Monday 16 September 2013

नाम ए जाम पीकर मस्त जब दीवाने हो

दर्द जब हद से गुजर जाये जिन्दगी 
दीवानगी की तल्खी जिन्दगी में उतर जाये 
और मरने की तमन्ना मौत के सर पर संवर जाए 
क्या वफा ओ उम्मीदे की चाहना लूटना है जहां तो लुट जाये 
जरूरत खत्म हो जाये पाने की आब को 
न रहे बाकि बानगी कोई पूरा करे जो ख्वाब को 
कोई हद जब आड़े नहीं आती 
रूह में उतर जिन्दगी फना हो जाती 
बहार मजबूर हो जाये उतरने को मेरी गली 
बता क्या जरूरत खौफ की या रूह जब मतवाली हो चली 
बेख़ौफ़ चेहरों चमन खिल उठे खुदाई का
तोड़ने को बंधन कुरआन न फतवा रहे
जिन्दगी की बानगी बता अब बाकी क्या रहे
मिटने की कसमे और रस्मे जब रवानी ले चुके
हूर क्या जानेगी जालिम लुटने का मजा क्या है
देश दुल्हन जिनकी खातिर बाकी कोई जफा क्या है
मिटने उतरे मैदाने जंग तो फिर जिन्दगी की आरजू क्या है
वक्त को चलाने दो खंजर ..पीठ क्या जख्म सीने पे क्या है
हर हिजाब टूट कर गिरे और जमीर क्या मर जिन्दा ही क्या है
नाम ए जाम पीकर मस्त जब दीवाने हो
मौत का फिर खौफ क्या है .- विजयलक्ष्मी

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