Monday, 11 June 2012

सृजन को रोकना शायद किसी के बस में नहीं.....

सृजन को रोकना शायद किसी के बस में नहीं ..
बस हमारे मन की अभिप्शायें हमको घेरती है ..
खुले मन मस्तिष्क से इंसानियत को नाप लो 
जिंदगी आसान है ,...अपनी दुनिया माप लो ..
है कहाँ तक कदमों का घेरा ये मालूम होना चाहिए 
कोई सृजन अमर्यादित हों, नहीं होना चाहिए..
कुछ सिले है रास्ते के, रोकते है इंसान को 
जिंदगी के मुकाम से अपने ...उचाईयों से लौटना ..
हर किसी के बस में नहीं ...
शीश चढ़ते है फलक पर.. पैरों को जमीं ही चाहिए
कायदे भी हम ही है ,कानून भी हमने बनाये ...
बस रोकना खुद ही को है.....
कोई किसी को क्या अब समझाये .. 
राह आसान हों सफर में ...खुद को हम ही बांधते ...
कोशिशें करते सदा न तोड़ पाए बेडियां...!
खौफ भी तो मन का है, कौन किसको कुछ कह रहा है ..
जिंदगी का फलसफा तो जिंदगी को न्योता दे रहा ...
कौन राह संग की वो भी अनेक हैं ... जमाना देखता है बस...
साथी की राह एक है 
चल पड़े है तीर से नदिया के दोनों तरफ......
समेटने को दर्द ए दुनिया . ....सफर तो जरूरी है 
 
जो चले ना तो उसका खुदा जाने ..-विजयलक्ष्मी

                         
  
 

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