Thursday 24 December 2015

" कैसे कहूँ मेरी क्रिसमस,,"

" बड़ा दिन " ( भारत का सबसे छोटा दिन )
स्वीकारो  इस सच को 
क्या तुमने उतारा कभी सूली से आजतक भी
बताओ ..सोचो तो
कैसे कहूँ मेरी क्रिसमस,,
जब कुंवारी औरत के माँ बनने पर सूली बनती हो हरबार इक नई
सत्य तो सूली पर ही चढ़ा है सदा से
झूठ ने कंधा दिया हर बार है
ईसा चढ़े जब से उतारा नहीं आजतक किसी ने भी
पहले मौत का जश्न होगा फिर जिन्दा होने का स्वांग
जिन्दे को मारते रहे ..मारकर पूजते हैं बताकर भगवान
वाह रे तेरी माया निराली है इंसान .---------------- विजयलक्ष्मी



" उभरे है मुस्कुराहट दर्द के मुहानों में "




" अक्सर प्रतिद्वंदी नजर आते हैं..
इक दूजे के खिलाफ कटघरे में खड़े पाते हैं
दूरियां कितनी भी हो ..या खिंचे दीवारे नफरत की
मगर सच है यही ...
स्त्री और पुरुष इक दूजे बिन अधूरे रह जाते हैं ,,
सरिता के दो पाटों से साथ चलते जाते हैं ,
स्नेह- धारा से दोनों ही भीगते हैं जब ..
दूरियों नजदीकियों को त्याग पूरे हो पाते हैं ,,
भर जाते घाव सभी महज इक प्रेम से 
टूटे फूटे तल्ख रास्ते भी मन को भा जाते हैं 
जख्म दुनियावी पुष्प बन महक जाते हैं ,,,
मीरा या राधा.... कृष्ण याद बहुत आते हैं "

 ----- विजयलक्ष्मी

" कहो तुम, बिखरे हो क्यूँ फिजाओं में ,
आकरके संवर जाओ मेरी वफाओ में ||


खुशबू ,महकाती है जो इन साँसों को,
अब सिमट भी जाओ उन्ही हवाओं में ||



                                                     इक तेरा साथ ही यूँ मुनासिब न हुआ
बरसती देखी बूंदे क्या कभी घटाओं में ||

                                                      मैं संवर तो जाऊं हर साँझ औ सहर,
चमकना बनके सूरज मेरी निगाहों में ||

                                                         बकाया सी आरजू इक आईना हो ,
मिलन रूहानी दिखे इन निगाहों में ||

                                                      पशेमां हाल जमाने को बताना क्या ,
उभरे है मुस्कुराहट दर्द के मुहानों में || "
--- विजयलक्ष्मी

Wednesday 23 December 2015

" किसान भूखा नहीं होगा ...उसका निवाला सूखा नहीं होगा ,,"

" पलकों में ख्वाब से ठहरे तुम ..
आंसूं बन न गिर जाना .. 
गिरती रही बबूल पर भी ओस..
बबूल ने भी कब माना ..
चांदनी बिखेरती ठंडी रौशनी..
चकवा गाये विरही गाना ..
जलता रहा सूरज तन्हा-तन्हा
सौंधापन लिए बरसात आना
गगन के सितारे से गुफ्तगू ..
चोरी से छत पर आना ..
रात अमावस देख अंधियारी ..
ओस का गिर जाना ..
रात का काजल आँख में लिए ..
अनजान पथ पर बढ़ जाना ..
दर्द की इक पोटली ..
सरे राह मन गाडी पर लद जाना ..
इंतजार भोर का ..
मुझे भी उसे भी..मगर मंजिल का खो जाना .
कदम कदम फिर दिशा बोध होगा ..
पल्लवित उपवन जाने कब पुष्पित होगा,,
आस भी है विश्वास भी है...अहसास भी है ..
और..इंतजार उस आखिरी लम्हे का
जब सूरज निकलेगा ..
मुस्कान खिलेगी होठो पर
दुःख पोटली बना खो जायेंगे ,,
गम बक्से में बंद हो जायेंगे ...
और..
आँख का समन्दर खाद बनेगा खेतो की
किसान भूखा नहीं होगा ...उसका निवाला सूखा नहीं होगा ,,
न साहूकार उधारी मांगेगा ..
न बेचनी पड़ेगी गाय किसी कसाई के हाथों चंद रुपयों की खातिर
न कोई बाला भय से थरथर कांपेगी ,,
न आजादी होगी किसी अपराधी को ,,
न दर्द उगेगा किसी भी आँख में
और स्वार्थ डूब मरेगा ...ईमान के समन्दर में
जमीर की ऊँची लहरों के बीच "
---- विजयलक्ष्मी

Sunday 20 December 2015

" कांग्रेस का तोहफा महिलाओ के नाम "

कांग्रेस ने सडसठ साल में दिया रेपिस्ट को छुड़ाने वाला कानून .......और बात करती है महिला सुरक्षा की .... जिस पार्टी के अध्यक्ष पद पर लम्बे समय तक एक औरत विराजमान रहकर भी अपराध के खिलाफ सख्त कानून नहीं बना सकी ...उसका वजूद खत्म होना ही राष्ट्र को सुरक्षा की तरफ लेजा सकता है.... यदि यही कांग्रेस स्वतंत्रता का दम्भ भरती है तो झूठ लगता है सब || ----- एक नागरिक ( विजयलक्ष्मी )

" करो बुरे कर्म .. दिल्ली की सरकार उसके लिए इनाम देगी,,"

" दामिनी ...नहीं ..नहीं ज्योति कहिये साहिब ,
तीन बरस हो गये न्याय नहीं मिला है..
जाने कितनी ज्योति दामिनी बन गयी गये तीन बरसों में
न्याय दीखता था अर्श पर बेहोश पड़ा है फर्श पर 
उम्र ने कर्म नहीं देखा ..फिर सजा उम्र को क्यूँ देखे ,,
सत्य कहूँ तो न्याय भी मोहताज हुआ है आज
कभी विपक्ष के कारण संसद के ठप्प होने का ..
कभी वकीलों के भीतर छिपे स्वार्थ के कोने का ..
मोमबत्ती और जुलुस से ईमान नहीं जिन्दा होता ..
गुनहगार के वकील से पूछो जाकर वो क्यूँ नहीं शर्मिंदा होता
गलती को ढकने वाला गुनहगार बड़ा अपराधी से..
उसका बहिष्कार करो अपनेपन की आबादी से..
मरे डूब चुल्लू भर पानी में ..
जिसकी जीवनचर्या जाती है इक गुनहगार बचाने में ,,
ज्यादा दौलत की भूख जिन्हें .. अपराधी देते मुहमांगी कीमत उन्हें ..
साम दाम दंड भेद से गुनहगार बच जाते हैं ..
क़ानून बनाने वाले भी क्या दौलत पर भरमाते हैं ..||
कानून शिकंजा क्यूँ नहीं कसता झूठ को सच बनाने वालों पर
सबक उन्हें भी सिखाना होगा ,,
सच का पाठ पढ़ाना होता ...
सोया जमीर जगाना होगा
गुनाह व्याभिचारी बचाना होगा
झूठे दौलत के भूखों को सामाजिकता का पाठ पढ़ाना होगा  "
---- विजयलक्ष्मी

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" अट्ठारह वर्ष से कम ..
करो बुरे कर्म .. दिल्ली की सरकार उसके लिए इनाम देगी,,
बदले में तुम्हारी बिरादरी की वोट लेगी..
और दिल्ली बढ़ते दुराचार की आरामगाह बनेगी ,,
देश की गलियों में गुनहगार कुकुरमुत्ते से उगेंगे ,,

सारे ही दिल्ली की "आप सरकार " के खेवनहार बनेगे..
दोनों एक दूजे के सहारे ही तरंगे
शर्मनाक परिस्थिति मौत के हकदार को देरही है पुरुस्कार || "
----------- विजयलक्ष्मी


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कांग्रेस ने सडसठ साल में दिया रेपिस्ट को छुड़ाने वाला कानून .......और बात करती है महिला सुरक्षा की .... जिस पार्टी के अध्यक्ष पद पर लम्बे समय तक एक औरत विराजमान रहकर भी अपराध के खिलाफ सख्त कानून नहीं बना सकी ...उसका वजूद खत्म होना ही राष्ट्र को सुरक्षा की तरफ लेजा सकता है.... यदि यही कांग्रेस स्वतंत्रता का दम्भ भरती है तो झूठ लगता है सब || ----- एक नागरिक ( विजयलक्ष्मी )



Saturday 19 December 2015

" सडक "

" अमीरों की शिकारगाह होती है सडक ,,
लहुलुहान फूटपाथ हुआ रोती है सडक 
वो खबर अख़बारनशी तो हुई जो सोती थी सडक
नशाखोरो के लिए कम्पनी बाग़ होती है सडक
महिलाओ के लिए बलात्कारी होती है सडक 
पत्रकारों के लिए जुगाड़ रोटी का है सडक
किसी की जिन्दगी किसी की बन्दगी की ..
किसी की दरिंदगी की अजब गवाह होती है सडक
हर किस्से को गा गाकर सुनाती है सडक
न्याय को ठेंगा दिखाते कानून की दुकान होती है सडक

कैसी  कैसी हैं  सडक ..कहीं गवाह जन्म की कही मौत की नींद सुलाती हैं सडक "----विजयलक्ष्मी

" ये न्याय वाले कहाँ सो गये || "

" तुम जब से खुदा हो गये ,,
जिन्दगी से जुदा हो गये..||


छूटती नहीं आदत हमारी,,
बेमुरव्वत सी सदा हो गये..||


झांकना दिल के आईने में,,
बड़ी खूबसूरत सजा हो गये..||

न दीपक न अजान ओ नमाज
कलम ए इबादत अता हो गये..||

मौसम पतझड़ होगा नहीं,,
राह ए वफा में फना हो गये..||

दीन ओ इमां मुहब्बत हुआ,,
लम्हे वफा की अना हो गये ..||

सियासत ए रियासत .न पूछ,,
घोटाला ए किस्सात जमा हो गये..||

रूहें खुदाई ... देह पंचभूती,,
वेदांत क्यूँकर खफा हो गये..||

गिद्ध लिए देखे सिद्ध दृष्टि,,
सिद्दांत सारे हवा हो गये ..||

हाँ ,,ये मानस ... वो मिडिया
उजड़ते सच के निशाँ हो गये ..||

मत छोड़ना पकड़े लुटेरे ,,
ये न्याय वाले कहाँ सो गये || "-
--- विजयलक्ष्मी

Friday 18 December 2015

"खुद में झांको तब फिर कहना काफ़िर कौन यहाँ प्यारे "

" हम तो बुतपरस्त ठहरे तुमने क्यूँ पत्थर चिन मारे,,
हम घंटे घडियाल बजाते थे,,तुम्हे अजान कैसे तारे,,
राम लला की जन्मभूमि को आततायी ने कब्जाया था
पुरखे कहो बदले कैसे गर भारत की सन्तान हैं सारे,,
यहाँ शहीदी बाना प्यारा है माता तो ममता लुटा रही 
तुम डायन माँ को पुकार रहे कैसे चुप सहे सुत सारे
तुमको रावण भी कहूँ कैसे उसको भो लंका प्यारी थी
तुम जयचंदी रंग रंगे हुए जमीर बेच मन रंगे हैं कारे
बस कहने की बात रही लेकिन ईमान अब जात नहीं
खुद में झांको तब फिर कहना काफ़िर कौन यहाँ प्यारे
" ------ विजयलक्ष्मी

Thursday 17 December 2015

"राष्ट्र को गुनाह के रास्ते मत भेजो .. "

" अरे ओ विपक्ष सुनो,,अब संसद चलने दो ,
युवा होते लोकतंत्र को अब सम्भलने दो.
बहुत हुआ परिवारवाद राष्ट्रीयता को उबलने दो.
खूबियों से भरा है भारत हुनर को निखरने दो
मेहनत से यहाँ कोई नहीं डरता,,समझना मत चापलूसों के आगे वश नहीं चलता है
एक हेराल्ड ही भारत विकास का विकल्प नहीं हो सकता..
सुना है जी एस टी देश की किस्मत बदल सकता है
संसद को रोक व्यर्थ खून नहीं उबल सकता है
पैरों पर खड़े होने दो देश को बैसाखियों के भरोसे कब तक चल सकता है
तुम कहते हो गाँधी पटेल सब तुम्हारी बपौती है
बस इतना बतलाओ सडसठ बरस बाद भी जनता क्यूँ रोतीं है
जहरीली हुई हवा क्यूँ ...खेत उजड़े पड़े हैं ..
जंगल थे जितने आधे से ज्यादा क्यूँ उधड़े पड़े हैं
तुम तो सेकुलर थे फिर मन्दिर मस्जिद क्यूँ उलझे पड़े हैं
बहुत हुआ तुम्हारा देश भडकाने का पंगा...
सम्भल जाओ तेईस जनवरी को होगा कांग्रेसी इतिहास भी नंगा
जब सुभाष की सारी बाते होंगी सामने ..
क्यूँ पड़ा छोड़ना देश आजादी के बाद में ..
तुमने वीर सुभाष औ आजाद भगत का मजाक बना डाला
शहीद हुए वतन पर उनको आतंकी बता डाला ..
मत भूलो सहिष्णुता इस देश का संस्कार है ,,,
याद रखना मगर पृथ्वीराज औ राणा प्रताप की आज भी देश में भरमार है
इसलिए कहते हैं अभी समय है चेतो ..
राष्ट्र को गुनाह के रास्ते मत भेजो ..
अरे ओ विपक्ष सुनो,,अब संसद चलने दो ,
युवा होते लोकतंत्र को अब सम्भलने दो.
बहुत हुआ परिवारवाद राष्ट्रीयता को उबलने दो.
खूबियों से भरा है भारत हुनर को निखरने दो "---- विजयलक्ष्मी

Tuesday 15 December 2015

" भागीरथ-प्रयास बिन पुरखे श्राप से नहीं छूटते || "

" माना वक्त की शाख से कभी लम्हे नहीं टूटते ,,,
अहसास जुड़े हो रूह से गर साथ नहीं छूटते ||

कदम दर कदम कोशिशे जरूरी है जूनून की
जिन्दगी में हमेशा किस्मती छींके नहीं टूटते ||

टूटते सितारे का दर्द लहू संग बह उठा मुझमे
झूठे नेताओ के राजनैतिक अहंकार नहीं फूटते ||

दूसरे को गाली,नहीं झांकते अपने गिरेबान में
भ्रष्टाचार उन्मूलन सृजक से साहिब नहीं छूटते ||

राजनैतिक सरिता गदली हो चुकी बुरी तरह
भागीरथ-प्रयास बिन पुरखे श्राप से नहीं छूटते || "
----------- विजयलक्ष्मी

Sunday 13 December 2015

" पर्यावरण :प्रतिपल फेफड़ो में भरती मिले जहर "

" तापमान धरती का बढ़ता ही जा रहा है
मौसम सर्दियों का पीछे हटता ही जा रहा है,
प्रकोप प्रकृति का बढ़ता ही जा रहा है ,,
उफनती नदियों की जिन्दगी कम हो रही है..
जितनी बची है अपने स्वास्थ्य को रो रही हैं
गंगा यमुना पूजित होकर भी वस्त्र धो रही है
कहीं पुष्प कही अस्थि ...कहीं गंदे नालों को ढो रही हैं
धरोहर सांस्कृतिक अस्तित्व को रो रही हैं
मरे जमीर के इंसान ढो रही है ...
हवा गंदगी से भरी पड़ी है किसकदर ,..
प्रतिपल फेफड़ो में भरती मिले जहर
सांस हुई अधूरी है बढ़ता हुआ कहर
pm कई गुना प्रदूषण विकराल हो चुका
नहीं सुधरे जो आज भी तो भविष्य अंधकारपूर्ण हो चूका
विषबेल बढ़ चली नौनिहालों की तरफ ..
देखो नग्न पर्वत जमती नही बर्फ ..
न धूप है न दर्शन सूरज के हो रहे ,,
खिसकते हुए पहाड़ गंदे नद हो रहे
न कूड़े का है ठिकाना न संजीदगी सफाई पर ,,
फिसल रहे हैं पाँव दौलत औ स्वार्थ की काई पर
सम्भल जाओ आज भी तो शायद तकदीर बदल सको
दो चार पीढ़ी और आगे जिन्दा रख सको"
---------- विजयलक्ष्मी

" मुर्दा हुए वकील ,,बिकता मिला न्याय , क्या करूं ||" [ 3 ]



" पाश्चात्यीकरण के फेर में मर्यादा पर ठेस ,,
तहजीब भाति नहीं,करें सत्य से परहेज ||

आखर-आखर बिखरे हैं अहंकार के पत्थर
गिरी हुई नियत के, नहीं फेंकने से गुरेज ||

नेताओ के बीच में ईमान बना फुटबॉल
स्वार्थपूर्ति के लिए नीचता रहे सहेज ||

मर्यादित भाषा नहीं , चेहरा दिखे कुरूप
मर्यादित तहजीब ही रखे मुख पर तेज ||

स्वार्थ के धंधे दिखे न्याय कुर्सी अभियान
करते बलात्कारी की फांसी से परहेज ||

दया-धर्म के नाम पर दिखते आतंकवादी
गौकशी नहीं जुर्म लगे चले जाए परदेस ||"
----- विजयलक्ष्मी

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" तहजीब भूल अभिव्यक्ति की देखो ढंग हुए बदरंग ,
प्रश्नचिन्ह भी लगा रहे वही नग्नता को कहे दबंग "
.--- विजयलक्ष्मी


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" मुसाफिर बदहवास तलाश मंजिल की क्या करूं ,
चल रही साँस है नहीं किसी की आस , क्या करूं.||


बजते स्वरों से कान दुश्मनों के खड़े हुए ,
नेताओं से परेशान झूठ सच का प्रमाण, क्या करूं ||


रंगत ए वतन बहुत नाजुक हुई आजकल 
स्वार्थ की शिनाख्त शिकायत भी किससे क्या करूं ||


कानून का खौफ भी सबको नहीं होता ,
मुर्दा हुए वकील ,,बिकता मिला न्याय , क्या करूं ||


वो बेच रहा है गाय धन के हिसाब पर ,
हर कोई मौकापरस्त मरा पड़ा ईमान, क्या करूं ||


कलदार को माईबाप बना बैठा इंसान ,
मोटा हुआ दलाल,भूखा मरता किसान, क्या करूं ||


कलम मानती नहीं चलने को परेशान .
झूठ सच पर सवार ,सहमी सी आवाज, क्या करूं ||"
.----------- विजयलक्ष्मी

Saturday 12 December 2015

" सहमी है चिरैया आंगन की ... देहलीज भी घबराई सी "



" उदास रातों को सजा दिया है यादों के सीप में मोती बना,
और स्वाति की बूंदों ने पलकों पर बन्दनवार सजा डाला

सहमा है सच और झूठ सडकों से संसद कर घूम रहा है ,
अजब हैरान बस्ती है स्वार्थ को भी वजनदार बना डाला

किसान करता रहा आत्महत्या दशको से भूखे प्रदेश में
महाजन की चमकी महाजनी दलाली का बाजार बना डाला

सहमी है चिरैया आंगन की ... देहलीज भी घबराई सी
पलक भर की दूरियां सदियों लम्बा इन्तजार बना डाला "
-------- विजयलक्ष्मी

" वो सूरज ही था मेरी भोर का जो तारा बनकर चमक रहा था "

" साँझ जरा सी ढलकी
सूरज सहर से कोहरे की रजाई ओढ़े दिखा
बादलों के शामियाने हवा के झूले पर झूलते
कुछ धुंधली सी लालिमा पर स्याही गिर रही थी
आसमान से रात आगे बढ़ रही थी
और याद के मोती बिखरे हुए थे आँख में
निखर उठे स्वर्ण जैसे तप के आग में
अहसास उमड़े इसतरह संसद में जैसे कांग्रेस ,,
लोकतंत्र पर हो चली तानाशाही राजसी
सभी के स्वार्थ जानकर खोमोशियाँ कुछ बढ़ गई
सोचते क्या ठहरकर गुफ्तगू किससे करें
उठ चली फिर नजर आसमां के दुसरे छोर
इक सितारा तन्हा सा तकता मिला धरती की ओर
बंधा सा मन देखता था ...
गगन के उसी छोर..
मौन जैसे बींधता था ..
तभी वो टिमटिमाया ..
धरती तक खिंची लकीर वो रौशनी लुभा रही थी ,,
दोनों हाथ बढ़ाकर बुला रही थी ,,
तन्हा नहीं हो तुम ....मुझको बता रही थी..
स्नेहिल सा बंधन था ...लगा धरती गगन का मिलन था,,
वो सूरज ही था मेरी भोर का जो तारा बनकर चमक रहा था "
 -------- विजयलक्ष्मी

Friday 11 December 2015

" वो झूठ के ही मददगार है "

" सच बांदी बनाई झूठ की ,,
ईमानदार भी गुनहगार है .
सच को तवायफ बना दिया
सब तलबगार ही गुनहगार है
झूठ से निकाह सच को तलाक
वैमनस्य के भी रिश्तेदार हैं .
गिनो गुनाह ईमान से ही
यहाँ बेवफा ही तलबगार है
मुर्दादिल लोगो से बचे कैसे
वो झूठ के ही मददगार है "
 ----- विजयलक्ष्मी

न बचे कोई लम्हा खौफ ए रुसवाई मेरे लिए "

" रंग सिंदूरी उतरा भोर का बनकर मेरे लिए ,,
वो बादलों संग प्रेम-वर्षा भिजवाई मेरे लिए .
सर्द मौसम में रजाई कोहरे की आई मेरे लिए ,,
गुलों से बगिया धरती की सजाई मेरे लिए .
गंगा की धारा मन-नैया बनी पावन मेरे लिए,,
बना जलते दीप की नैया तैराई मेरे लिए.
वो लाली कपोलों पर उभरी साँझ की मेरे लिए ,,
वो कजरारी रात काजल बनाई मेरे लिए .
इक सेज ख्वाबों की पलको में बसाई मेरे लिए ,,
हाँ , बड़ी खूबसूरत ख्वाबगाह बनाई मेरे लिए .
बहुत खुश हूँ नम मौसम आँखों के भेजे मेरे लिए ,,
न बचे कोई लम्हा खौफ ए रुसवाई मेरे लिए ".---- विजयलक्ष्मी

Wednesday 9 December 2015

" जाँचकर्ता ईमानदार क्यूँ पीछे लगाये तुमने "

" वो निशाँ धुंधलाये कब जिनसे तुम गुजरे ,,
हमे छाँव वही मिली जो वृक्ष लगाये तुमने ||

वाह चापलूसी, कहानी पुरानी किरदार नये,,
रसोइये औ नौकर गद्दी पर ठहराए तुमने ||

कौन बतायेगा है सियासत कैसी नेतागिरी ,,
न्याय पुकारे, संसद में जाम लगाये तुमने ||

चप्पलों की बात में भला क्या धरा है अब ,,
स्वार्थहित सधे राजनैतिक दांव लगाये तुमने ||

जांचने करने को कहा था हमने तो मजाक में,,
न्यायिक जमाती सच में पीछे लगाये तुमने ||

मानो सियासी जालसाजी है पुश्तैनी धंधा ,,
जाँचकर्ता ईमानदार क्यूँ पीछे लगाये तुमने ||  "
---- विजयलक्ष्मी

Tuesday 8 December 2015

" संसद को वक्त ही न छोड़ा किसी की भूख प्यास के लिए "

" दाल औ प्याज की बढ़ते रुख पर सरकार बदलती है ,,
कहते वही लोग क्या किया सरकार ने किसान के लिए ||

नमकीन काजू साथ लेके जाम शाम से रंगीन है फिजा
मशवरा के ठाठ कितने जबर्दस्त गरीब इंसान के लिए ||

अरे गरीबों मर रहे हो क्यूँ तुम अभी बिमारी औ भूख से
संसद को वक्त ही न छोड़ा किसी की भूख प्यास के लिए  ||"
---- विजयलक्ष्मी

Monday 7 December 2015

" बम के गोले हाथ उठाये घूमते मिले खुदाई धिक्कार के लिए "

" इन्सान हूँ शायद बकाया दर्द बहता है मुझमे इसीलिए ,,
पत्थर-दिल नेता हमारे,जीते मिले सभी कलदार के लिए ||

कल डूबते सूरज को देखा शर्मसार सा दिखा था जाने क्यूँ ,,
रात अँधेरी देख समझी,जल न सका बन अंधकार के दिए ||

प्रकृति का प्रबंध, कोई गरीब मर न जाए भूख प्यास से ,,
सडाई नदियाँ सभी, काटे वृक्ष स्वार्थपूरित जरूरियात के लिए ||

स्वास्थ्य का प्रतीक योग धर्म के नाम लिखा गया था कल ,,
हंगामा बरपा रहे हैं वही आज मोहताज बता बीमार के लिए ||

बंटवारा कर दिया धार्मिक फरमाबरदारो ने चाँद तारों का,,
चाँद उन्मादित सरहद पर, सूरज सनातन अधिकार है लिए ||

धरा तो बंट चुकी पहले हवा औ बरखा को बाँटना बकाया ,,
बम के गोले हाथ उठाये घूमते मिले खुदाई धिक्कार के लिए ||"
--------- विजयलक्ष्मी

Sunday 6 December 2015

जानकारियां ....आप भी जाने |

पाण्डव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं
1. युधिष्ठिर 2. भीम 3. अर्जुन
4. नकुल। 5. सहदेव
( इन पांचों के अलावा , महाबली कर्ण भी कुंती के ही पुत्र थे , परन्तु उनकी गिनती पांडवों में नहीं की जाती है )
यहाँ ध्यान रखें कि… पाण्डु के उपरोक्त पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन
की माता कुन्ती थीं ……तथा , नकुल और सहदेव की माता माद्री थी ।
वहीँ …. धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र…..
कौरव कहलाए जिनके नाम हैं
1. दुर्योधन 2. दुःशासन 3. दुःसह
4. दुःशल 5. जलसंघ 6. सम
7. सह 8. विंद 9. अनुविंद
10. दुर्धर्ष 11. सुबाहु। 12. दुषप्रधर्षण
13. दुर्मर्षण। 14. दुर्मुख 15. दुष्कर्ण
16. विकर्ण 17. शल 18. सत्वान
19. सुलोचन 20. चित्र 21. उपचित्र
22. चित्राक्ष 23. चारुचित्र 24. शरासन
25. दुर्मद। 26. दुर्विगाह 27. विवित्सु
28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ
31. नन्द। 32. उपनन्द 33. चित्रबाण
34. चित्रवर्मा 35. सुवर्मा 36. दुर्विमोचन
37. अयोबाहु 38. महाबाहु 39. चित्रांग 40. चित्रकुण्डल41. भीमवेग 42. भीमबल
43. बालाकि 44. बलवर्धन 45. उग्रायुध
46. सुषेण 47. कुण्डधर 48. महोदर
49. चित्रायुध 50. निषंगी 51. पाशी
52. वृन्दारक 53. दृढ़वर्मा 54. दृढ़क्षत्र
55. सोमकीर्ति 56. अनूदर 57. दढ़संघ 58. जरासंघ 59. सत्यसंघ 60. सद्सुवाक
61. उग्रश्रवा 62. उग्रसेन 63. सेनानी
64. दुष्पराजय 65. अपराजित
66. कुण्डशायी 67. विशालाक्ष
68. दुराधर 69. दृढ़हस्त 70. सुहस्त
71. वातवेग 72. सुवर्च 73. आदित्यकेतु
74. बह्वाशी 75. नागदत्त 76. उग्रशायी
77. कवचि 78. क्रथन। 79. कुण्डी
80. भीमविक्र 81. धनुर्धर 82. वीरबाहु
83. अलोलुप 84. अभय 85. दृढ़कर्मा
86. दृढ़रथाश्रय 87. अनाधृष्य
88. कुण्डभेदी। 89. विरवि
90. चित्रकुण्डल 91. प्रधम
92. अमाप्रमाथि 93. दीर्घरोमा
94. सुवीर्यवान 95. दीर्घबाहु
96. सुजात। 97. कनकध्वज
98. कुण्डाशी 99. विरज
100. युयुत्सु
( इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहनभी थी… जिसका नाम""दुशाला""था,
जिसका विवाह"जयद्रथ"सेहुआ था )
"श्री मद्-भगवत गीता"के बारे में
ॐ . किसको किसने सुनाई?
उ. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।
ॐ . कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।
ॐ. भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।
ॐ. कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी
ॐ. कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।
ॐ. कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में
ॐ. क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।
ॐ. कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय
ॐ. कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक
ॐ. गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।
ॐ. गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने
ॐ. अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को
ॐ. गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में
ॐ. गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।
ॐ. गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद
ॐ. गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना
ॐ. गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण जी ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.
अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद
अधूरा ज्ञान खतरना होता है।
33 करोड नहीँ 33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू
धर्म मेँ।
कोटि = प्रकार।
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है,
कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता।
हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...
कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे :-
12 प्रकार हैँ
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,
सविता, तवास्था, और विष्णु...!
8 प्रकार हे :-
वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।
11 प्रकार है :-
रुद्र: ,हर,बहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।
एवँ
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।
कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी
अगर कभी भगवान् के आगे हाथ जोड़ा है
तो इस जानकारी को अधिक से अधिक
लोगो तक पहुचाएं। ।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
१ हिन्दु हाेने के नाते जानना ज़रूरी है
This is very good information for all of us ... जय श्रीकृष्ण ...
अब आपकी बारी है कि इस जानकारी को आगे बढ़ाएँ ......
अपनी भारत की संस्कृति
को पहचाने.
ज्यादा से ज्यादा
लोगो तक पहुचाये.
खासकर अपने बच्चो को बताए
क्योकि ये बात उन्हें कोई नहीं बताएगा...
📜😇 दो पक्ष-
कृष्ण पक्ष ,
शुक्ल पक्ष !
📜😇 तीन ऋण
देव ऋण ,
पितृ ऋण ,
ऋषि ऋण !
📜😇 चार युग -
सतयुग ,
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ,
कलियुग !
📜😇 चार धाम -
द्वारिका ,
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी ,
रामेश्वरम धाम !
📜😇 चारपीठ -
शारदा पीठ ( द्वारिका )
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,
शृंगेरीपीठ !
📜😇 चार वेद
ऋग्वेद ,
अथर्वेद ,
यजुर्वेद ,
सामवेद !
📜😇 चार आश्रम
ब्रह्मचर्य ,
गृहस्थ ,
वानप्रस्थ ,
संन्यास !
📜😇 चार अंतःकरण -
मन ,
बुद्धि ,
चित्त ,
अहंकार !
📜😇 पञ्च गव्य -
गाय का घी ,
दूध ,
दही ,
गोमूत्र ,
गोबर !
📜😇 पञ्च देव -
गणेश ,
विष्णु ,
शिव ,
देवी ,
सूर्य !
📜😇 पंच तत्त्व -
पृथ्वी ,
जल ,
अग्नि ,
वायु ,
आकाश !
📜😇 छह दर्शन -
वैशेषिक ,
न्याय ,
सांख्य ,
योग ,
पूर्व मिसांसा ,
दक्षिण मिसांसा !
📜😇 सप्त ऋषि -
विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज ,
गौतम ,
अत्री ,
वशिष्ठ और कश्यप!
📜😇 सप्त पुरी -
अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी ,
माया पुरी ( हरिद्वार ) ,
काशी ,
कांची
( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,
अवंतिका और
द्वारिका पुरी !
📜😊 आठ योग -
यम ,
नियम ,
आसन ,
प्राणायाम ,
प्रत्याहार ,
धारणा ,
ध्यान एवं
समािध !
📜😇 आठ लक्ष्मी -
आग्घ ,
विद्या ,
सौभाग्य ,
अमृत ,
काम ,
सत्य ,
भोग ,एवं
योग लक्ष्मी !
📜😇 नव दुर्गा -
शैल पुत्री ,
ब्रह्मचारिणी ,
चंद्रघंटा ,
कुष्मांडा ,
स्कंदमाता ,
कात्यायिनी ,
कालरात्रि ,
महागौरी एवं
सिद्धिदात्री !
📜😇 दस दिशाएं -
पूर्व ,
पश्चिम ,
उत्तर ,
दक्षिण ,
ईशान ,
नैऋत्य ,
वायव्य ,
अग्नि
आकाश एवं
पाताल !
📜😇 मुख्य ११ अवतार -
मत्स्य ,
कच्छप ,
वराह ,
नरसिंह ,
वामन ,
परशुराम ,
श्री राम ,
कृष्ण ,
बलराम ,
बुद्ध ,
एवं कल्कि !
📜😇 बारह मास -
चैत्र ,
वैशाख ,
ज्येष्ठ ,
अषाढ ,
श्रावण ,
भाद्रपद ,
अश्विन ,
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष ,
पौष ,
माघ ,
फागुन !
📜😇 बारह राशी -
मेष ,
वृषभ ,
मिथुन ,
कर्क ,
सिंह ,
कन्या ,
तुला ,
वृश्चिक ,
धनु ,
मकर ,
कुंभ ,
कन्या !
📜😇 बारह ज्योतिर्लिंग -
सोमनाथ ,
मल्लिकार्जुन ,
महाकाल ,
ओमकारेश्वर ,
बैजनाथ ,
रामेश्वरम ,
विश्वनाथ ,
त्र्यंबकेश्वर ,
केदारनाथ ,
घुष्नेश्वर ,
भीमाशंकर ,
नागेश्वर !
📜😇 पंद्रह तिथियाँ -
प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी ,
पंचमी ,
षष्ठी ,
सप्तमी ,
अष्टमी ,
नवमी ,
दशमी ,
एकादशी ,
द्वादशी ,
त्रयोदशी ,
चतुर्दशी ,
पूर्णिमा ,
अमावास्या !
📜😇 स्मृतियां -
मनु ,
विष्णु ,
अत्री ,
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना ,
अंगीरा ,
यम ,
आपस्तम्ब ,
सर्वत ,
कात्यायन ,
ब्रहस्पति ,
पराशर ,
व्यास ,
शांख्य ,
लिखित ,
दक्ष ,
शातातप ,
वशिष्ठ !

Thursday 3 December 2015

" जहां फरिश्ते भी रिश्ते से होकर आँखों में तिर जाते है "

" जीवन का प्रवाह 
न सन्यास न उच्छ्लन्खता 
न सियासतदारी है 
न रियासतदारी है 
न त्याग की गाथा ही उतारती है उस छोर 
न स्वार्थ की कामना
न इश्वर से होने वाला सामना
न इश्वर तुल्य होने की इच्छा
न कृष्ण न शिव होने की उत्कंठा
न पर्वत सी पीर न समन्दर के तीर
न दर्द सुमेरु बनने की
न उत्कंठा आकंठ भरने की
क्या करना महान बनू मैं बहुत
न गणना पुष्पित डालो की
न चिंता सांसारिक भालो की
न उद्वेलित मन विरानो सा
न चाहा बागों सा खिलना
विरानो के काँटों में पुष्प बना
घनी धुप में वृक्ष घना
सहरा में बदली सा होकर बरस बरस बरसा दे मना
जब रात अँधेरी चंदा सा चमकू
चमक चांदनी रौशनी भर दू
मुस्कान बना सूखे होठो की
उलझे लट जख्मी आहटो की
बन नदिया सा बहना सिखला दो
मुझको थोडा पत्थर सा बना दो
न राह अधूरी कुछ जीवन की मारामारी
पर्वत पर बर्फ सा थोडा संघर्ष सा
करता विमर्श सा
नफरत को ताले में बंद रखना
प्रेम की धारा को नदिया सा हौसला देना
वृक्ष की खोखर में पंछी का घोसला बनेगा
तिनका चिड़िया दाना ..
जाल पंख जीवन का खेला
जिसको लेकर भी मन चले अकेला
बन सन्यासी त्याग करू जमघट का
लेकिन इच्छा हो वासी जैसे मरघट का
कभी मिलना हो गर प्रभु से अपने
लालसा मुझसे ज्यादा हो
हर बार साथ का वादा हो
जब बिछुडू नमी आँखों में
इंतजार बातो में
रास्ता कटे रातो में
दिन याद में जिन्दगी के साथ में
मयूर से नाचते हो मन के जंगल में
गुरबत हो या सत्ता न हैवानियत देना
मुझे ईश्वरत्व नहीं इंसानियत देना
जीवन का प्रवाह
न सन्यास न उच्छ्लन्खता
न सियासतदारी है
न रियासतदारी है
न त्याग की गाथा ही उतारती है उस छोर
क्षितिज के उस और मिलना
जहां फरिश्ते भी रिश्ते से होकर आँखों में तिर जाते है "
--- विजयलक्ष्मी

" हो सकता है देशवासी भी सहिष्णुता और असहिष्णुता का अंतर समझ पाते "

" असहिष्णुता ...अभी कहाँ बढ़ी जी ,,,
अभी ब्रांडेड सामन बाजार में असली कीमत से कई गुना पर बेच हमे बहलाते हैं,
हम भी चौदह रूपये किलो वाला बासमती सौ रूपये में खरीदकर खाते हैं
इस्लामिक स्टेट के साथ ईंटोलरेन्स समिति वाले हमे ही धमकाते हैं ..
असहिष्णुता का नमूना देखिये खून पसीने की कमाई हम इन्ही कीफिल्मो पर उड़ाते हैं ,
दो कौड़ी के नचइये हमारी कमाई पर हमे ही आँख दिखाते हैं ,,
कोरी झूठी बातें बनाकर रील लाइफ में रियल लाइफ में धौंस जमाते हैं
असहिष्णुता का ही तकाजा है हमारी ,लक्ष्मीबाई भगतसिंह को छोड़ इन्हें आइकोन बनाते है
इनके किये हर राष्ट्रद्रोह को हम गलती समझकर भूल जाते हैं ,,
हमने धर्म को भी ठेंगा दिखा दिया इनके चक्कर में ये हमारे को ही गरियाते हैं
कभी पुरुस्कार दिखावे को लौटते हैं ,,
इंसानियत के दोस्त होते गर ...चेन्नई को तैरना सिखाये ..किनारे लगाते ,,
आसाम के दंगे पर इंसानियत दिखाते ,,
कश्मीरी पंडित के दुःख को बाँटकर दिखाते ,,
आखिर कभी तो सच के हिमायती बनकर दिखाते ...
जनता की कमाई से कमाई गयी कमाई का कोई हिस्सा तो जनता पर लुटाकर दिखाते
हो सकता है देशवासी भी सहिष्णुता और असहिष्णुता का अंतर समझ पाते "
--- विजयलक्ष्मी

Tuesday 1 December 2015

" कोई सीरत ए लहू की बानगी मानता ही नहीं "

" जिस्म की हैसियत भी इक उपकरण सी हो गयी है आजकल,,
स्वार्थ भरी जिन्दगी के लिए दौलत ए दुनिया को रुसवा किया ||

झूठ बोला तो उसीसे जिसने बोलना सिखाया तेरी जुबान को ,,
बेजार करता है वही दामन तुझे ,,तेरी चोट ने जो फतवा दिया||

बोझ लगना लाजिमी है जर्जर हुयी देह भला किस काम की ,,
बेवकूफी भरे थे फैसले उनके तेरी जरूरत पर स्वास्थ्य लुटवा दिया ||

देंगे क्या बुढापे में खांसकर घर भर को परेशां कर रहे हैं आजकल
गिरवी घर को छुड़ाना फजूल खेत बकाया था कल बिकवा दिया || "
----- विजयलक्ष्मी

======
" बताओ ....सुरत ए हाल दिल का क्या लिखूं 
कोई धडकनों के अहसास पहचनता ही नहीं 
नगमे सुने उड़ते हवा में महक का क्या लिखूं
कोई सीरत ए लहू की बानगी मानता ही नहीं "

------ विजयलक्ष्मी

" सुंदरकाण्ड से जुड़ी 5 अहम बातें "


                " सुंदरकाण्ड से जुड़ी 5 अहम बातें "

1. सुंदरकाण्ड का नाम सुंदरकाण्ड क्यों रखा गया?
===================================
🏻हनुमानजी, सीताजीकी खोज में लंका गए थे और लंका त्रिकुटाचल पर्वत पर बसी हुई थी। त्रिकुटाचल पर्वत यानी यहां 3 पर्वत थे। पहला सुबैल पर्वत, जहांके मैदान में युद्ध हुआ था।दूसरा नील पर्वत, जहां राक्षसों के महल बसे हुए थे और तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत,जहां अशोक वाटिका निर्मित थी। इसी अशोक वाटिका में हनुमानजी और सीताजीकी भेंट हुई थी। इस काण्ड की यही सबसे प्रमुख घटना थी, इसलिए इसका नाम सुंदरकाण्ड रखा गया है।

2. शुभ अवसरों पर ही सुंदरकांड का पाठ क्यों?
=================================
🏻शुभ अवसरों पर गोस्वामी तुलसीदासद्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ किया जाता है। शुभकार्यों की शुरुआत से पहले सुंदरकांड का पाठ करने का विशेष महत्व माना गयाहै।जब भी किसी व्यक्ति के जीवन में ज्यादा परेशानियां हों, कोई काम नहीं बन रहा हो, आत्मविश्वास की कमी हो या कोई और समस्या हो, सुंदरकांड के पाठ से शुभ फल प्राप्त होने लग जाते हैं। कई ज्योतिषी और संत भी विपरीत परिस्थितियों में सुंदरकांड का पाठ करने की सलाह देते हैं।

3. जानिए सुंदरकांड का पाठ विशेष रूपसे क्यों किया जाता है?
========================================
🏻माना जाता है कि सुंदरकाण्ड के पाठ से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं। सुंदरकाण्ड के पाठ से बजरंग बली की कृपा बहुत ही जल्द प्राप्त हो जाती है। जो लोग नियमित रूप से इसका पाठ करते हैं, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं। इस काण्ड में हनुमानजी ने अपनी बुद्धि और बल से सीता की खोज की है। इसी वजह से सुंदरकाण्ड को हनुमानजी की सफलता के लिए याद
किया जाता है।

4. सुंदरकांड से मिलता है मनोवैज्ञानिक लाभ
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🏻वास्तव में श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। संपूर्ण-श्रीरामचरितमानस भगवान श्रीराम के गुणों और उनके पुरुषार्थ को दर्शाती है। सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है जो श्रीराम के भक्त हनुमान की विजय का कांड है। मनोवैज्ञानिक
नजरिए से देखा जाएतो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला कांड है। सुंदरकांड के पाठ से व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्राप्त होती है। किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए आत्मविश्वास मिलता है।

5. सुंदरकाण्ड से मिलता है धार्मिक लाभ
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🏻सुंदरकांड के लाभ से मिलता है धार्मिक लाभ हनुमानजी की पूजा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली मानी गई है। बजरंग बली बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता हैं। शास्त्रों में इनकी कृपा पाने के कई उपाय बताए गए हैं, इन्हीं उपायों में से एक उपाय सुंदरकांड का पाठ करना है। सुंदरकांड के पाठ से हनुमानजी के साथ ही श्रीराम की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है।किसी भी प्रकार की परेशानी हो,सुंदरकांड के पाठ से दूर हो जाती है। यह एक श्रेष्ठ और सबसे सरल उपाय है। इसी वजह से काफी लोग सुंदरकांड का पाठ नियमित रूप करते हैं।

सुंदरकांड को माना जाता है श्रेष्ठ 
====================
🏻हनुमानजी जो कि वानर थे, वे समुद्रको लांघकर लंका पहुंच गए और वहां सीता की खोज की। लंका को जलाया और सीता का संदेश लेकर श्रीराम के पास लौट आए। यह एक भक्त की जीत का कांड है, जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकता है। सुंदरकांड में जीवन की सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र भी दिए गए हैं। इसलिए पूरी रामायण में सुंदरकांड को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता है। इसी वजह से सुंदरकांड का पाठ विशेष रूप से किया जाता है।
जय श्री राम