Thursday, 14 June 2012

जो गर्मी से परेशां हों कर हर घाट पे तर हों जाये,
उसे मुमकिन ही कहाँ अमृत की बूँद नजर हों जाए .--विजयलक्ष्मी


ये जो अहसास है तुम न समझोगे अदब सीखा नहीं शायद ,
चातक को स्वाति के सिवा कुछ और कब भाया, याद नहीं शायद .--विजयलक्ष्मी 



ये किसने कहा तुमको हाथ पकड़ने की खातिर मेरा ..
दिल में पाक मुहब्बत हों तो याद कर वर्ना जलने दे मुझे तन्हा ..--विजयलक्ष्मी 



जज्बात सुनहरी है मगर खुद्दारी भी साथ चलती है ,
जिंदगी साथ सोने से नहीं, साथ चलने ही गुजरती है...--विजयलक्ष्मी 




हंसी आती है अब तो कयामत के दिन की बात याद करके हमको ,
खुदा से पूछेंगे की हंसने का हुनर बेख्याली भी अता किया होता हमको --विजयलक्ष्मी   

                            





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