श्रद्धा और श्राद्ध बहुत तालमेल है इनमे दोनों एक दुसरे के साथ चलती है
तुम ही कहो क्या एक दुसरे से अलग अस्तित्व बकाया है कहीं
चल दिए तुम पूजने और देखती थी रास्ता मैं इंतजार पलकों में लिए
कुछ और याद करने की फुर्सत किसे है जलता अहसास का दीप बकाया है यही .
तुम तर्पण कर सके नहीं और हम जिन्दा रहे गमों के सीप में
शेषफल तुम हो बाजार का और मैं ,जो और कहीं भी न समाया हूँ वही - विजयलक्ष्मी
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