न संक्रमण न अतिक्रमण ..
कैसी वेदना कौन चेतना ..
इबादत है बाकी कुछ नहीं
आत्मसात करना खुद में ..
खौफ ए जुदाई मौत में भी नहीं ..
घर खाला का सा ही लगे है हमे
मुहब्बत तो बस यही है ..
बाकी सब सोच ..दुनियावी ...
प्यार याचक भी है पुजारी भी ..
देवता भी भिखारी भी है ..
कैद है रिहाई भी ,इम्तेहां और सुनवाई भी है ..
उपासना भी है अहसास भी है ..
साँस भी प्यास भी है ..
जिंदगी और मौत भी है....
चलो जिस राह मंजिल भी है सफर भी है ..
वजूद भी है बिखराव भी है ..
जिंदगी की शब् औ सहर है ...
सृजन और कहर भी है ..
ये सोच है समझ अपनी अपनी मानता है किस रूप को
पूजता है किस स्वरुप को ..
इंसानियत आती है हैवानियत सीखता है ..
या बस आँखों का छलावा सा दीखता है ...
साँस भी है प्यास भी ..
जिंदगी और मौत भी है ..
चलो जिस राह सफर भी है मंजिल भी .=विजयलक्ष्मी
कैसी वेदना कौन चेतना ..
इबादत है बाकी कुछ नहीं
आत्मसात करना खुद में ..
खौफ ए जुदाई मौत में भी नहीं ..
घर खाला का सा ही लगे है हमे
मुहब्बत तो बस यही है ..
बाकी सब सोच ..दुनियावी ...
प्यार याचक भी है पुजारी भी ..
देवता भी भिखारी भी है ..
कैद है रिहाई भी ,इम्तेहां और सुनवाई भी है ..
उपासना भी है अहसास भी है ..
साँस भी प्यास भी है ..
जिंदगी और मौत भी है....
चलो जिस राह मंजिल भी है सफर भी है ..
वजूद भी है बिखराव भी है ..
जिंदगी की शब् औ सहर है ...
सृजन और कहर भी है ..
ये सोच है समझ अपनी अपनी मानता है किस रूप को
पूजता है किस स्वरुप को ..
इंसानियत आती है हैवानियत सीखता है ..
या बस आँखों का छलावा सा दीखता है ...
साँस भी है प्यास भी ..
जिंदगी और मौत भी है ..
चलो जिस राह सफर भी है मंजिल भी .=विजयलक्ष्मी
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