Sunday, 22 September 2013

जंगली बेल सी बढती है बेटियां ,

किसी ने कहा ..जंगली बेल सी बढती है बेटियां ,
किसी को कर्ज सी किसी फर्ज सी लगती है बेटियां
किसी ने जन्म से पहले मारी ,किसी की ने "आँखे के दूध "से मारी बेटियां
किसी के काँधे का बोझ बन गयी किसी की इज्जत कहा गयी बेटियां
बहुत दर्द होता है माँ के सब सुनकर है मेरे जी का जंजाल बेटियां
मुझे तो लगती जाँ से प्यारी ये बेटियां
मेरे घर आंगन की है फुलवारी बेटियां
जिस डाल पे बिठाया बैठ जाती बेटियां ,
सहकर भी हर दुःख को सुख बताती बेटियाँ
किसी मुंडेर चिड़िया सी चहचहाती बेटियाँ
महक से अपनी घर आंगन महकाती दूसरों का बहुत याद आती है बेटियाँ
अपनाकर तनमन से वंशबेल भी बढाती बेटियाँ .
लगती बोझ किसी मुझको हर अहसास में भाती है बेटियाँ
चाँद का टुकड़ा सी सूनी सी जिन्दगी की बहार है बेटियाँ
अल्हड सी चपला सी चंचल मुस्काती खिलखिलाती याद आती है बेटियाँ
आँख की नमी को हमसे भी छिपाती है बेटियाँ
बराबर की हिस्सेदार होकर सर सदा अपना झुकाती है बेटियां
क्या क्या गिनाऊँ गिनती कर्तव्यबोध भी सिखाती है बेटियां
दोजख सी दुनिया को स्वर्ग सा बनाती हैं बेटियां .
किसी ने कहा ..जंगली बेल सी बढती है बेटियाँ
बहुत दर्द होता है माँ के सब सुनकर है मेरे जी का जंजाल बेटियां
मुझे तो लगती जान से प्यारी ये बेटियां .- विजयलक्ष्मी
 

2 comments:

  1. नाही जंगली बेल सी,
    नाही कर्ज किसी का
    नाजुक गुलाब के फूल सी
    हैं सिंगार बेटियाँ
    हमारे आँगन की |
    आशा
    सुन्दर रचना

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