बहुत अनजान थे रिश्तों से ..
लहू सुखाकर भेजता रहा रहा मुझको ..
सुनाता रहा रिस्ते हुए नाले दिल के ..
भावनाओं को चढाया आसमानों पर काटने का नया ढंग ..
निराला सा सफर दिखाया गया ..
हम तो तन्हा चल ही रहे थे ..
आवाज देकर बुलाया गया ...ख्वाब बुने ..उन्वान बने
इहलाम मुझको दिखाया गया ...
कहा था हमने रूह है ..पाक दामन ही रहने दो तुम हमारा ..
पिंजर भेजा मुर्दाघर से , झकझोर मन को रुलाया ..
सताया गया फिर मनाया गया ...
सुहागन फिर से बनाया गया ...
जागे रातों जो हम न मिले तो ..
दिल्लगी बनाया दिल की लगी को मेरी ..
मौत का परचम लहराया गया ...
आज भावनाओं के बवंडर ने यकायक जन्म लिया और..
मेरी आँख का पानी सुखा बताया गया ...
हाँ ,
डाला कुचला है मुझको ...खुद ही ताबूत में लिटाया गया ..
फूलों की लडियाँ भी भेजी तो काँधे भी न दिए अपने ..
मुझे बेगैरत बताया गया ...
शहंशाहों की रवायत होती है मन भर जाये.. दफन कर दो ..
वही एक हुनर काम लाया गया ..
मौत को तमाशा बना डाला अब तो ..
इल्जाम खला में ढूँढना मुनासिब नहीं था मेरा ..
आजादी के नाम पर बेरंग जिंदगी इनाम पायी ..
श्वेत बाना सुर्ख रंग को पहनाया है जामा ..
दुश्मन होता तो तलवार उठती कटार छाती के पार करती ..
हमे मारा है उस अपने ने जिसने प्रणय गीत गया था संग ..
गुलशन से रंगों को चुराया गया ..चटक रंग को स्याह बनाया गया ..
मुफलिसी को अपनी छिपाने की खातिर इल्जाम मुझ पर लगाया गया ..
द्रोण को अंगूठा नहीं दिया.... बल्कि अंगूठा काट लाया गया ..
वाह रे जमाने !सत्ता के लिए ही बस मुझे नींद मौत की सुलाया गया .विजयलक्ष्मी
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