परिभाषाये तो नित नई बन जाती है ,
प्यार की परिभाषा कब गुम हो पाती है
देह की देहलीज पर ताले पड़े है यहाँ मत देखना
रूह से मिलने की तलब पूरी नहीं होती
वासना का वास देह के साथ मरेगा डूबकर
यहाँ तो साधना और उपासना रहती है जाने कब से
मन्दिरों में घंटी संग मन्त्रोच्चार भरी आवाज गूंजती है
मेरे चहुँ ऑर ढोल और मृदंग के संग में .- विजयलक्ष्मी
जीवन रेख ..
जीवन रेख हकीकत हो चलती है यूँही
इंसानी ईमान हुआ सस्ता ,
चंद रुपयों में बिक जाता है
राह ढूंढना भी आसान नहीं
शिक्षा सबसे महंगी है ईमान की ..
अध्ययन भी कोई कोई कर पता है .- विजयलक्ष्मी
प्यार की परिभाषा कब गुम हो पाती है
देह की देहलीज पर ताले पड़े है यहाँ मत देखना
रूह से मिलने की तलब पूरी नहीं होती
वासना का वास देह के साथ मरेगा डूबकर
यहाँ तो साधना और उपासना रहती है जाने कब से
मन्दिरों में घंटी संग मन्त्रोच्चार भरी आवाज गूंजती है
मेरे चहुँ ऑर ढोल और मृदंग के संग में .- विजयलक्ष्मी
जीवन रेख ..
जीवन रेख हकीकत हो चलती है यूँही
इंसानी ईमान हुआ सस्ता ,
चंद रुपयों में बिक जाता है
राह ढूंढना भी आसान नहीं
शिक्षा सबसे महंगी है ईमान की ..
अध्ययन भी कोई कोई कर पता है .- विजयलक्ष्मी
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