Thursday, 12 September 2013

क्यूँ बेसबब है .

छलक उठती आँख मेरी क्यूँ बेसबब है ,
समझ आया नहीं उदासी क्यूँ बेसबब है .

ये कौन सा मोड़ है ए जिन्दगी तू ही बता ,
जिए यूँही उम्रभर ये मौत क्यूँ बेसबब है 

कदम ले चले है मुझे किस राह की तरफ,
मंजिल को ढूढ़ते है तो राह क्यूँ बेसबब है 

आइना मेरी तस्वीर नहीं दिखाता आजकल 
आँखों का फेर समझे तो क्यूँ बेसबब है

गुजरती है हवा सी छूकर जब कभी मुझे
आई मुस्कुराहट सी लबों पर क्यूँ बेसबब है .- विजयलक्ष्मी

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