Sunday, 1 September 2013

रूह पर उकेर दिया समय की छेनी ने एक नाम

रेत होते हम सागर किनारे की 
पानी की लहरे मिटा देती निशाँ तुम्हारे 
सहरा की रेत में ..हवा उड़ा देती निशाँ जिन्दगी के हमारी 
नदी होते गर बह गये होते संग जलधार के 
समन्दर का खारापन नयनों में रोक लिया है ..सुना नमक गला देता है जड़े भी 
क्या बताऊँ ...सहेजा है कैसे ..
उल बनके खिलने की चाहत को काँटों से खौफ हुआ 
दीप को जिन्दगी के तूफानों का खौफ है 
अब दरकार नहीं कोई ...खुद को पत्थर बना लिया 
तुमने कागज समझ जो हस्ताक्षर किये ..लाल स्याही से हमारी
लहू था हमारा बहता है मुझमे ही,
रूह पर उकेर दिया समय की छेनी ने एक नाम ..
.. ...
सुन रहे हो ...
जिन्दगी के बाद भी रहेगा साथ ..
मेरा खुदा बन कर ईमान ..!!- विजयलक्ष्मी

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