Sunday 1 September 2013

भूल गये न सब दामिनी को

मीडिया मण्डी हो गया ...बिलकुल सच और वकालत भडवागिरी नहीं समझे न कैसे समझोगे ...सब आसाराम की खबर सुन रहे हो ..जिसे सौ से हजार बार ..बार बार दिखाया जा रहा है ..और बेवकूफ हिन्दुस्तानी खुश है सुनकर ..
.क्या एक बार से मन नहीं भरा ....
भूल गये न सब दामिनी को ...तब तो मोमबत्ती लेलेकर मार्च निकाला था ...पकड़ो और सजा दो के खूब नारे लगाए थे ...आज क्या हुआ ..बस इतना ही गुस्सा था ..मात्र तीन वर्ष की कैद ..!!वाह रे हिंदुस्तान ..दरिंदगी पूर्ण भयानक मौत की सजा मात्र तीन वर्ष ||
और तीन साल बाद ...फिर आजाद ..बेख़ौफ़ ...उन्ही रास्तों पर ..वाह री अदालत और तुम्हारे निर्णय ..सच में जो लोग खुद को साफ़ बचाना चाहते हो उन्हें कुछ वक़्त कोर्ट की कार्यवाही देखने जेब भरकर जाना ही चाहिए .....ज्यादातर मामलों में वकील-पुलिस-जज मिल कर क्या तोड़ - काट निकालते है ... (भ्रष्टाचार ,बलात्कार ,घूसखोरी ,मर्डर) सभी का सीधा रिश्ता मात्र निपुणता से ही होता है

....
फिर वही वहशी दरिंदे भूखे भेडिये से ,
नोच लेते है यूँ तो नजर से तन और मन को ,
जाने कब इंसान की शक्ल में कहाँ पर मिल जाये ,
स्वरक्षा का हुनर जरूरी है आजकल ,
न मालूम कब ये हुनर काम आ जाये ,
रौंदते है लाज देश की तोड़ते है स्त्री सा गहना ,
जिस रूप को पूजते है माँ बना कर घर में सभी ,
नहीं सोचते लुटते हुए बहन हों सकती है और कहीं पर तेरी भी ,
न हों कल तुम्हारी माँ का भी ये हाल हों ,
तब देखना होगा क्या करते हों हाल उन दरिंदों का सोचना ,,,
क्यूँ न कर दिया जाये वही हश्र इनका भी ..
क्यूँ दया की भीख फिर ये मांगते ..
क्यूँ नहीं इनको भरे चौराहे टांगते ..
देकर फांसी का फंदा गलों के माप का ..उतार दो भूत जो चढा है पाप का ,
क्यूँ दया फिर मांगते भेजते है अर्जी ....
क्या जिंदगी किसी और की बस है बाकी फर्जी
क्यूँ न उतार दे कटार पार शरीर के ...
कर दिए टुकड़े जिन्होंने इंसानी जमीर के ..
क्या कहूँ है इंसानियत जिन्दा है बाकी कहीं ...
सोचकर देखना ..
क्या एक ही मछली पूरे तालाब को गंदा करती नहीं .- विजयलक्ष्मी

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