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.........चरित्र .......
कुछ बोलते चरित्र है कुछ चीखते चरित्र है ,
कुछ भ्रष्ट है ..तो कुछ नष्ट.. चरित्र है,
कुछ चरित्र खेलते है कुछ दिखाते है ,
बहुत कम लोग है जो सच में ही चरित्र निभाते हैं .
कुछ को काम ही गिराना है चरित्र को ..
कुछ है ढकोसला सा ले के चले चरित्र है ..
कुछ दिखावटी ,कुछ बनावटी, कुछ सजावटी चरित्र है ..
सोचा है मैंने भी क्यूँ एक दुकान खोल दूँ ...
माना सोने सा खरा सा नहीं , मगर माटी सा सच्चा चरित्र है ..
किसको कहूँ किसी का तो बिलकुल ही कच्चा चरित्र है..
गाता है वही गीत जगत में मेरा सच्चा चरित्र है ,मेरा सच्चा चरित्र है .-विजयलक्ष्मी
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