सूरज डूबता है भरम रख लेंगे ...
अँधेरा धरा पर होता नहीं है ,
भरोसे की रौशनी सहमती है जितनी सोच ,
कोई रौशनी इतनी चमकती नहीं ...सभी को सूरज की तमन्ना हुई
अँधेरे बहुत भले लगता है मुझको ....
फिर आवाज आई तेरी खातिर ए सूरज ...जा चमक मुंडेर पर उसकी
मौत का परचम ,ला दे दे मंजूर है ..
सूरज डूबता है भरम रख लेंगे ...
अँधेरा धरा पर होता नहीं है ,
अब मत आना मिलने मुझसे कह दिया है सूरज को अब .
कुछ अहसास धोखे से डर खटखटाने आ गए ...
उन्हें छोड़ आये है उनके घर ,ताला लगा दिया अलीगढ़ी अब
आँसू ,दर्द भूख बाकी है संग ...बता मेरे हिस्से में क्यूँ
मैं आम इंसान हूँ ,कोई तमन्ना नहीं है पर ....
रोटी तो चैहिये ....गिद्धों की निगाहें नोचने लगी है जिस्म को हर चौराहे
सूरज डूबता है भ्रम रख लेंगे ..
अँधेरा धरा पर होता नहीं है ,
आज एक खारा सा समन्दर ढलका ये मुझे क्यूँ छूकर गया ...
नहीं मिटा दूंगी वजूद कोई न बचेगा ..अब देख लेना तुम .
पुकारने भी नहीं लौटेगा कोई भी ..
अकेले ,अकेले हाँ ...बस अकेले मैं अकेले ही हूँ .
जा ,ए सूरज जा ...अँधेरे ही मेरे अपने है बाकी कोई भी नहीं .
ए शब्द... रुक जाओ
बस इतनी उड़ान न उडो ...घायल होकर गिरोगे ...कोई नहीं है ..
दूर तलक सताधारी पर भरोसा मत कर
तुझे बस अकेले ...अकेले ...और बस अकेले ही .--विजयलक्ष्मी
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