Wednesday 27 January 2016

" वोट की रोटी तो सिकेंगी ही स्वार्थी भूख जबर्दस्त है"

" सत्य को सत्य लिखिए...कलम को न तोडिये ,,
शब्दों की भावना को भी यथार्थ से तो जोडिये "
------- विजयलक्ष्मी


" ये सियासत ए इश्क बड़ा बेमिसाल औ बदबख्त है
वोट की रोटी तो सिकेंगी ही स्वार्थी भूख जबर्दस्त है " ---- विजयलक्ष्मी



" मुझे भी जीने का हक है या नहीं ,,
मेरे घर में ही मैं हुआ पराया ..
तिलक माथे मैंने क्या धारा ...मिशनरी स्कूल बोला बाहर निकलो,,
मेरी कलाई पर राखी किसी दरुम ए उलूम को नहीं भायी
मेरे देश के तिरंगे को लहराने को भी न्यायालय को हुकुम देना पड़ता है,,
फिर भी हुकुम-उदूली क्यूँ करता है,,
इक अखलाख मरा तो आंसूं की बाढ़ समन्दर ले आई
मालदा में गिरा लहू क्या हिन्दुस्तानी नहीं था
आसाम में किसने लूटी इज्जत किसने कत्ल किये थे और जलाये घर
एक सैनिक को मारा टक्कर से कोई न हुई गिरफ्तारी ..
पुजारी के हाथ कटे ,,मैं मेरे घर में बाहर का बन्दा हुआ ,,
बिका हुआ मिडिया मेरे मामले में निपट अँधा हुआ ,,
जुलुस निकले त्रिपाठी के विरोध में..मरेकितने मासूम ?कोई फूटी आँख बोला
दर्द मेरे वतन का बताओ किसने खिलाफत में मुह खोला
एक कहानी हो तो विश्वास करूं ...वरना बतलाओ झूठी नफरत भरी बातों को कहाँ दफन करूं
सब वोट का धंधा भैया......और दौलत की लात,,
धर्म मेरा सच्चा और करता मानवता की बात ,,
मेरी वेदना मेरे घर में परायापन देने लगे हैं लोग..
कुछ जयचंदों की करनी चढा गयी हमे दुविधा की भेंट ..
तुम देश के सच्चे सपूत ...वंदेमातरम् बोलो ..
चूमो धरती के मस्तक को ,,वतन की जय बोलो ,,
आतंकी को करो खबरदार.....करो निकाल बाहर ,,
उनसे रिश्ते तोड़ो .....खुद को सद्भावना से जोड़ो
शब्दों से नहीं ह्रदय में बहते लहू में वतन को उतार लो
दुश्मन जो देखे आँख उठाकर उसे अंतिम घाट उतार दो,,
आवाज करो बुलंद ..तिरंगा प्यारा है,,
जय भारत ,,माँ भारती का हर सपूत हमको प्यारा है" --------- विजयलक्ष्मी


" दर्द ए नूर भी वही अपना इश्क ए हुजुर भी वही ,,
शक्ल है कि इबादतगाह, बज्म ए गुरुर भी वही "---- विजयलक्ष्मी

Saturday 23 January 2016

" नेताजी सुभाषचंद्र बोस "


" जयहिंद "!!

बहुत बार सुना हमने
" दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल "
लेकिन 

" शहीद हुए भारत माँ के सपूत कई हजार
जब चल रही गोलियां औ तोप बेमिसाल !!
बैठा था कहाँ बोलो साबरमती का लाल !!
किसने सुनाए किस्से किसने गिनाए लाल
शहीद हुए भारत माँ के सपूत कई हजार !!"
-- विजयलक्ष्मी

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा ' ---- सुभाषचंद्र बोस ( नेताजी )

आजादी का मतवाला
आजादी का रखवाला 
अपनी जान लुटा बैठा
मुहब्बत वतन से करने वाला
तिरंगे की आन पर कुर्बान तहरीरें ,
वतन की शान पर कुर्बान तकदीरें ,
होने दो होती है अगर लहुलुहान ...
वतन की खातिर मेरे ,मेरी ही तस्वीरें
 ".- विजयलक्ष्मी



लन्दन के फुटपाथ पर दो भारतीय रुके और जूते पोलिश करने वाले से एक व्यक्ति ने जूते पोलिश करने को कहा। जूते पोलिश हो गये.. पैसे चुका दिए और वो दोनों अगले जूते पोलिश करने वाले के पास पहुँच गये।
वहां पहुँच कर भी उन्होंने वही किया। जो व्यक्ति अभी जूते पोलिश करवाके आया था, उसने फिर जूते पोलिश करवाए और पैसे चूका कर अगले जूते पोलिश करने वाले के पास चला गया।
जब उस व्यक्ति ने 7-8 बार पोलिश किये हुए जूतो को पोलिश करवाया तो उसके साथ के व्यक्ति के सब्र का बाँध टूट पड़ा। उसने पूछ ही लिया "भाई जब एक बार में तुम्हारे जूते पोलिश हो चुके तो बार-बार क्यों पोलिश करवा रहे हो"?
प्रथम व्यक्ति "ये अंग्रेज मेरे देश में राज़ कर रहे हैं, मुझे इन घमंडी अंग्रेजो से जूते साफ़ करवाने में बड़ा मज़ा आता है। वह व्यक्ति था सुभाष चन्द्र बोस। शायद कुछ लोगो को याद ना हो तो बता रहा हूं आज ही के दिन यानि 23 जनवरी 1897 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का उडीसा के कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार मेँ जन्म हुआ था |


आज उनका जन्मदिवस है।
जय हिंद










मैं लोगों पर नहीं उनके मनों पर राज्य करना चाहता हूँ। उनका हृदय सम्राट बनना चाहता हूँ।."-- सुभाषचंद्र बोस 

"नेता जी " कहते ही उभरता रहा एक नाम सुभाष का ...आज नेता कहो तो होती है ग्लानी चेहरे और करतूत देखकर ...छोडकर सबकुछ लुटा दिया देश की खातिर आज के नेता देश को लूटकर घर अपना घर भर रहे हैं !

देशप्रेम का स्वरूप बदल गया हुआ जीवन त्रास का ,
गिरता स्तर लगातार दिख रहा असर राजनैतिक ह्रास का 
अराजकता से बुझा रहे है दीप ये नेता नहीं दीखता दीप आस का 
"नेता जी "कहते ही उभरता रहा एक नाम सुभाष का "-- विजयलक्ष्मी 

जन्मदिवस पर विशेष ....
देशप्रेमियों की और से "नेता जी सुभाषचन्द बोस को कोटिश:नमन ,......जय हिन्द !!

वन्देमातरम !!



"  नेहरु ने इन्हें युद्ध अपराधी कहकर अपमानित किया हैं | "

Wednesday 20 January 2016

" मिडिया बना तवायफ पत्रकारिता हुई दलाल ,"

" निशाँ मिटाकर न सोचिये इश्क मर गया ,,
इर्तिकाब ए जुर्म है ये,, जिन्दा है आज भी ||

तुम पत्थर बनो या दरिया मिटना था एक दिन
सूखे कुए झांकिए निशाँ बकाया हैं आज भी ||


दर्द ए दरिया की बधाइयाँ, लोगो हमे भी दो ,,
पूजते हैं श्रीराम को, तम्बू में बैठा है आज भी ||

अमन औ शांति का पाठ यूँ पढ़ने पढ़ाने वालों
तुम्हे अन्न देता अन्नदाता भूखा है आज भी ||

करोड़ो की दौलत वाले गरीबी की उड़ाते मजाक
कम कोई नहीं पांचवां बच्चा जना है आज भी ||

मिडिया बना तवायफ पत्रकारिता हुई दलाल ,
कलम बेचीं बाजार में, नेता नकारा है आज भी ||" ------- विजयलक्ष्मी
( इर्तिकाब-ए-जुर्म =Committing of Crime)

उनके बम भी शायद कुछ शब्दों से हल्के हैं ,,
इसीलिए तो आजकल शब्दों के तहलके हैं ,,
बम बंदूक लगे खिलौना, लहू रंग रगौली 
इसलिए सेकुलर भी अपने वंश बदलते हैं,
अपने रिश्ते छूट मरे दौलत की खातिर मरते हैं
कोई पूछे वो क्या मात-पिता संग जन्मस्थान बदलते हैं ?
अफगानी बाबर की निशानी अपनी सी जिन्हें
जाने क्यूँ वो राम-लला के घर का चित्र देख दहलते हैं ,
देखा नहीं काश्मीर में ..कितना लहू बहा ?
मानवाधिकारी फिर भी उन्ही की चिंता में घुलते हैं
 --------- विजयलक्ष्मी

Saturday 16 January 2016

" कुंडलिया छंद " संग 33 कोटि देवी देवता |

कुण्डलिया छंद दोहा और रोला के संयोग से बना छंद है. इस छंद के 6 चरण होते हैं तथा प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है. इसे यूँ भी कह सकते हैं कि कुण्डलिया के पहले दो चरण दोहा तथा शेष चार चरण रोला से बने होते है. दोहा के प्रथम एवं तृतीय चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं. रोला के प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है. रोला में यति 11वी मात्रा तथा पदान्त पर होती है. कुण्डलिया छंद में दूसरे चरण का उत्तरार्ध तीसरे चरण का पूर्वार्ध होता है. कुण्डलिया छंद का प्रारंभ जिस शब्द या शब्द-समूह से होता है, छंद का अंत भी उसी शब्द या शब्द -समूह से होता है. रोला में 11 वी मात्रा लघु तथा उससे ठीक पहले गुरु होन आवश्यक है . कुण्डलिया छंद के रोला के अंत में दो गुरु, चार लघु, एक गुरु दो लघु अथवा दो लघु एक गुरु आना आवश्यक है.
शब्द या शब्द समूह
दण्ड के अंत में 21 है
दण्ड आख़री शब्द नहीं हो सकता
अंत में
22
या
112
या
211
या
1111
होना चाहिए ||


"ज्ञान कुपड्धों या अल्पज्ञानी विवेकहीन के विकृत हो जाता है ...दृष्टांत कब दुष्टान्त में बदल जाता है पता ही नहीं चलता ...हिन्दुओं के 33 कोटी देवी देवता हैँ , इसको मूर्खों /कुपड्धों ने प्रचारित किया कि हिन्दुओं में 33 करोड़ देवी -देवता हैं । यहाँ "कोटि" का अर्थ है "प्रकार"। देवभाषा संस्कृत में "कोटि" के दो अर्थ होते है, कोटि का मतलब "प्रकार" होता है और एक अर्थ "करोड़" भी होता। हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...वास्तव में हिन्दू धर्म में कुल 33 प्रकार के देवी देवता का ही वर्णन है जो इस तरह वर्गीकरण (प्रकार ) में हैं --
प्रथम 12 प्रकार हैँ --- आदित्य , धाता, मित, आर्यमा, शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष, सविता, तवास्था, और विष्णु...! 
द्वितीय 8 प्रकार हैं --- वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष ... और 
तृतीय 11 प्रकार है :- रुद्र: ,हर, बहुरुप, त्रयँबक, अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली। 
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार। 
इस तरह कुल 12+8+11+2=33 कोटि यानी प्रकार हुए ." 

Thursday 14 January 2016

" मकर संक्राति "



मकरसंक्राति ----- दिनांक 15 / 01/ 2016 |
यद्यपि भारतीय कलैंडर चंद्रमा की गति का द्योतक माना जाता है...किन्तु मकर संक्रांत सूर्य की गति पर आधारित है |
मकर एक राशि है और सूर्य की एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने की प्रक्रिया को संक्रांति कहते हैं. इस त्योहार के साथ ही सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और जिससे इसे यह नाम दिया गया है.
मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिए इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं,
आइये जाने मकर सक्रांति मनाई क्यों जाती है :
1. मकर सक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए आते है, मकर राशि का स्वामी शनि है और इस द‌िन सूर्य देव शन‌ि महाराज का भंडार भरते हैं।
2. ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल संभव नही, लेकिन इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए यह दिन पिता-पुत्र को संबंधो में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।
3. आज के दिन भगवान विष्णु ने मधु कैटभ से युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने मधु के कंधे पर मंदार पर्वत रखकर उसे दबा द‌िया था। तभी से भगवान व‌िष्‍णु मधुसूदन कहलाने लगे।
4. गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भागीरथ ने अपने साठ हजार पूर्वजों की आत्मा की शांत‌ि के ल‌िए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिेए मकर सक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
5. मां दुर्गा ने दानव महिषासुर का वध करने के लिए इसी दिन धरती पर कदम रखा था।
मकर संक्रांति पर रसोई में तिल और गुड़ के लड्डू बनाए जाने की परंपरा है. इसके पीछे बीती कड़वी बातों को भुलाकर मिठास भरी नई शुरुआत करने की मान्यता है.|
वैज्ञानिक आधार की बात करें तो मौसम परिवर्तन पर तिल के सेवन से शरीर गर्म रहता है और इसके तेल से शरीर को भरपूर नमी भी मिलती है.|
तमिलनाडु में इसे पोंगल, गुजरात में उत्तरायन, पंजाब में माघी, असम में बीहू, और उत्तर प्रदेश में खिचड़ी कहते हैं. देश में ही नहीं विदेशों में नेपाल, थाइलैंड, मयांमार, कंबोडिया, श्री लंका आदि जगहों पर भी इसे ऐसी श्रद्धा के साथ मनाते हैं.
ये त्यौहार वसंत का सूचक माना जाता है |


Tuesday 12 January 2016

" चाणक्य ( विश्व का सर्वोच्च शिक्षक)"

मुझे चिंता या भीख की आवश्यकता नहीं धनानंद, मैं शिक्षक हूँ



" मुझे चिंता या भीख की आवश्यकता नहीं धनानंद,
मैं शिक्षक हूँ,
यदि मेरी शिक्षा में सामर्थ्य है तो अपना पोषण करने वाले सम्राटों का निर्माण मैं स्वयं कर लूँगा ." 

-चाणक्य ( विश्व का सर्वोच्च शिक्षक)

Saturday 9 January 2016

असहिष्णुता vs शहादत

कैसे विकास हो उस देश का.........
जहां डेढ लाख सैलरी हर महीना पाने वाले सांसदो की सैलरी incometax free........
और 24 घंटे मौत की छांव मे रहने वाले सिपाही को बीस हजार सैलरी पर भी incometax देना पडता है....
सांसदो को परिवार के साथ रहते हुए भी हर साल पचास हजार phone call free..
घर से हजारो km. दूर बैठे सैनिक को एक call भी free नही...
एक सांसद को फर्नीचर के लिए 75000 हजार रु,
बार्डर पर सैनिक को ड्यूटी के दौरान बारिस से बचने के लिए टूटी हुई छप्पर...
सांसद को हर साल 34 हवाई टिकट मुफ्त,
सैनिक ड्यूटी जाते हुए भी अपने पैसे से टिकट लेता है........
सांसद को वाहन के लिए 400000rs का ब्याज free लोन
एक सैनिक को घर के लिए लोन भी 12% दर से मिलता है.......
🏿🏻और ये सब वहां हो रहा है जहां पूरा देश इस सैनिक की वजह से अपने परिवार के साथ चैन से सोता है
क्या यही है Digital India....
ऐसी स्थिती मे आप देश का विकास करने की सोच रहे है॥
और देश के सभी नागरिको को भी इस बारे मे सोचने की बहुत जरुरत है
पहाड़ में फंसी एक बेटी ने
अपनी मां से पूछा - मां रेडियो पे
सुना ईंडिया जीत गई,
जो खेल रहे थे उन्हे एक करोड़
रुपिया मिला !
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मां बोली – हाँ बेटी,
सरकार कहती है वो देश के लिए खेल रहे थे इसलिए !
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बेटी आसमान में हैलीकॉप्टर से लटकते
जवान को देख के बोली
- मां क्या इन्हे भी मिलेगा एक करोड़ ?
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मां बोली – ना बेटी ना,
हमारे यहां बल्ले से खेलने वाले को ईनाम
मिलता है, जान से खेलने वाले को नही !!
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शहीदों के सम्मान में ।
जय हिन्द — feeling thoughtful.

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टीचर- चलो अर्जुन खड़े हो जाओ, असहिष्णुता पर निबंध सुनाओ..
अर्जुन- टीचर जी असहिष्णुता 2 प्रकार की होती है...एक अच्छी असहिष्णुता और दूसरी बुरी असहिष्णुता...
टीचर- जरा विस्तार से सुनाओ
अर्जुन- टीचर जी अभी कुछ महीनों पहले उत्तरप्रदेश के दादरी में कुछ आतंकवादियों की भीड़ ने आक्रोश में आकर एक मासूम निर्दोष शांतिप्रिय अख़लाक़ को मौत के घाट उतार दिया...ये है बुरी असहिष्णुता....क्योंकि इसका देश भर में विरोध हुआ...बहुत से बड़े बड़े साहित्यकारों ने विरोधस्वरूप अपने अवार्ड वापस कर दिए...कुछ ने तो अवार्ड के साथ मिले पैसे भी वापस किये...सभी सेक्युलर नेताओं ने भी उसका खूब विरोध किया....विरोध स्वरूप संसद का एक पूरा सत्र नही चलने दिया...सभी न्यूज़ चैनल्स ने अपने प्राइम टाइम पर इसे खूब चलाया... खूब डिबेट्स की...मैडम ये बहुत बुरी असहिष्णुता थी...इसने मेरे फेवरेट शाहरुख और आमिर तक को डरा दिया था...इसकी वजह से वो लोग देश छोड़ने तक की बात करने लगे थे...
और मैडम अभी दो दिन पहले पश्चिम बंगाल के मालदा में एक आतंकवादी का विरोध कर रहे कुछ् शांतिप्रिय लोगों की भीड़ ने आसपास की सभी जगहों में मारपीट की...राह चलते लोगों को लूट लिया...दुकानों और मकानों को आग लगा दी..पुलिस पर पथराव किया...दौड़ा दौड़ाकर मारा...उनकी गाड़ियाँ जला दी...पर किसी नेता या पत्रकार ने इसकी सुध नही ली... किसी क्रांतिकारी न्यूज़ चैनल ने इसपर कोई डिबेट नही करवाई...किसी साहित्यकार ने अपना बहुमूल्य अवार्ड वापस नही किया...देश की संसद में भी इसपर कोई बवाल नही हुआ...किसी बॉलीवुड स्टार को इससे देश में कोई दिक्कत नही हुई...उनके बच्चों को भी बाहर निकलने में कोई डर नही लगा...इससे साबित होता है कि ये अच्छी असहिष्णुता है...इसने किसी को तंग नही किया...

टीचर- शाबाश अर्जुन बैठ जाओ..!!

" जिंदगी की महाभारत का हश्र बकाया है "

" मेरे सत्य और तुम्हारे सत्य में कितना अंतर है
अंतर ही होता कोई बात न थी 
यहाँ तो जिंदगी मौत का फासला है
मैं , मैं कहाँ हूँ
मैं, दम्भ ...झूठ में छिपा सत्य का मुलम्मा हूँ
सत्य की धार को कुंद करता शिफारिश का पुलिंदा हूँ
विश्वास नहीं होता गर
देखो डॉक्टरी जाँच में
देखो भटके इतिहासकारों की किताब में
देखो महाजनी काज में
देखो किसान के सूखे खेत में
देखो बहती नदी तट की रेत में
देखो मास्टरी मायाजाल में
देखो नेताओं की चाल में
देखो रिश्वतखोरी के माल में
देखो बिक्रीत कलम में
देखो बहकते सम्भलते कदम में
और सत्य मर रहा है
घुट रहा है
कराह रहा है
जिंदगी की महाभारत का हश्र बकाया है "
-
---------- विजयलक्ष्मी

" तिरंगा भरकर कलम में सारे जहाँ में फहरा दो"

" वही कलम झूठ की पाबन्द होती जो बिक चुकी होती है,,
कठपुतली किसी दौलतमंद के हाथो बन चुकी होती है,,
इतिहास को उजागर करती है शहंशाहों की गुलाम होकर
राणा प्रताप को त्याग बताती है अकबर क्यूँ महान था..
क्यूंकि मीना बाजार लगाता था ...या ख़ूबसूरती को नजर ....

जोधा से विवाह ये कैसा प्रेम था सियासी जजिया कर लगता था

राणा की आजादी जिसे रास नहीं आई ...
राणा वही राणा देशप्रेम में घास की रोटी तलक खायी..
एश औ आराम क्या कम थे ... जिन पूर्वजो ने धर्म न बदला..
उनपर सितम क्या कम थे ...जिन्हें वतन रहा प्यारा उन्हें आजादी की चाह,,
मणि शंकर अय्यर को देख लो दौलत औ सत्ता की राह ,
एक गोधरा को गाते है सभी ...
कितने मारे थे साबरमती के डिब्बे की आग में बताओ क्या बताते है कभी
इक अखलाख का रोना रोया खूबजमकर ,,
क्या हुआ काश्मीर ..मालदा औ पूर्णिया में मिडिया उस समय सोया जमकर
क्या जरूरत है भला एसी कलम की ,,,
खोले बैठी है मण्डी शहीदों के कफन की
रोना है गर हर बच्चे की भूख पर रोते
बांटते न धर्म की बिना पर ,,, आतंकवाद पर चुप नहीं होते
जयहिंद जयहिंद के नारे से गगन गूंजा दो
तिरंगा भरकर कलम में सारे जहाँ में फहरा दो"
------ विजयलक्ष्मी



" झूठ उगलते चौथे स्तम्भ की बात
दोगले हुए स्वार्थी औलाद की बात
मालदा में करें या पूर्णिया की बात
ईमान को मापे या असहिष्णु सौगात
बदलते पहलू की या प्यार जो बरबाद

मरती इंसानियत औ जहरीली बात
माँ को डायन कह खंजर घोंपती बात
आतंकी जनाजे के पीछे इंसाफ की बात
जहाँ दूष्मन के घर बैठ होती सत्ता की बात
वंदेमातरम जहाँ फतवों में दब गया
करो तुम भी उसी लकीर के फकीर की बात
या जिंदगी जिंदा होती है जहाँ मरकर
शहादत पर कसम उठती है जान देने की
आन पर मान पर प्राण देने की बात
कर सको गर करो हिंदुस्तान की बात "
--- विजयलक्ष्मी

" सरहद पर खड़े हर जवान को नमन है ,,"

हम चैन से सोते हैं तभीतक ..
जबतक सरहद पर खड़ा है इक इक सिपाही निगेहबानी करता है,,
जबतक लड़ता है बर्फीली हवाओ से सियाचिन की पहाड़ियों में ,,
जबतक खड़ा सहरा की तपती धूप आग उगलते सूरज के सामने
जबतक भीगता है बेमौसम बारिशों में होकर तरबतर
जबतक उठती है उसके मन में ज्वाल वतन की तुफाँ बनकर
जबतक सीने पर गोली खाने की आरजू डराती नहीं उसको
जबतक माँ की ममता सरहद तक पीछा करती है
जबतक सिंदूर सुहागन के हाथों में नहीं कंपकंपाता
जबतक बहना के हाथों की राखी से विश्वास नहीं मिट जाता
जबतक नन्हे बच्चे सेना की कसम उठाते हैं ..
जबतक पिता के सीने सेना का नाम से नहीं डर जाते
जबतक कुछ कर गुजरने चाहत में है
जबतक वतन पर मरमिटने की कुव्वत जेहन में है
जबतक शहीदों के किस्से बहते हैं लहू में
जबतक जिन्दगी को खिलौना बनाकर समर्पण की तमन्ना दिल में है
जबतक वेतन पर नहीं मुहब्बत ए वतन दिल पर तारी है
जबतक तिरंगे की शान जिन्दगी से ज्यादा प्यारी है
जबतक वतन की माटी सिंदूर पर भारी है
जबतक अहसास जिन्दा हैं ...
कभी कहकर देखो किसी नेता बने किस्मत के हेटे को
कोई तो भेजकर देखे कभी अपने भी बेटे को
कैसे धडकता है दिल पठानकोठ को सुनकर
कैसे फडकता है लहू कारगिल की चोट को धुनकर
सरहद पर खड़े हर जवान को नमन है ,,
उन्ही की बदौलत वतन वतन है और जिन्दा हम हैं
जयहिंद जयहिंद की सेना ||"
---- विजयलक्ष्मी


Friday 1 January 2016

" नव कलैंडर वर्ष की शुभकामना |"





आप सबने कलैंडर बदल लिया होगा अपनी दीवार पर ...मुझे अभी बदलना बाकी है ....क्या करूं .... तारीख के साथ तिथियाँ भी चाहिए न.... और वो अभी तक नहीं लिया .. उलटे कुछ सवाल उठते गिरते रहे भीतर.......... कुछ औरों की वाल पर भी मिले..... सोचा आपसे भी शेयर करने चाहिए ..... सोचकर देखिये आप भी ...सम्भव है हम गलत सोच बैठे हो ..... पर दिमाग तो अपना कम करता ही रहता है न....

अब जरा पढिऐ HAPPY NEW YEAR हमारे साथ फिर दुबारा ( वास्तविक) मना लेना |
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1. ना तो जनवरी साल का पहला मास है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन |

2. जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए है इस बात पर भी गौर करें..


3 . सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ, 8वाँ, नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है | ये क्रम से 9वाँ,10वाँ,11वां और बारहवाँ महीना है ..


अब जरा संस्कृत की गिनती याद कीजिये .. सात को सप्त, आठ को अष्ट कहा जाता है, इसे अग्रेज़ी में sept (सेप्ट) तथा oct (ओक्ट) कहा जाता है ...इसी से september तथा October बना ..नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के "नव" को ले लिया गया है तथा दस अंग्रेज़ी में "Dec" बन जाता है जिससे December बन गया .. इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था।
सोचिये .... 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है????
अब गौर कीजिये .... "X" रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना .. दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया ..
अगर इन्ही बातों को ऐसे माने तो ----
कि अंग्रेज़ हमारे पंचांग के अनुसार ही चलते थे या तो उनका 12 के बजाय 10 महीना ही हुआ करता था ..साल को 365 के बजाय 305 दिन का रखना तो बहुत बड़ी मूर्खता है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि प्राचीन काल में अंग्रेज़ भारतीयों के प्रभाव में थे इस कारण सब कुछ भारतीयों जैसा ही करते थे और इंगलैण्ड ही क्या पूरा विश्व ही भारतीयों के प्रभाव में था जिसका प्रमाण ये है कि नया साल भले ही वो 1 जनवरी को माना लें पर उनका नया बही-खाता 1 अप्रैल से शुरू होता है ..
लगभग पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानि मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू..
भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या ये इस बात का प्रमाण नहीं है कि पूरे विश्व को भारतीयों ने अपने अधीन रखा था।


इसका अन्य प्रमाण देखिए-अंग्रेज़ अपना तारीख या दिन 12 बजे रात से बदल देते है ..
दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है ??
भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है, सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कही जाती है और हमारे यहाँ से नए दिन की शुरुआत होती है..


अर्थात करीब 5-5.30 के आस-पास और इंग्लैंड में समय 12 बजे के आस-पास का होता है। चूंकि वो भारत का प्रभाव था अत: अपना दिन भी भारतीयों से मिलाकर रखना चाहते थे ..इसलिए उन लोगों ने रात के 12 बजे से ही दिन नया दिन और तारीख बदलने का नियम अपना लिया ..
हम क्या कर रहे हैं ....अनुसरणकर्ता का अनुसरण मतलब दास का ही हम दास बनने को बेताब हैं..
कुछ तो लोचा है कहीं न कहीं पर ...हमारा ज्ञान हमारे पोथी पत्रे ...सब उच्च कोटि के हैं |
खुद को पहचानों

🎉हम,,,"" भारत गुरु है .......और अन्य जन गुरु का अनुसरण करते हैं और करना भी चाहिए ...अपने नववर्ष का गौरव बढाइये .... आपका अपना भी गौरव बढ़ेगा | ""

" कलैंडर बदल रहा है ... 
कोरा सा सुंदर साफसुथरा ,,
खोलकर टांग दिया ,,
सूरज के साथ शुरू होगी कलम की रोशनाई ,,

मन की रौशनी में पढना ..

हर निशाँ जिन्दगी के कदमों का पता देता है ,,
कुछ चुपचाप से...कुछ चीख चीखकर सुनाते हैं ,,
कुछ कान बहरे हो चुके ,,
कुछ बहरे होने की तरफ उन्मुख है,,
जागो..नहीं तो पीढ़ियाँ खो जायेगीं ..जिंदगियां सो जाएगी ,,
और नया दिन नया बरस कैसे देखोगे बदलते हुए
और तुम्हे भी बधाई मन की गहराइयों से
आसमा के उस छोर पर टंगी है
चाँद के दामन में बिखरी चांदनी की आँखों की चमक में
बढकर थाम लो हर ख़ुशी"

 ---- विजयलक्ष्मी

" वो लम्हे हसीं थे जब साथ था ,,
वो लम्हे खूबसूरत रहेंगे जब जब साथ होगा ,,
वो लम्हे और भी लाजवाब होंगे जब हरसू अहसास होगा ..
और मोमबत्ती बन जला करूं ..

हर लम्हा हर पल ,,

रौशनी की जद्दोजहद में ,,
अँधेरा शाश्वत भी हो तो क्या ..
अभी हार नहीं मानी
नित्य रार नई ठानी
समझा इतनी ही है जिंदगानी"

 ---- विजयलक्ष्मी


"नये साल के दामन में ख़ुशी लिपटी मिले ,,
और आँख में चमकते सितारों से सपने ..
खिलखिलाकर मिले गले हरइक लम्हा ..
बस यही आरजू थी यही आरजू रहेगी ,,
नववर्ष मंगलमय हो ,",
--------- विजयलक्ष्मी





" कलैंडर टंगा है अभी भी उसी दीवार पर ,,
टंगा था एक बरस पहले जहां ..
याद दिलाता था भुलिबिसरी सी दास्ताँ
उसपर लगे स्याही के निशान बताते थे हमे
कुछ छुट्टियां दिखती बन बच्चो की ख़ुशी
प्रेस के कपड़ो का हिसाब ,,दूध की गिनती ..
अखबार की अनुपस्थिति कुछ जन्मदिन कुछ सालगिरह
जीवन पूरे कर चुके दादा जी की तिथियाँ
बीमार दादी की दवाई लाने की तारीख
चाचा चाची की शादी का दिन ,,
मुन्नी के स्कूल की छुट्टियां
पप्पू के आने में बचे दिन
बेटी के ब्याह के महीने ..
बुआ को राखी भेजने की याद कराने की तारीख
गैया के बियाने की सम्भावित तारीख़
नानी के घर जाने का हिसाब
नवरात्र शिवरात्रि दर्शाती होली और दीवाली
कभी गुरु गोविन्दसिंह की याद ,,
कभी ईद की छुट्टी का निशान ,,कभी गुरुग्रंथ साहिब की अकीदत
पडोस में होने वाली रामायण और सुखमणी जी का पाठ ..
कुछ आवश्यक फोननम्बर थामे टंगा रहा मुस्तैद
जाने अनजाने देखते पढते मिलने के पल
जुड़ गयी थी जैसे जिन्दगी हर पल
इसे भी बदलना होगा बदलती तारीख के साथ ,,
गुजरते साल से कलैंडर की तरह ही गुजरना है हमे भी
दादा मामा की तरह लिखी जाएगी मेरी भी तारीख
किसी को सुख देगी किसी को आंसू ..,,छोड़ जाएगी कुछ अहसास
साल दर साल बदलते कलैंडर पर ..
कुछ खो जाएँगी कुछ स्मृति चिन्ह सी चलती चलेंगी
साल का आखिरी दिन ..
और ..बदल जायेगा ये कलैंडर भी दीवार से
उसी कील पर नया कलैंडर ,,जैसे बदल रहा है वस्त्र समय भी
यादों के झरोखों से झाँकने को मजबूर करते लम्हे
गुजर रहे हैं एक एक कर आँखों की गली से होकर || "
------- विजयलक्ष्मी