलांग है वो
बर्बर है वो
ईमान से ,नाम से
सिर्फ दूसरों के लिए
अपने लिए भूख
देह की
पेट की
तन की
मन की
सत्ता की
कैसी निर्मम भूख है
या ..
या ...
सभ्यता से उलटी जिन्दगी
फिर से
वही प्रारूप
अँधेरे
हजारों बरस पुराणी तस्वीर
जहां ..
हवस होगी
पशुता होगी
या होगी ..
सदी की सड़ी गली मान्यताएं
सीमाहीन परिस्थति
पतन ही पतन है
सभ्यता को दफनाया जा रहा है
मानुष देह में
बर्बरता ,शोषण ,गुलामी ,अन्धविश्वास
और ...और ..
होगा अनहद दर्द का सैलाब
जहां पशुता जिंदाबाद ||
---- विजयलक्ष्मी

Monday 17 July 2017

राष्ट्रवादी देशभक्ति



राष्ट्रवादी देशभक्ति ,जो भारत को अक्षुण्य बनाती है । उसके प्राचीन गौरव को लेकर आगे बढ़ती है । भारत के हजारों वर्ष के सौष्ठव का गठन करती है । भारतीय इतिहास , संस्कार संस्कृति को अक्षुण्ण रखती है। 
आइए एक और एक ग्यारह हो जाएं ।। जयहिन्द ।।जय भारत ।।








है जिन्दा कलम. जिन्हें देश प्रेम ही आता है ,,
प्रेम के रंग में डूबा प्रेयस सा भारत ही भाता है ||
कभी कटार कभी तलवार का करते श्रृंगार 
भाषाई शब्दों से भी बम-बौछार बनाना भाता है ||
----- विजयलक्ष्मी





धुआँ धुआँ सी फिजा,,रौशनी क्यूँ हुई कम ..
दौर ए नफरत न बढ़ा ए जिन्दगी रख भ्रम ||
यूँ नामालूम है साँसे ,,रखे भी क्या खबर 
मुस्कुरा भी ले घड़ी भर,,न कर आँख नम ||
खिलने दे इन्द्रधनुष,,घड़ी भर का ही सही 
रोशन सितारे बहुत होंगे ,, जिन्दगी है कम ||
---- विजयलक्ष्मी



डूबे या तिरे कश्तियाँ ,किनारे या मझधारे 
जानती हैं ,, जिंदगी तो वही बीच जलधारे।। -- विजयलक्ष्मी

Friday 14 July 2017

" जुगनू बन जलने की चाहत,"

कभी मेरी नजर से भी देख ए चाँद मेरे चाँद को ,,
सोचती हूँ मगर न लग जाए नजर मेरे चाँद को ||
--- विजयलक्ष्मी




खामोशी में सुनो आहत दिल की आहट ,,
बयाँबाजी शब्दों की छोटी लगने लगेगी ||
--- विजयलक्ष्मी


हम चाँद या सूरज हैं नहीं ,,सितारे जैसी औकात नहीं ,,
जुगनू बन जलने की चाहत, जा बैठे जहां प्रकाश नहीं || --- विजयलक्ष्मी

Monday 3 July 2017

" कैसी है बेबसी , शब्द खो गये "


कैसी है बेबसी , शब्द खो गये
ख्वाब पलकों के नाम हो गये ।।

समय थम गया मेरे नाम का
पल उम्रभर के तमाम हो गये ||

बैठे रहे जो सहर ए इन्तजार में
देखते देखते खुद शाम हो गये ||

मुस्कुराकर मिलते रहे राह में
किस्से बुढापे में जाम हो गये ||

पड़ने लगेगी देह पर झुर्रियां
बतायेंगे कितने जवान हो गये ||  
----- विजयलक्ष्मी

Saturday 1 July 2017

" इसीलिए बरगद नीम बबूल पीपल नहीं ...."

नया भारत बनाना है ,
आगे बढाना है ,,
मान गये साहेब ...दुनिया को दिखाना है ,,
लेकिन ..
ये तो बताओ ..कहाँ तक ले जाना है ,,
बढ़ता तापमान पचास के पार पंहुचाना है
इसीलिए बरगद नीम बबूल पीपल नहीं ..
यारों बस यूकेलिप्टिस लगाना है ..
धरती बंजर होने दो
हर शजर को खोने दो ,,
हवा को खुश्क होने दो
पंछियों को रोने दो
लेकिन बस ..
वृक्ष तो यूकेलिप्टिस ही लगाने दो ..
यार क्यूँ सताते हो ..
क्यूँ फलदार वृक्ष से धरती का बोझ बढाते हो
खुद समझते नहीं कुछ भी
पेड़ो पर पत्थर पड़वाते हो ..
घने वृक्ष हुए गर .. घनी छाया मिल जायेगी
पथिक को थोड़ी ज्यादा राहत मिल जाएगी
आक्सीजन जनता के हिस्से ज्यादा आ जाएगी
समझा करो न तुम भी ..
और कितना समझाऊं
बोलो कितना बैठकर या सोचकर मुस्कुराऊं
यूँ खता का अंत नहीं है ,,
अहसास बिना तो आता बसंत नहीं है
सच बताऊं ..तो सुनो
इन वृक्षों से साम्प्रदायिकता की महक आती है
क्यूंकि वेद पुराण की गाथा इनमे भगवान बताती है
सेकुलरिज्म कमजोर हो जायेगा
यदि कोई कहीं भी नीम ,पीपल ,बबूल ,बरगद या आम लगाएगा ||
----- विजयलक्ष्मी

Wednesday 28 June 2017

सरदार पटेल और हैदराबाद ,,, और ..........

सरदार पटेल और हैदराबाद ,,, और प्रथम प्रधानमन्त्री का गुस्सा ....

क्या आप को सरदार पटेल, हैदराबाद निजाम और MIM का किस्सा पता है ?? जिसकी खबर सुन के नेहरु ने फ़ोन तोड़ दिया था | तथ्य जो हम भारतीयों से हमेशा छुपाये गए ???
हैदराबाद विलय के वक्त नेहरु भारत में नहीं थे | हैदराबाद के निजाम और नेहरु ने समझौता किया था अगर उस समझौते पे ही रहा जाता, तो आज देश के बीच में एक दूसरा पकिस्तान होता |
मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन(MIM) के पास उस वक़्त २००००० रजाकार थे जो निजाम के लिए काम करते थे और हैदराबाद का विलय पकिस्तान में करवाना चाहते थे ।।
बात तब की है जब १९४७ में भारत आजाद हो गया उसके बाद हैदराबाद की जनता भी भारत में विलय चाहती थी | पर उनके आन्दोलन को निजाम ने अपनी निजी सेना रजाकार के द्वारा दबाना शुरू कर दिया ।।
रजाकार एक निजी सेना (मिलिशिया) थी जो निजाम ओसमान अली खान के शासन को बनाए रखने तथा हैदराबाद को नव स्वतंत्र भारत में विलय का विरोध करने के लिए बनाई थी।
यह सेना कासिम रिजवी द्वारा निर्मित की गई थी। रजाकारों ने यह भी कोशिश की कि निजाम अपनी रियासत को भारत के बजाय पाकिस्तान में मिला दे।
रजाकारों का सम्बन्ध "मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुसलमीन" (MIM ) नामक राजनितिक दल से था।
चारो ओर भारतीय क्षेत्र से घिरे हैदराबाद राज्य की जनसंख्या लगभग1 करोड 60 लाख थी जिसमें से 85%हिंदु आबादी थी।
29 नवंबर 1947 को निजाम-नेहरू में एकवर्षीय समझौता हुआ कि हैदराबाद की यथा स्थिति वैसी ही रहेगी जैसी आजादी के पहले थी।
विशेष ........
यहाँ आप देखते हैं की नेहरु कितने मुस्लिम परस्त थे की वो देशद्रोही से समझौता कर लेते हैं | पर निजाम नें समझौते का उलंघन करते हुए राज्य में एक रजाकारी आतंकवादी संगठन को जुल्म और दमन के आदेश दे दिए और पाकिस्तान को 2 करोड़ रूपये का कर्ज भी दे दिया |
राज्य में हिंदु औरतों पर बलात्कार होने लगे उनकी आंखें नोच कर निकाली जाने लगी और नक्सली तैय्यार किए जाने लगे|
सरदार पटेल निजाम के साथ लंबी- लंबी झूठी चर्चाओं से उकता चुके थे अतः उन्होने नेहरू के सामने सीधा विकल्प रखा कि युद्ध के अलावा दुसरा कोई चारा नहीं है। पर नेहरु इस पे चुप रहे | कुछ समय बीता और नेहरु देश से बाहर गया ।।
सरदार पटेल गृह मंत्री तथा उपप्रधान मंत्री भी थे इसलिए उस वक़्त सरदार पटेल ने सेना के जनरलों को तैयार रहने का आदेश देते हुए विलय के कागजों के साथ हैदराबाद के निजाम के पास पहुचे और विलय पर हस्ताक्षर करने को कहा |
निजाम ने मना किया और नेहरु से हुए समझौते का जिक्र किया, उन्होंने कहा की नेहरु देश में नहीं है तो मैं ही प्रधानमंत्री हूं | उसी समय नेहरु भी वापस आ रहा था ,,अगर वो वापस भारत की जमीन पर पहुच जाता तो विलय न हो पाता इसको ध्यान में रखते हुए पटेल ने नेहरु के विमान को उतरने न देने का हुक्म दिया तब तक भारतीय वायु सेना के विमान निजाम के महल पे मंडरा रहे थे |
बस आदेश की देरी को देखते हुए निजाम ने उसी वक़्त विलय पे हस्ताक्षर कर दिए | और रातो रात हैदराबाद का भारत में विलय हो गया | उसके बाद नेहरु के विमान को उतरने दिया गया ।
लौहपुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल नेनेहरु को फ़ोन किया और बस इतना ही कहा ”हैदराबाद का भारत में विलय” ये सूनते ही नेहरु ने वो फ़ोन वही AIRPORT पे पटक दिया ”।।
उसके बाद रजाकारो (MIM) ने सशस्त्र संघर्ष शुरू कर दिया जो 13 सितम्बर 1947 से 17 सितम्बर 1948 तक चला | भारत के तत्कालीन गृहमंत्री एवं ‘लौह पुरूष’ सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा पुलिस कार्यवाई करने हेतु लिए गए साहसिक निर्णय ने निजाम को 17 सितम्बर 1948 को आत्म-समर्पण करने और भारत संघ में सम्मिलित होने पर मजबूर कर दिया।
इस कार्यवाई को ‘आपरेशन पोलो’ नाम दिया गया था।
इसलिए शेष भारत को अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता मिलने के बाद हैदराबाद की जनता को अपनी आजादी के लिए13 महीने और 2 दिन संघर्ष करना पड़ा था। यदि निजाम को उसके षड़यंत्र में सफल होने दिया जाता तो भारत का नक्शा वह नहीं होता जो आज है, अौर हैदराबाद भी अाज कशमीर की तरह कोढ़ में खाज बनकर भारत को मुह चिढ़ा रहा होता !!!!

‘फील्ड मार्शल सैम बहादुर माॅनेकशाॅ’’

‘फील्ड मार्शल सैम बहादुर माॅनेकशाॅ’’
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अप्रैल 29, 1971 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने मंत्रिमंडल की आपात बैठक बुलाई. मीटिंग में हाज़िर लोग थे -
वित्त मंत्री यशवंत चौहान, रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम, कृषि मंत्री फ़ख़रुद्दीन अली अहमद, विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह और इन राजनेताओं से अलग एक ख़ास आदमी- सेनाध्यक्ष जनरल सैम मानेकशॉ.
‘क्या कर रहे हो सैम?’ इंदिरा गांधी ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री की एक रिपोर्ट जनरल की तरफ फेंकते हुए सवालिया लहजे में कहा. इसमें पूर्वी पाकिस्तान के शरणार्थियों की बढ़ती समस्या पर गहरी चिंता जताई गई थी. सैम बोले, ‘इसमें मैं क्या कर सकता हूं!’ इंदिरा गांधी ने बिना समय गंवाए प्रतिक्रिया दी, ‘आई वॉन्ट यू टू मार्च इन ईस्ट पाकिस्तान.’ जनरल ने बड़े इत्मीनान से जवाब दिया, ‘इसका मतलब तो जंग है, मैडम.’ प्रधानमंत्री ने भी बड़े जोश से कहा, ‘जो भी है, मुझे इस समस्या का तुरंत हल चाहिए.’ मानेकशॉ मुस्कुराए और कहा, ‘आपने बाइबिल पढ़ी है?’
जनरल के सवाल पर सरदार स्वर्ण सिंह हत्थे से उखड़ गए और बोले, ‘इसका बाइबिल से क्या मतलब है,जनरल?’ मानेकशा ने कहा, ‘पहले अंधेरा था, ईसा ने कहा कि उन्हें रौशनी चाहिए और रौशनी हो गयी. लेकिन यह सब बाइबिल के जितना आसान नहीं है कि आप कहें मुझे जंग चाहिए और जंग हो जाए.’
‘क्या तुम डर गए जनरल!’ यह कहते हुए यशवंत चौहान ने भी बातचीत में दखल दिया. ‘मैं एक फौजी हूं. बात डरने की नहीं समझदारी और फौज की तैयारी की है. इस समय हम लोग तैयार नहीं हैं. आप फिर भी चाहती हैं तो हम लड़ लेंगे पर मैं गारंटी देता हूं कि हम हार जायेंगे. हम अप्रैल के महीने में हैं. पश्चिम सेक्टर में बर्फ पिघलने लग गयी है. हिमालय के दर्रे खुलने वाले हैं, क्या होगा अगर चीन ने पाकिस्तान का साथ देते हुए वहां से हमला कर दिया? कुछ दिनों में पूर्वी पाकिस्तान में मॉनसून आ जाएगा, गंगा को पार पाने में ही मुश्किल होगी. ऐसे में मेरे पास सिर्फ सड़क के जरिए वहां तक पहुंच पाने का रास्ता बचेगा. आप चाहती हैं कि मैं 30 टैंक और दो बख्तरबंद डिवीज़न लेकर हमला बोल दू!’ मीटिंग ख़त्म हो चुकी थी. इस दौरान जनरल ने इस्तीफे की पेशकश भी की, जिसे प्रधानमंत्री ने नकार दिया और उन्हें उनके हिसाब से तैयारी करने का हुक्म दे दिया.
1971 में भारत की पाकिस्तान पर निर्णायक जीत हुई और इस तरह एशिया में एक नए मुल्क का उदय हुआ. बांग्लादेश का निर्माण होना भारत और वहां के नागरिकों की संयुक्त सफलता थी लेकिन अगर हम इस युद्ध में भारत की अपनी एक अहम उपलब्धि की बात करें तो वह थी पाकिस्तान का हमारी शर्तों पर आत्मसमर्पण करना. भारतीय सेना ने पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाज़ी को सरेआम ढाका में आत्समर्पण करवाया था. पाकिस्तान की हारी हुई फौज ने हिन्दुस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोरा को गार्ड ऑफ़ ऑनर भी दिया था. पाकिस्तान के 26,000 सैनिकों ने हमारे मात्र 3000 सैनिकों के सामने हथियार डाले थे. इसी तरह पश्चिमी सेक्टर में भी भारत की जीत मुकम्मल थी. यूं तो इस जंग में वायु सेना और जल सेना ने भी कमाल का प्रदर्शन किया था पर जीत का सेहरा मानेकशॉ के सिर बंधा और उनकी लोकप्रियता चरम पर पहुंच गई. इसके पीछे कई कारण थे.
1857 के ग़दर से लेकर 1947 तक हिन्दुस्तान की अवाम का मनोबल टूट चुका था. आज़ादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की शुरू की गईं पंचवर्षीय योजनाएं बेअसर सी दिखाईं पड़ रही थीं. सामाजिक समस्याएं, जनसंख्या के साथ दिनों-दिन बड़ी और भयावह होती जा रही थीं. फिर रही-सही कसर चीन से मिली हार ने पूरी कर दी थी. वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान के साथ 1948 और 1965 की लड़ाइयों के नतीजों पर तो आज भी बहस जारी है. 1971 की जंग पाकिस्तान के साथ तीसरी लड़ाई थी. इसके पहले तक देश एक तरह से जूझना और जीतना तकरीबन भूल चुका था. यही वो दौर था जब भारत एक बड़े खाद्यान्न संकट का सामना कर रहा था. तब देश को इस जीत ने ख़ुद में यकीन करने साहस दिया और इसके केंद्र में थे सैम मानेकशॉ, और यही वजह थी कि जनता को उनमें अपना नायक नजर आया.
तीन अप्रैल, 1913 को एक पारसी परिवार में जन्मे मानेकशॉ डॉक्टर बनना चाहते थे. लेकिन पिता ने मना कर दिया. लिहाज़ा बग़ावत के तौर पर सैम फौज में दाखिल हो गए. दूसरे विश्वयुद्ध में बतौर कप्तान उनकी तैनाती बर्मा फ्रंट पर हुई. उन्हें सित्तंग पुल को जापानियों से बचाने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी. उन्होंने वहां बड़ी बहादुरी से अपनी कंपनी का नेतृत्व किया था. उस लड़ाई में उनके पेट में सात गोलियां लगी थीं और वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे.
सैम के बचने की संभावना कम ही थी. उनकी बहादुरी से मुत्तासिर होकर डिवीज़न के कमांडर मेजर जनरल डीटी कवन ने अपना मिलिट्री क्रॉस (एक सम्मान चिन्ह) उन्हें देते हुए कहा, ‘...मरने पर मिलिट्री क्रॉस नहीं मिलता.’ इसमें कोई दोराय नहीं कि सैम अपनी बहादुरी साबित कर चुके थे और इस सम्मान के हकदार थे. लेकिन उनकी बहादुरी का यह किस्सा यहीं खत्म नहीं होता.
घायल सैम को सेना के अस्पताल ले जाया गया. यहां के एक प्रमुख डॉक्टर ने उनसे पूछा, ‘तुम्हें क्या हुआ है बहादुर लड़के?’ इस पर उनका जवाब, ‘मुझे एक खच्चर ने लात मारी है!’ अब ज़रा सोचिये कि किसी के पेट में सात गोलियां हों और जो मौत के मुहाने पर खड़ा हो, वो ऐसे में भी अपना मजाकिया अंदाज़ न छोड़े तो आप उसे क्या कहेंगे? शायद बहादुर!
आज़ादी के बाद सैम मानिकशॉ पंजाब रेजिमेंट में शामिल हुुए और बाद में गोरखा राइफल्स में कर्नल बने. बताते हैं कि इस दौरान एक बार जब वे गोरखा टुकड़ी की सलामी ले रहे थे तब उसके हवलदार से उन्होंने पुछा, ‘तेरो नाम के छाहे (है)‘ उसने कहा, ‘हरका बहादुर गुरुंग’. सैम ने फिर पूछा, ‘मेरो नाम के छाहे ?’ उसने कुछ देर सोचा और कहा, ‘सैम बहादुर!’ तबसे वे सैम ‘बहादुर’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए.
1961 में वीके कृष्ण मेनन ने उनके ख़िलाफ़ यह कहकर कोर्ट ऑफ़ इंक्वायरी बिठा दी थी कि उनकी कार्यशैली में अंग्रेजों का प्रभाव दिखता है (उस समय मानेकशॉ स्टाफ कॉलेज में कमांडेंट के पद पर तैनात थे) मेनन ज़ाहिर तौर पर समाजवादी थे. संभव है कि वो उन्हें पसंद ना करते हों. पर मामले की गहराई में जाने पर कुछ और भी समझ आता है. सैम के समकालीन लेफ्टिनेंट जनरल बृजमोहन कौल नेहरू के करीबी थे और कौल साहब को कई बार इस बात का फायदा मिला.
1962 की लड़ाई में कौल चीफ ऑफ़ जनरल स्टाफ नियुक्त थे और उन्हें 4 कोर, मुख्यालय तेजपुर असम का कमांडर बनाया गया. सेना में यह पद - चीफ ऑफ़ जनरल स्टाफ, सेनाध्यक्ष से एक पोस्ट नीचे होता थी. इसलिए मुमकिन हैै कि कौल साहब को सैम पर तरजीह देने के लिए यह जांच बिठाई गयी हो? खैर, लेफ्टिनेंट जनरल बृजमोहन कौल बतौर कमांडर कोई तीर नहीं मार पाए थे. चीन भारत की पूर्वी सीमा पर हावी होता जा रहा था तब नेहरू ने कौल को हटाकर सैम मानेकशॉ को 4 कोर का जनरल ऑफिसर कमांडिंग बनाकर भेजा. चार्ज लेते ही जवानों को उनका पहला ऑर्डर था, ‘जब तक कमांड से ऑर्डर न मिले मैदान ए जंग से कोई भी पीछे नहीं हटेगा और मैं सुनिश्चित करूंगा कि ऐसा कोई आदेश न आए.’ उसके बाद चीनी सैनिक एक इंच ज़मीन भी अपने कब्ज़े में नहीं ले पाए और आखिरकार युद्ध विराम की घोषणा हो गयी.
यहां से सैम का ‘वक़्त’ शुरू हो गया. 1965 की लड़ाई में भी उन्होंने काफी अहम भूमिका निभाई थी. आठ जून, 1969 को गोरखा रायफल्स का पहला अफ़सर देश का सातवां सेनाध्यक्ष (4 स्टार) बना. 1973 में वे फ़ील्ड मर्शाल (5 स्टार) जनरल बना दिए गए. फ़ील्ड मार्शल कभी रिटायर नहीं होते, उनकी गाड़ी पर 5 स्टार लगे रहते हैं. वे ताज़िन्दगी फौज की वर्दी पहन सकते हैं और फौज की सलामी ले सकते हैं.
सैम का सेंस ऑफ़ ह्यूमर बहुत कमाल का था. वे इंदिरा गांधी को ‘स्वीटी’, ‘डार्लिंग’ कहकर बुलाते थे. सरकारों को फौजी जनरलों से बहुत डर लगता है और जब जनरल मानेकशॉ सरीखे का बहादुर और बेबाक हो, तो यह डर कई गुना बढ़ जाता है.1971 के बाद आये दिन यह अफवाह उड़ने लगी थी कि वे सरकार का तख्ता पलट करने वाले हैं. इससे आजिज़ आकर, इंदिरा ने उन्हें एक दिन फ़ोन किया. यह किस्सा खुद मानेकशॉ ने एक इंटरव्यू में बताया था. इसके मुताबिक फोन पर और बाद में प्रधानंत्री के साथ उनकी जो बातचीत हुई वह इस प्रकार थी :
इंदिरा गांधी : ‘सैम, व्यस्त हो?’
सैम मानेकशॉ : ‘देश का जनरल हमेशा व्यस्त होता है, पर इतना भी नहीं कि प्राइम मिनिस्टर से बात न कर सके.’
इंदिरा गांधी : ‘क्या कर रहे हो?’
सैम मानेकशॉ : ‘फिलहाल चाय पी रहा हूं.’
इंदिरा गांधी : मिलने आ सकते हो? चाय मेरे दफ्तर में पीते हैं.’
सैम मानेकशॉ : ‘आता हूं.’
मानेकशॉ ने फिर फ़ोन रखकर अपने एडीसी से कहा, ‘गर्ल’ वांट्स टू मीट मी.’
सैम कुछ देर में प्रधानमंत्री कार्यालय पंहुच गए. वे बताते हैं कि इंदिरा सिर पकड़ कर बैठी हुई थीं.
सैम मानेकशॉ : ‘क्या हुआ मैडम प्राइम मिनिस्टर?’
इंदिरा गांधी : ‘मैं ये क्या सुन रही हूं?’
सैम मानेकशॉ : ‘मुझे क्या मालूम आप क्या सुन रही हैं? और अगर मेरे मुत्तालिक है तो अब क्या कर दिया मैंने जिसने आपकी पेशानी पर बल डाल दिए हैं?’
इंदिरा गांधी : ‘सुना है तुम तख्तापलट करने वाले हो. बोलो क्या ये सच है?’
सैम सैम मानेकशॉ : ‘आपको क्या लगता है?’
इंदिरा गांधी : ‘तुम ऐसा नहीं करोगे सैम.’
सैम सैम मानेकशॉ : ‘आप मुझे इतना नाकाबिल समझती हैं कि मैं ये काम (तख्तापलट) भी नहीं कर सकता!’ फिर रुक कर वे बोले,’ देखिये प्राइम मिनिस्टर, हम दोनों में कुछ तो समानताएं है. मसलन, हम दोनों की नाक लम्बी है पर मेरी नाक कुछ ज़्यादा लम्बी है आपसे. ऐसे लोग अपने काम में किसी का टांग अड़ाना पसंद नहीं करते. जब तक आप मुझे मेरा काम आजादी से करने देंगी, मैं आपके काम में अपनी नाक नहीं अड़ाउंगा.’
एक दूसरा किस्सा भी है जो सैम मानिकशॉ की बेबाकी और बेतकल्लुफी को दिखाता है. तेजपुर में वे एक बार नेहरू को असम के हालात पर ब्रीफिंग दे रहे थे कि तभी इंदिरा उस कमरे में चली आईं. सैम ने इंदिरा को यह कहकर बाहर करवा दिया था कि उन्होंने अभी गोपनीयता की शपथ नहीं ली है. फिर एक बार किसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि जिन्नाह ने उन्हें पाकिस्तान आर्मी में आने का निमंत्रण दिया था. जब पत्रकार ने यह पूछा कि वे अगर पकिस्तान सेना में होते तो 1971 के युद्ध का परिणाम क्या होता? जैसी कि एक जनरल से उम्मीद की जा सकती है उन्होंने वैसा ही जवाब दिया. उनका कहना था, ‘...कि तब पाकिस्तान जीत गया होता...’
रिटायरमेंट के बाद कई कंपनियों ने उनकी सेवाएं लीं. वे कुछ के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स थे और कहीं मानद चेयरमैन. आज सैम की ज़िन्दगी और उनसे जुड़े किस्से किवदंती बन चुके हैं लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि वे एक साहसी और चतुर जनरल थे.
नेपोलियन बोनापार्ट जब अपनी सेना के जनरल का चयन करता था तो उन तमाम विशेषताएं, जो एक जनरल में होनी चाहिए, के अलावा एक बात और पूछता था, ‘क्या तुम भाग्यशाली जनरल साबित होगे?’ आज हम कह सकते हैं कि सैम मानेकशॉ ‘बहादुर’ भारत के लिए भाग्यशाली भी थे.||
जय हिन्द !! जय भारत !!