राह कंटीली और पथरीली मंजिल हुई .
राह कंटीली और पथरीली मंजिल हुई ..
जा चला जा रास्ते तेरे काबिल नहीं
कुछ घूमकर सड़क मिल जायेगी ..
हिज्र में जीना ख्वाब बन के अब तू शामिल नहीं .
वक्त था तेरा कद्रदान हुआ
आज बेजा है बेखबर क्यूँ है
लापता सफर है अब देखो आज
मेरे कदमों तले जमीं भी बंजर,हरियाली शामिल नहीं
वक्त है पलट जा,राह चुन ले नई
तूफानों का जोर ,मिलना भी मुश्किल
शब्द काटेंगे फिर जख्म से लहू गिरेगा
खत्म होती दिखेंगी मंजिलें भी उनमें तू शामिल नहीं . -विजयलक्ष्मी
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