मर्यादित
आवश्यकता
और ख़ुशी ..
हाँ ... मैंने ढूंढ ली है
नमी में ख़ुशी
पूनम की रात सी
खिलती चांदनी सी ख़ुशी
तपती रेत की गर्मी में
महसूस की ख़ुशी
मन की भूख में ..
बरसात में ख़ुशी
जेठ की धूप में देखी ख़ुशी
सच कहूं ....
शायद ..मैंने
पढनी सीख ली है ख़ुशी
अभी लिखना बाकी है
मुझे पकडनी सीखनी होगी
एक दिन ..
पिजरे में रख लुंगी ख़ुशी
बिलकुल तुम्हारी तरह ..
किन्तु ...
मुझे साधनी होगी ख़ुशी
बिछड़ना तो न पड़ेगा
खुद से
किसी अर्थ हेतु .
शायद
तब कहीं ....
बहुत बिखरी पड़ी है
चहुँ ऑर
आओ बैठकर मुस्कुराते हैं
कोई गीत गुनगुनाते हैं
बसंत के आगमन का
भरकर तमाम ख़ुशी
वो ताजा चाँद ...
बिलकुल " तुम सा "
---- विजयलक्ष्मी
आवश्यकता
और ख़ुशी ..
हाँ ... मैंने ढूंढ ली है
नमी में ख़ुशी
पूनम की रात सी
खिलती चांदनी सी ख़ुशी
तपती रेत की गर्मी में
महसूस की ख़ुशी
मन की भूख में ..
बरसात में ख़ुशी
जेठ की धूप में देखी ख़ुशी
सच कहूं ....
शायद ..मैंने
पढनी सीख ली है ख़ुशी
अभी लिखना बाकी है
मुझे पकडनी सीखनी होगी
एक दिन ..
पिजरे में रख लुंगी ख़ुशी
बिलकुल तुम्हारी तरह ..
किन्तु ...
मुझे साधनी होगी ख़ुशी
बिछड़ना तो न पड़ेगा
खुद से
किसी अर्थ हेतु .
शायद
तब कहीं ....
बहुत बिखरी पड़ी है
चहुँ ऑर
आओ बैठकर मुस्कुराते हैं
कोई गीत गुनगुनाते हैं
बसंत के आगमन का
भरकर तमाम ख़ुशी
वो ताजा चाँद ...
बिलकुल " तुम सा "
---- विजयलक्ष्मी