मुस्कुरायेगे हम जख्मों को भुलाकर ,
तुम भी साथ दोगे न मेरा मुस्कुराकर .
लाइलाज जख्मों का इलाज भी यही है
बैठो तो कुछ पल तुम भी पास आकर .
तेरे सिवा,याद कहाँ जमाने का दस्तूर
चले जाना तुम जमाने को समझाकर.
कहता है प्यासा मुझको सहरा है खुद
चले जाये बदरा कुछ बूँद ही बरसाकर .
खिल उठें मन के दरीचे कर सोलहश्रृंगार
संदेश ले आई पवन चली गयी महकाकर .
---- विजयलक्ष्मी
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