सम्मानित जाहिलों की दुनिया में कोई कमी नहीं ..
आज के दौर में हरिश्चन्द्र भी नहीं है ..
जिसने खुद को बेचा था सत्य के लिए
बिकती है बेटियां अब रोटियों के लिए ..
ईमान गिर गया बदहवास जिंदगी
इज्जत के नाम पे इज्जत ही बेच दी ..
वाह क्या प्यार है ...खाना खराब है ..
कभी सीता, सावित्री और अब कलयुग में नारी..
रुपयों के चंद सिक्के ,कुलघातीनी कुलक्षिणी .....
अबला या आबला ..गरीबी तिरोहिता कला निपुणा ..
लाचार वल्लरी रोटीदायिनी ..मुक्तिबोधनी..
कलयुगी कालचक्र विनाशिनी..हे नारी अब बिकने को तैयार रहों..विजयलक्ष्मी
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