Saturday 19 August 2017

शहीद आतंकी हुए गोरे बने निजाम ,

शहीद आतंकी हुए गोरे बने निजाम ,
जिन्होंने गुलामी कराई अब चौराहे उनके नाम ||
चोरो ने इलाके चोरो के किये नाम
सत्ता पर काबिज हुए औ बेच खाया हिन्दुस्तान ||
गांधी याद सभी करें न सुभाष न आजाद
फांसी खाकर जो मरे उनका भूला दिया है नाम ||
कुछ दलाल ऐसे हुए अंग्रेज दे गये दाम
पैसा दौलत सत्ता मिली साथ में बन बैठे भगवान||
राजसत्ता के पुजारी का तराजू जातिधर्म
जो जवान कुर्बान हुए उनका मिला न नमोनिशान||
---- विजयलक्ष्मी





गर रमजान में है राम औ दिवाली में अली ,
सच बताना वन्देमातरम पर तोप क्यूँ चली ?
जय राम जी की ,कहने में जुबां नहीं घिसती ,
या खुदा ,तेरे बंदे है फिर क्यूँ इतनी खलबली ?
नाम ए वफ़ा चाहिए बस और दरकार क्या ,
ओम् रटता है सूरज जिससे ये दुनिया चली
|| .-विजयलक्ष्मी




रायजादा की उपाधि पाकर झूमे जो ,,
सर लगाकर नाम के आगे इतराए वो 
सोच रहे सेनानी का ओहदा भी लेलूँ 

गद्दार , कातिल होकर चैन न पायें वो 
कितने मारे कितने ही लटकाए फांसी 
दौलत के भूखे पीछे घुमे दुम हिलाए वो
गद्दी के बनते पैरोकार वसीयतनामें में
आजतलक दुःख की आह न पाए जो ||
-------- विजयलक्ष्मी





इस अँधेरे को कयामत न आंको ..
भोर का सूरज निकलना बाकी है ,
नयन है पैमाना इंसानी ईमान का 
अभी सत्य का बिखरना बाकी है ,
सज लेने दो झूठ को जरा सा और 

अभी समय का निखरना बाकी है ,
मझधार में नैया पंहुच ही गयी गर
जीवन किनारों का संवरना बाकी है
||  --- विजयलक्ष्मी




आइना दिखाता वही है नजरों में जो बसा है ,
ये अलग बात है कि लोग अक्सर नजरें झुका लेते हैं .
बोलते नहीं कुछ भी जमाने का खौफ है बाकी 
बसा के आँखों में जमाने के सामने नजरें झुका लेते हैं
---- विजयलक्ष्मी

Tuesday 8 August 2017

" रक्षाबंधन के नाम पर सेक्युलर घोटाला "

रक्षाबंधन के नाम पर सेक्युलर घोटाला
डॉ विवेक आर्य
बचपन में हमें अपने पाठयक्रम में पढ़ाया जाता रहा है कि रक्षाबंधन के त्योहार पर बहने अपने भाई को राखी बांध कर उनकी लम्बी आयु की कामना करती है। रक्षा बंधन का सबसे प्रचलित उदहारण चित्तोड़ की रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ का दिया जाता है। कहा जाता है कि जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तोड़ पर हमला किया तब चित्तोड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को पत्र लिख कर सहायता करने का निवेदन किया। पत्र के साथ रानी ने भाई समझ कर राखी भी भेजी थी। हुमायूँ रानी की रक्षा के लिए आया मगर तब तक देर हो चुकी थी। रानी ने जौहर कर आत्महत्या कर ली थी। इस इतिहास को हिन्दू-मुस्लिम एकता तोर पर पढ़ाया जाता हैं।
अब सेक्युलर घोटाला पढ़िए
हमारे देश का इतिहास सेक्युलर इतिहासकारों ने लिखा है। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम थे। जिन्हें साम्यवादी विचारधारा के नेहरू ने सख्त हिदायत देकर यह कहा था कि जो भी इतिहास पाठयक्रम में शामिल किया जाये। उस इतिहास में यह न पढ़ाया जाये कि मुस्लिम हमलावरों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा, हिन्दुओं को जबरन धर्मान्तरित किया, उन पर अनेक अत्याचार किये। मौलाना ने नेहरू की सलाह को मानते हुए न केवल सत्य इतिहास को छुपाया अपितु उसे विकृत भी कर दिया।
रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ के किस्से के साथ भी यही अत्याचार हुआ। जब रानी को पता चला की बहादुर शाह उस पर हमला करने वाला है तो उसने हुमायूँ को पत्र तो लिखा। मगर हुमायूँ को पत्र लिखे जाने का बहादुर खान को पता चल गया। बहादुर खान ने हुमायूँ को पत्र लिख कर इस्लाम की दुहाई दी और एक काफिर की सहायता करने से रोका।
मिरात-ए-सिकंदरी में गुजरात विषय से पृष्ठ संख्या 382 पर लिखा मिलता है-
सुल्तान के पत्र का हुमायूँ पर बुरा प्रभाव हुआ। वह आगरे से चित्तोड़ के लिए निकल गया था। अभी वह गवालियर ही पहुंचा था। उसे विचार आया, "सुलतान चित्तोड़ पर हमला करने जा रहा है। अगर मैंने चित्तोड़ की मदद की तो मैं एक प्रकार से एक काफिर की मदद करूँगा। इस्लाम के अनुसार काफिर की मदद करना हराम है। इसलिए देरी करना सबसे सही रहेगा। " यह विचार कर हुमायूँ गवालियर में ही रुक गया और आगे नहीं सरका।
इधर बहादुर शाह ने जब चित्तोड़ को घेर लिया। रानी ने पूरी वीरता से उसका सामना किया। हुमायूँ का कोई नामोनिशान नहीं था। अंत में जौहर करने का फैसला हुआ। किले के दरवाजे खोल दिए गए। केसरिया बाना पहनकर पुरुष युद्ध के लिए उतर गए। पीछे से राजपूत औरतें जौहर की आग में कूद गई। रानी कर्णावती 13000 स्त्रियों के साथ जौहर में कूद गई। 3000 छोटे बच्चों को कुँए और खाई में फेंक दिया गया। ताकि वे मुसलमानों के हाथ न लगे। कुल मिलकर 32000 निर्दोष लोगों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।
बहादुर शाह किले में लूटपाट कर वापिस चला गया। हुमायूँ चित्तोड़ आया। मगर पुरे एक वर्ष के बाद आया।परन्तु किसलिए आया? अपने वार्षिक लगान को इकठ्ठा करने आया। ध्यान दीजिये यही हुमायूँ जब शेरशाह सूरी के डर से रेगिस्तान की धूल छानता फिर रहा था। तब उमरकोट सिंध के हिन्दू राजपूत राणा ने हुमायूँ को आश्रय दिया था। यही उमरकोट में अकबर का जन्म हुआ था। एक काफ़िर का आश्रय लेते हुमायूँ को कभी इस्लाम याद नहीं आया। और धिक्कार है ऐसे राणा पर जिसने अपने हिन्दू राजपूत रियासत चित्तोड़ से दगा करने वाले हुमायूँ को आश्रय दिया। अगर हुमायूँ यही रेगिस्तान में मर जाता। तो भारत से मुग़लों का अंत तभी हो जाता। न आगे चलकर अकबर से लेकर औरंगज़ेब के अत्याचार हिन्दुओं को सहने पड़ते।
इरफ़ान हबीब, रोमिला थापर सरीखे इतिहासकारों ने इतिहास का केवल विकृतिकरण ही नहीं किया अपितु उसका पूरा बलात्कार ही कर दिया। हुमायूँ द्वारा इस्लाम के नाम पर की गई दगाबाजी को हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे और रक्षाबंधन का नाम दे दिया। हमारे पाठयक्रम में पढ़ा पढ़ा कर हिन्दू बच्चों को इतना भ्रमित किया गया कि उन्हें कभी सत्य का ज्ञान ही न हो। इसीलिए आज हिन्दुओं के बच्चे दिल्ली में हुमायूँ के मकबरे के दर्शन करने जाते हैं। जहाँ पर गाइड उन्हें हुमायूँ को हिन्दूमुस्लिम भाईचारे के प्रतीक के रूप में बताते हैं।
..ये कौन से सेकुलरिज्म में है तथ्यों को छिपाया जाय ?

Thursday 3 August 2017

" मुहं अँधेरे उठती है "

" मुहं अँधेरे उठती है 
ठंडे चूल्हे तकते है राह 
लीपती है जिन्हें अपने चेहरे से भी पहले 
चढ़ती है पतीली अलसुबह 
सूरज भी करता है झुककर नमन 
लगता है जैसे सूरज को जगाती है चूल्हे की गर्मी से
बिन ब्रश के दातुन नीम की
उम्र से पहले उम्र दराज सी
मन से कोमल मतवारी सी
घर और खेत को मांजती है कंधे से कंधा मिलाकर
ठंडी छाज और गर्म दूध
चलता है रसोड़े में जिनके बसी रोटी के संग
समझ और ईमानदारी की महीन छलनी
छनकती है सास के पैरो पर मालिश करते हाथों में
उनकी घुमक्कड़ी रहती है घर घेर और खेत तक
मैका भी याद आता है सावन की ठंडी सी फुहार के गीतों में
देती है मीठे सिटने
तिसपर
कभी बुआई कभी कटाई
अबके बरस ननद का गौना
परके बरस ब्याही थी चौमासे में
अभी ब्याई गैया की बछिया चार दिन की ही हुई
जेठ की दुपहरी नहीं तपाती उन्हें
हाँ वही तथाकथित जाहिल सी दिखती औरते
लम्बा सा घुंघट और निश्छल सी मुस्कुराहट
नहीं लेती पति का नाम आज भी
सीता की तरह तिरछी नजर बताती है जीवनसाथी का अर्थ
नहीं समझ सकोगी कभी ..."तुम "
उस लज्जा की चादर को ..
जो बंधी है पिता के द्वारा बांधे गये इज्जत के खूंटे से
तुम जाम छलकाओ और चिरौरी करो
नारी विमर्श पर लम्बी लम्बी बाते करो
व्याखान लिखो पुरूस्कार पाओ
और करो गलबहियाँ नाच ,,,
चखना की तरह महिला के नाम पर कलंकित करती हुई तुम्हारी सोच
नहीं छू पाएगी पावनता की वो पराकाष्ठा
जाहिल शब्द का वास्तविक अर्थ तुम नहीं समझ सकोगी कभी ||
" ----- विजयलक्ष्मी