Friday, 15 June 2012



क्या बात हों कि दुनिया में कोई तन्हा न हों ..
सबके को सब मिले ,गम क्यूँ गर कोई मेरा अपना न हों . विजयलक्ष्मी
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खफा क्यूँकर होंगे किसी से भला हम कह दो ..
हमे खुद से भी खफा होने का हक ही न रहा अब तो .-विजयलक्ष्मी 

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मुह मोडेंगे तुमसे क्या इस जमाने से भी कैसे ..
जमाने से उनको मुहब्बत है जिसपे हक ही न रहा अब तो...विजयलक्ष्मी 


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पूरी दुनिया ही घर है गमगीन है हमसाया मेरा ..
हमख्याल साथी है सफर में वही हमसाया मेरा ..-विजयलक्ष्मी

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देह नाचती होगी तरंगों पर शब्दों की सुन ,
रूह को जिस्मानी परिंदे खौफ देंगे भी क्या ...विजयलक्ष्मी 


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