कश्ती तो सदा रहती ही मझदार है ..
किसी और किनारे की उसको भी कहाँ दरकार है .-विजयलक्ष्मी
चंद लम्हे और रुकते तो अच्छा होता ,
जनाजे का वक्त मुकर्रर तुम्हारी रहनुमाई पे है , -विजयलक्ष्मी
लुटते हुए वक्त का लुत्फ़ अजब सा ही है ,
लुटी सी बयार आँधियों का कत्ल कर गयी ..-विजयलक्ष्मी
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