Friday 13 September 2013

....इस चुप्पी को कौन तोड़ेगा ?

बहुत सीधा और सटीक प्रश्न ...इस चुप्पी को कौन तोड़ेगा ?
मानवता पर धर्म भारी हुआ है आजकल 
धर्म पर दंगे ओ सियासत जारी है आजकल 
सिद्ध और गिद्ध की पहचान मुश्किल है 
मौन चीरता है काटता है और पसर जाता है बिखर बिखर 
समेटते समेटते उम्र बीतती युगों सी प्रतिपल 
संस्कृति अभियुक्त बनी है शातिर हुआ न्यायधीश 
राहत कहाँ सरकारी माल गोदामों में बंद पड़ा है 
मारकाट और चीख पुकार कर्णभेदी हुयी ...मगर सुनती नहीं 
मुर्दों का शहर है ...जो प्रोग्राम किये रोबोट की तर्ज पर चलते है 
शातिर चुप्पी और मेरी चीख ..देखते है ..कौन सी दूर तक जाएगी 
आज नहीं तो कल टकराएगी जरूर तुमसे.- विजयलक्ष्मी 

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