Wednesday, 27 June 2012


कश्ती तो सदा रहती ही मझदार है ..
किसी और किनारे की उसको भी कहाँ दरकार है .-विजयलक्ष्मी

चंद लम्हे और रुकते तो अच्छा होता ,
जनाजे का वक्त मुकर्रर तुम्हारी रहनुमाई पे है , -विजयलक्ष्मी

लुटते हुए वक्त का लुत्फ़ अजब सा ही है ,
लुटी सी बयार आँधियों का कत्ल कर गयी ..-विजयलक्ष्मी

फकीरी का रंग उसकी भाया है इस कदर ,
हमने भी रियासतों की बादशाहत छोड़ दी.-विजयलक्ष्मी

अब हलाल होंने की तैयारी हों चुकी ,
नहा धोकर नमाज तक अता कर चुके हैं हम .-विजयलक्ष्मी

वक्त के साथ बदलता दिखाई दिया सब,
बदला तो कुछ भी सब वक्त का ही फेर था .-विजयलक्ष्मी


गोया कोई जादूगरी आँखों में थी उसकी ..
हमने कभी हाथ तक दिखाया नहीं किसी को .-विजयलक्ष्मी

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