Wednesday 20 December 2017

सर्द रात है मैं छत पर ....


सर्द रात है मैं छत पर .
गुफ्तगू सितारों से अपनी 
वो नीले रंग की चमकती रात पर 
साया धुंध का देखा 
लिए कुछ सुरमई अखियाँ 

चमक थी खोई सी जैसे
झांकता वो एक चेहरा
बड़ा अपना सा था
लगा एगबारगी सपना सा था
कुछ उदासी जैसे छाई थी
वो धुंध शायद दिल पर उतर आई थी
कही से प्यार का जुगनू दिखा टिमटिमाता सा
लगा फिर देखकर जान में जान आई थी
शब्द खामोश हो गये
नमी पत्तो पर उभर आई
भीगी कोर पलको की
अजब सी आज तन्हाई थी
उभर कर इक सितारा गिरा टूटकर ऐसे
नमी कोरो की भारी लग रही जैसे
दुआ में मांगते भी क्या
कुछ यादें ,, यादों में चहकता अहसास मांग डाला
जफा का रंग भी बसंती करार मांग डाला
बंद आँखों से दुआ इक और कर डाली
न टूटे कोई सितारा फिर ,,
न कोई दुआ रहे बाकी
हर दुआ के लिए कितने सितारे टूटेंगे भला बाकी
चमक फिर फीकी न रहे मुस्कान मांग डाली थी
बीत गयी रात सारी यूँ भोर थी होने वाली
विदाई मांग न पाए ,,
जुदा हम कर न सके
गुजरी रात यूँ दिल पर ,,
रात भर भी उतर न सके
अब उसी मुस्कान को लिए फिरते हैं
दर्द की बस्ती में भी मुस्कुराकर ही गुजरते हैं || 

---------- विजयलक्ष्मी

Monday 18 December 2017

ये कलयुग है ,,

ये कलयुग है ,,द्वापर नहीं ..
कृष्ण बनने की चाहत लिए सभी हैं 
राधा भी चाहिए ..लेकिन ..
उसका नेह नहीं उसकी देह लगे प्यारी 
अवसर चाहिए ..
राह कोई भी हो ..चाह यही है
हाँ ...यह कलयुग ही है ..
यहाँ राधा तस्वीर में पुजती है
मन्दिर में पुजती है
ईमान में नहीं पुजती
पुज भी नहीं सकती
कहा न ...ये कलयुग है
यह नेह रस नहीं देह रस के आकांक्षी हैं धरा पर
इल्जाम हैं हर ईमान पर
यहाँ राधा हो ही नहीं सकती
हो भी जाये तो जी नहीं सकती
क्यूंकि ...वह तो व्यभिचारिणी हैं
कलंकिनी ...अशुचिता औरत है
कृष्ण बनने की ललक तो है ..लेकिन
न राधा का चरित्र पाच्य है
न कृष्ण का सुंदर मन .
चलो बहुत हुआ ,,
यहाँ बंधन और तलाक होते हैं
बाजार में सब हलाक होते हैं
दोस्त और दोस्ती के रंग चाक होते हैं
समझ नहीं आई न अभी ----
ये कलयुग है जनाब "
यहाँ रावण और कंस मिलेंगे हर देह में
जीवन अपभ्रंश मिलेंगे नेह में
न्यायालय हैं... वकील हैं
कागजी दलील हैं
कुछ लिखी हुई तहरीर हैं
मकान हैं लिबास हैं ..
बस गुनाह नेह का अहसास है
कहा न ...
ये कलयुग है
मीरा की खातिर नाग है
मोमबत्ती का राग है
स्त्री होना अभिशाप है .
अत्याचार बलात्कार हाहाकार सबकुछ है यहाँ
हर चौराहे पर खड़ा बाजार है यहाँ
हर कोई खरीददार हैं यहाँ
बिको या न बिको
कीमत लगती है बाजार में
सबको इंतजार है यहाँ
बोला न सबको ...
ये कलयुग है जी
त्रेता युग की बात मत करना
व्यर्थ लगेगा सीता का हरना
कैसे राम ले गए वापस
वो भी अनछुई
जहां नजर भेदती हो देह
कैसे जन्मे वैदेही कोई विदेह
सोचना मना है,,,
कहा न कलयुग है ये
---- विजयलक्ष्मी