अकेले नहीं उडेंगे अब ....
ख्याल रख ..अकेले नहीं उडेंगे अब..
साथ ही जाना है अब दरकार ए मौत भी हों तो अच्छा ..
क्या जन्मों में भरोसा है ..
सुना है आत्मा की आवाज जाती है जब उस छोर तब पुन:जन्म लेते है ..
सोचा है पंहुचा ही दूँ ...इन्तजार कैसा ..फिर सोच ..
फलक के उस छोर पर भी शब्द नहीं ढूढने होंगे ..
बदलों के पार ....क्या नजर होगा
उड़ते से हम ढूंढ लेंगे फिर एक दूजे को वहाँ भी ..
रूह का रुह के साथ सफर ..ये कौन सी दुनिया है ..
कोई कैसे बताएगा ...किसी ने विचरण न किया होगा ऐसे..
स्मित रेख को मिलने दो खुद से ..
इतना जोर से भी नहीं, आवाज आ रही है हंसी की बाहर तक ...
ओह ...तुम हंसते भी हों ...शब्द ..सूरज को तो अलग ही पाया है सबसे ..
आज तबस्सुम सजा ही डालो ..
चल अब उड़ चले ...दाना भी बीनना है सहर का सूरज सर पर चढ़ आया है ..
तापमान कुछ ज्यादा चढा है आज मगर खामोश....
बहुत बोल चुके न ..अब यूँ न देखो ..
नहीं ....बिलकुल भी नहीं ...मालूम है ...
एक दिन के बंद ने सब कम ठप्प के दिए है ..विजयलक्ष्मी
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