इबारत लिखी गयी जो दिल पर मिटती नहीं कभी
ये और बात है जुबाँ पर नाम आये या न आये कभी .- विजयलक्ष्मी
ये और बात है जुबाँ पर नाम आये या न आये कभी .- विजयलक्ष्मी
खामोश ख्याल और याद पलपल घुमड़ती है भीतर भीतर ,
शोर बहुत है बाहर, मद्धम सा संगीत बजता है भीतर भीतर.- विजयलक्ष्मी
शोर बहुत है बाहर, मद्धम सा संगीत बजता है भीतर भीतर.- विजयलक्ष्मी
हर काम अधूरा है किया हुआ देश बर्बाद पूरा है ,
इमदाद खाते है नेता , जनता की पीठ पर छुरा है .- विजयलक्ष्मी
इमदाद खाते है नेता , जनता की पीठ पर छुरा है .- विजयलक्ष्मी
रौनक ए महफिल शबनमी ,पडती ठंडी फुहार है ,
जिनके तबस्सुम के नूर से जिन्दा वो खुद बहार है .- विजयलक्ष्मी
जिनके तबस्सुम के नूर से जिन्दा वो खुद बहार है .- विजयलक्ष्मी
घर ठिकाना नहीं ईंट पत्थरों का तो मकाँ होगा ,
शिद्दत ए अहसासात ए मुताल्लिक ही जहां होगा .- विजयलक्ष्मी
शिद्दत ए अहसासात ए मुताल्लिक ही जहां होगा .- विजयलक्ष्मी
अपने गिरेबाँ में भला झांकता कौन है,
खुद कितने पानी में खड़ा आंकता कौन है .विजयलक्ष्मी
खुद कितने पानी में खड़ा आंकता कौन है .विजयलक्ष्मी
महकते रिश्तों से भी जल रहा है आदमी |
प्यार को भी नफरत में बदल रहा है आदमी .- विजयलक्ष्मी
प्यार को भी नफरत में बदल रहा है आदमी .- विजयलक्ष्मी
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