Wednesday 30 May 2018

जिन्दगी क्यूँकर सवाल है ,,

जिन्दगी क्यूँकर सवाल है ,,
क्यूँ तुम बिन लगे बेहाल है ||


अंखियों में तुम हो सांवरे 
तुम बिन अश्क का उबाल है||


चाँद बिन अँधेरी रात हुई 
हाँ ,ये मौसम ही नागंवार है||


ये तन्हाई लम्बी रातो से
खुशियों का पड़ा अकाल है ||


गुनाहगारी लिख दो नाम
हम यहीं तो हमख्याल है ||


ए जिन्दगी तुम भी खूब हो
क्या मुस्कान इक मलाल है || 


सदके में तेरे सबकुछ दिया
हुई अब जीस्त भी निहाल है ||


जख्म मेरे क्यूँ रख दू गिरवी
दर्द करता रफू भी कमाल है ||


सूरज चंदा अजब साथ बिन 
फूलों का खिलना मुहाल है ||
---------- विजयलक्ष्मी

Wednesday 23 May 2018

क्यूँ समस्या बनी रहे और आंच जलती रहे ?

क्यूँ समस्या बनी रहे और आंच जलती रहे
राजनीतिक रोटियां अच्छी सिकती रहे ?
इस राजनैतिक रोटियों के जमावड़े में कहो
वतन की जमी टुकडो में क्यूँकर बंटती रहे ||

सिसको ...सिसकना पड़े चाहे जिसको ..
ये धरती किसी स्वार्थी की बपौती नहीं है
देश के लिए करे और स्वावलम्बी बने ,,
खैरात मिले क्यूँकर मंजूर पनौती नहीं है ||

स्वच्छता का भी मजाक बना रखा है
जानबूझकर बिमारियों को गले रखा है
जो देश चलाने की ख्वाहिश पाले हैं
झूठ लोकतंत्र के लिए फैला रखा है ||

टुकड़े टुकड़े गैंग को धिक्कार धिक्कार
देशद्रोह रच रहें जो धिक्कार धिक्कार
सत्ता सुख के लिए जनता से ही धोखा
ऐसे शपथ लेने वालों को धिक्कार धिक्कार ||

दर्द जनता का होता गर घोटाले न करते
न पनपता आतंकवाद शुरुआत पर मरते
होतो ईमानदारी तो हम विश्व में न पिछड़ते
अमीर हुए वही जो मिले गरीबी पर लड़ते ||

माना लड़ने सरहद तक नहीं जा सकते हो ,,
स्वच्छता अभियान से राष्ट्र बचा सकते हो
समाज को बांटने वाले वही तो सत्ता चाहते हैं
मरे कोई यहाँ कौन इंसानियत जिन्दा चाहते हैं ||

मस्जिद की अजान से देशद्रोह क्यूँकर कहो
क्यूँकर पॉप को राजनीती से मतलब कहो
राम लगते सबको काल्पनिक क्यूँ है बताओ
प्रश्न चिह्न क्यूँ पैगम्बर और मसीह पर न हो ||
------ विजयलक्ष्मी